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Saturday, July 25, 2009

मेला - भूखे बेच रहे थे दाना


हमने देखे गजब नजारे मेले में।
लाए थे वो चाँद-सितारे ठेले में।।

बिन्दी-टिकुली चूड़ी-कंगना
झूला-चरखी सजनी-सजना
जादू-सरकस खेल-खिलौने
ढोल-तराने मखणी-मखणा

मजदूरों ने शहर उतारे मेले में।
हमने देखे गजब नजारे मेले में।।

भूखे बेच रहे थे दाना
प्यासे बेच रहे थे पानी
सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ
सपने बेच रहे ज्ञानी

बच्चों ने बेचे गुब्बारे मेले में।
हमने देखे गजब नज़ारे मेले में।।

बिकते खुशियों वाले लड्डू
एक रुपैया दो-दो दोना
हीरे वाली गजब अंगूठी
चार रुपैया चांदी - सोना

अंधियारे दिखते उजियारे मेले में।
हमने देखे गजब नजारे मेले में।।

कवि- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

भूखे बेच रहे थे दाना,प्यासे बेच रहे थे पानी
सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ,सपने बेच रहे ज्ञानी
मेले का अति भावपूर्ण वर्णन
सुंदर ..रचना
बधाई

पी.सी.गोदियाल "परचेत" का कहना है कि -

बहुत बढिया कविता,मैं तो कहूंगा कि स्कूल में बच्चो के पाठ्यकर्म में सम्मिलित करने योग्य है !

Shamikh Faraz का कहना है कि -

देवेन्द्र साहब समझ में नहीं आता कि किस stanza पर आपकी तारीफ न कि जाए. बहुत ही अच्छी कविता. पहले stanza में सिर्फ आपने मेले के बारे में ही बताया है.
हमने देखे गजब नजारे मेले में।
लाए थे वो चाँद-सितारे ठेले में।।

बिन्दी-टिकुली चूड़ी-कंगना
झूला-चरखी सजनी-सजना
जादू-सरकस खेल-खिलौने
ढोल-तराने मखणी-मखणा

मजदूरों ने शहर उतारे मेले में।
हमने देखे गजब नजारे मेले में।।



वहीँ पर दुसरे stanza में में क्या खूब लिखा है क्या बात कह दी.कि जिस के पास जो नहीं है वो वही बेच रहा है.

भूखे बेच रहे थे दाना
प्यासे बेच रहे थे पानी
सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ
सपने बेच रहे ज्ञानी

बच्चों ने बेचे गुब्बारे मेले में।
हमने देखे गजब नज़ारे मेले में।।

इसी तरह तीसरा भी लाजवाब है

बिकते खुशियों वाले लड्डू
एक रुपैया दो-दो दोना
हीरे वाली गजब अंगूठी
चार रुपैया चांदी - सोना

अंधियारे दिखते उजियारे मेले में।
हमने देखे गजब नजारे मेले में।।

mohammad ahsan का कहना है कि -

great poetry

Disha का कहना है कि -

अच्छी व भावपूर्ण कविता

Manju Gupta का कहना है कि -

लाजवाब मेला लगा .ऐसा लग रहा था कि मेला में घूम रहें हों .बधाई .

neelam का कहना है कि -

बच्चों ने बेचे गुब्बारे मेले में।
हमने देखे गजब नज़ारे मेले में।।

क्या जीवन का विरोधाभास चित्रित किया है पांडे जी ,बहुते नीक लागल बा जिनगानी (जिंदगानी )मा यही होत बा |

उनके बच्चे भी सोये हैं भूखे |
जिनकी उम्र गजरी है रोटियां बनाने में |

Harihar का कहना है कि -

सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ
सपने बेच रहे ज्ञानी

बच्चों ने बेचे गुब्बारे मेले में।
हमने देखे गजब नज़ारे मेले में।।

बहुत अच्छी लगी कविता

manu का कहना है कि -

लाजवाब लिखा है पाण्डेय जी...
हर पंक्ति एक तस्वीर खींच रही है...
लाजवाब...लाजवाब...

mohammad ahsan का कहना है कि -

तुम्हारी नज़्मों में मिटटी और गंध है देस की ,
नहीं त'अजुब उतर जाती हैं दिल में गहरे से
-ahsan

Anonymous का कहना है कि -

अंधियारे दिखते उजियारे मेले में।


बहुत ही सुन्‍दर रचना, आभार ।

Disha का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर रचना
भूखे बेच रहे थे दाना
प्यासे बेच रहे थे पानी
सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ
सपने बेच रहे ज्ञानी

rachana का कहना है कि -

देश से दूर इस कविता को पढने पर एक अलग सा भावः आता है भूखे बेच रहे थे दाना,प्यासे बेच रहे थे पानी
सूनी आँखें हरी चूड़ियाँ,सपने बेच रहे ज्ञानी
बहुत सुंदर लिखा है आप ने
सादर
रचना

Unknown का कहना है कि -

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