मुझ पर
विस्मित हो फुहार !
सावन कतरा कतरा
जिस्म में उतरता है,
बादल लम्हा लम्हा
आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
अदम्य कामना संग उगेगी
अनगिन खरपतवार
मन में |
इसी बीच कहीं
वर्षा के कारण कल
रोजगार न मिलने
का चाबुक पडेगा
गीले मन पर |
कुम्हलाने लगगें
कामनाओं के भ्रूण |
बूंदों के मलखंभ पर
करतब दिखाते
चाहतों के शिशु,
स्थिर हो जायेंगे |
बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
10 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर शब्द-चित्र खड़ा किया है आपने विनय जी। वाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
चंद पँक्तियाँ क्यों हर एक शब्द दिल को बीन्ध रहा है लाजवाब कविता ऐर संवेदनाओं को sसलाम आभार्
बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण कविता
तन मन दोनो द्रवित हो गये.
आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाई
आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाई
मुझ पर
विस्मित हो फुहार !
सावन कतरा कतरा
जिस्म में उतरता है,
बादल लम्हा लम्हा
आगोश में तड़पता है ,
सेंसुअलिटी की हदों को छूती उपरोक्त पंक्तियाँ अत्यंत सुन्दर हैं किन्तु शेष कविता की थीम के साथ बिलकुल मिसफिट.
-मुहम्मद अहसन
कविता की फुहार ने मन को तृप्त कर दिया .बधाई
बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
क्या खूब लिखा है बारिश के कई रूप आप ने बहुत सुंदर तरीके से लिखे हैं अंत बहुत तो कितना अच्छा
बधाई
रचना
बूंदों के मलखंभ पर
करतब दिखाते
चाहतों के शिशु,
AMMAZING WHAT A EMEGINATION V. GOOD
M.M. TRIPATHI
बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
आपकी कविता के अंत में जो शब्द है वो बहुत ही खूबसूरती से और सही जगह पिरोये गए हैं. उन्हें देखकर मुझे shakespeare की एक सूक्ति धयान आ रही है.
poetry is the best words in their best order.
और क्या कहूँ.
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