प्रतियोगिता की चौदहवीं कविता के कवि गिरेजेश राव का जन्म 4 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के एक ऊँघते से कस्बे रामकोला में रात को 11:25 पर हुआ, उस समय इनकी माँ के साथ थे केवल इनके पिता और उनके अति योग्य शिष्य जो आज बौद्ध दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान हैं। सदा से गुरुजनों के अति प्रिय रहे। कवि मानते हैं कि आज ये जो भी हैं गुरुजनों के और बरगद से व्यक्तित्त्व वाले पिता के कारण हैं। 1991 में सिविल इंजीनियरिंग में मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज, गोरखपुर से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद दो साल भटके, फिर रुड़की विश्वविद्यालय से परास्नातक – विश्वविद्यालय पदक के साथ किया और दो साल का भटकाव। 1997 से हिन्दुस्तान पेट्रोलियम में कार्यरत। सम्प्रति लखनऊ में कार्यकारी अधिकारी– रिटेल उन्नयन। प्रस्तुत कविता के बारे में लिखते हैं- "यह कविता रच गई थी आज से करीब 9-10 साल पहले जब श्रीमती जी पुत्री अलका के साथ मायके गई थीं। कविता तीन चार साल पहले पुरानी डायरी में मिली थी। प्रतियोगिता में डरते डरते भेजा था क्यों कि लग रहा था कि इस तरह की उपमाओं, भावों, बिंब, रूपक या शब्दों के साथ इतने वर्षों में दूसरों ने भी रचा होगा। निर्णायक मंडल को जँची, उनकी उदारता के लिए धन्यवाद।"
रचना- तुम्हारी याद आई
तुम्हारी याद आई
बाँसुरी के साथ री
बज उठी शहनाई।
सर सरकती
चिड़ी चहकती
बात करती हवा आई
बिटिया की खिलखिल बिना
बड़ी सूनी सी लगी
धूप सनी अँगनाई।
फूल महके
भँवरे बहके
झुनझुनी पायल नहीं
एक चूड़ी तनहाई।
गगन तारे
आज द्वारे
तकिये पर सिन्दूर ना रे
कानाफूसी रात बहकी
हँसी जैसे सिसकाई।
तुम्हारी याद आई।
प्रथम चरण मिला स्थान- सत्ताइसवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- चौदहवाँ
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
इस सुन्दर कविता के लिये गिरिजेश जी को बहुत बहुत बधाई
इस सुन्दर कविता के लिये गिरिजेश जी को बहुत बहुत बधाई
गिरिजेश जी .. आपने बहुत बढिया लिखा है .. बधाई !!
sundar madhur kavita
sunder likha hai ji...
waise ye koi kaaran nahi hotaa hai..ke puraani hai to kisi aur ne naa likh diyaa ho....
गिरिजेश भइया, अब आप यहाँ भी छा जाने की तैयारी में हैं। काश हम भी आपको वोट दे पाते। क्या रास्ता है आपको विजयी बनाने का। निर्णायकों को इस नगीने को खोज निकालने की बधाई। कविता तो बेशक अच्छी है।
क्या खूब लिखते है आप. कभी कभी मेरे हालत ऐसे हो जाते हैं कि तारीफ़ करने के लिए अल्फाज़ नहीं मिलते. आज भी कुछ ऐसा ही लग रहा है. मुझे ये पंक्तियाँ बहुत पसंद आईं. आपने बहुत कम शब्दों में बहुत अच्छी बात कही.
फूल महके
भँवरे बहके
झुनझुनी पायल नहीं
एक चूड़ी तनहाई।
गगन तारे
आज द्वारे
तकिये पर सिन्दूर ना रे
कानाफूसी रात बहकी
हँसी जैसे सिसकाई।
तुम्हारी याद आई
बाँसुरी के साथ री
बज उठी शहनाई।
वाकई कविता सुन्दर है .आभार .
बहुत ही सुन्दर रचना, बधाई ।
बहुत ही सुन्दर कविता
चलिये कोइ तो पति मिला जो मायके जाने पर बीबी को याद करता है
ये नही कहता कि बला टली.अजादी के दिन आये.
गिरिजेश जी,बहुत सुंदर कविता लिखी आपने.
एक एक शब्द भाव से भरे है,
बहुत बधाई!!!
kya bhabhi ko das saal baad bhi....badia hai.
bahooot pyaaar karta hai.badaa gah... yaaraanaaa hai.badiaaaa hai.
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