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Thursday, July 16, 2009

मुझ पर विस्मित हो फुहार !


मुझ पर
विस्मित हो फुहार !
सावन कतरा कतरा
जिस्म में उतरता है,
बादल लम्हा लम्हा
आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
अदम्य कामना संग उगेगी
अनगिन खरपतवार
मन में |
इसी बीच कहीं
वर्षा के कारण कल
रोजगार न मिलने
का चाबुक पडेगा
गीले मन पर |
कुम्हलाने लगगें
कामनाओं के भ्रूण |
बूंदों के मलखंभ पर
करतब दिखाते
चाहतों के शिशु,
स्थिर हो जायेंगे |

बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

श्यामल सुमन का कहना है कि -

सुन्दर शब्द-चित्र खड़ा किया है आपने विनय जी। वाह।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

निर्मला कपिला का कहना है कि -

तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
चंद पँक्तियाँ क्यों हर एक शब्द दिल को बीन्ध रहा है लाजवाब कविता ऐर संवेदनाओं को sसलाम आभार्

Disha का कहना है कि -

बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण कविता
तन मन दोनो द्रवित हो गये.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाई

निर्मला कपिला का कहना है कि -

आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |
फटी ओढ़नी से झांकती
रक्ताल्प देह लहरा,
झरती टहनियों को चिढाती हूँ |
बरस - झूम कर बरस
पहले पसीना घुलेगा
फिर, परत दर परत
जिस्म से लिपटी माटी
उतरती जायेगी |
एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी
तन में |
कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाई

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

मुझ पर
विस्मित हो फुहार !
सावन कतरा कतरा
जिस्म में उतरता है,
बादल लम्हा लम्हा
आगोश में तड़पता है ,

सेंसुअलिटी की हदों को छूती उपरोक्त पंक्तियाँ अत्यंत सुन्दर हैं किन्तु शेष कविता की थीम के साथ बिलकुल मिसफिट.
-मुहम्मद अहसन

Manju Gupta का कहना है कि -

कविता की फुहार ने मन को तृप्त कर दिया .बधाई

rachana का कहना है कि -

बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |
क्या खूब लिखा है बारिश के कई रूप आप ने बहुत सुंदर तरीके से लिखे हैं अंत बहुत तो कितना अच्छा
बधाई
रचना

Anonymous का कहना है कि -

बूंदों के मलखंभ पर
करतब दिखाते
चाहतों के शिशु,
AMMAZING WHAT A EMEGINATION V. GOOD
M.M. TRIPATHI

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्हे से पानी
उलीचना है |

आपकी कविता के अंत में जो शब्द है वो बहुत ही खूबसूरती से और सही जगह पिरोये गए हैं. उन्हें देखकर मुझे shakespeare की एक सूक्ति धयान आ रही है.

poetry is the best words in their best order.
और क्या कहूँ.

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