tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post6914631621188681320..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: मुझ पर विस्मित हो फुहार !शैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-8515891424916047742009-07-18T08:35:19.248+05:302009-07-18T08:35:19.248+05:30बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चू...बौछारों रुक जाओ ! <br />अब मन अनमना है <br />चलो घर चले, <br />चूल्हे से पानी <br />उलीचना है | <br /><br />आपकी कविता के अंत में जो शब्द है वो बहुत ही खूबसूरती से और सही जगह पिरोये गए हैं. उन्हें देखकर मुझे shakespeare की एक सूक्ति धयान आ रही है.<br /><br />poetry is the best words in their best order.<br />और क्या कहूँ.Shamikh Farazhttps://www.blogger.com/profile/11293266231977127796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-58385834939170223802009-07-17T07:54:13.930+05:302009-07-17T07:54:13.930+05:30बूंदों के मलखंभ पर
करतब दिखाते
चाहतों के शिशु,
...बूंदों के मलखंभ पर <br />करतब दिखाते <br />चाहतों के शिशु, <br />AMMAZING WHAT A EMEGINATION V. GOOD<br />M.M. TRIPATHIAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74573536206176947682009-07-16T20:15:15.706+05:302009-07-16T20:15:15.706+05:30बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चूल्ह...बौछारों रुक जाओ !<br />अब मन अनमना है<br />चलो घर चले,<br />चूल्हे से पानी<br />उलीचना है |<br />क्या खूब लिखा है बारिश के कई रूप आप ने बहुत सुंदर तरीके से लिखे हैं अंत बहुत तो कितना अच्छा <br />बधाई <br />रचनाrachananoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1492664260367193292009-07-16T18:12:06.452+05:302009-07-16T18:12:06.452+05:30कविता की फुहार ने मन को तृप्त कर दिया .बधाईकविता की फुहार ने मन को तृप्त कर दिया .बधाईManju Guptahttps://www.blogger.com/profile/10464006263216607501noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-49628712598700066202009-07-16T11:34:00.409+05:302009-07-16T11:34:00.409+05:30मुझ पर
विस्मित हो फुहार !
सावन कतरा कतरा
जिस्म मे...मुझ पर<br />विस्मित हो फुहार !<br />सावन कतरा कतरा <br />जिस्म में उतरता है,<br />बादल लम्हा लम्हा <br />आगोश में तड़पता है ,<br /><br />सेंसुअलिटी की हदों को छूती उपरोक्त पंक्तियाँ अत्यंत सुन्दर हैं किन्तु शेष कविता की थीम के साथ बिलकुल मिसफिट.<br />-मुहम्मद अहसनमुहम्मद अहसनnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67560607412892636112009-07-16T10:37:12.619+05:302009-07-16T10:37:12.619+05:30आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़...आगोश में तड़पता है ,<br />तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट<br />ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |<br />फटी ओढ़नी से झांकती<br />रक्ताल्प देह लहरा,<br />झरती टहनियों को चिढाती हूँ |<br />बरस - झूम कर बरस<br />पहले पसीना घुलेगा<br />फिर, परत दर परत<br />जिस्म से लिपटी माटी<br />उतरती जायेगी |<br />एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी<br />तन में |<br />कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-79124453602509206112009-07-16T10:37:09.939+05:302009-07-16T10:37:09.939+05:30आगोश में तड़पता है ,
तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़...आगोश में तड़पता है ,<br />तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट<br />ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |<br />फटी ओढ़नी से झांकती<br />रक्ताल्प देह लहरा,<br />झरती टहनियों को चिढाती हूँ |<br />बरस - झूम कर बरस<br />पहले पसीना घुलेगा<br />फिर, परत दर परत<br />जिस्म से लिपटी माटी<br />उतरती जायेगी |<br />एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी<br />तन में |<br />कविता का एक एक शब्द मन को बीन्ध देता है बहुत ही लाजवाब संवेदनाओं के ओरवाह मे बहती कविता बधाईनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55722243470619712732009-07-16T09:52:45.401+05:302009-07-16T09:52:45.401+05:30बौछारों रुक जाओ !
अब मन अनमना है
चलो घर चले,
चू...बौछारों रुक जाओ ! <br />अब मन अनमना है <br />चलो घर चले, <br />चूल्हे से पानी <br />उलीचना है | <br />बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण कविता<br />तन मन दोनो द्रवित हो गये.Dishahttps://www.blogger.com/profile/14880938674009076194noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-67833599053660606912009-07-16T09:47:01.054+05:302009-07-16T09:47:01.054+05:30तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट
ख़्वाबों के पुल बनाती ह...तगारी में भर सीमेंट कंक्रीट<br />ख़्वाबों के पुल बनाती हूँ |<br />फटी ओढ़नी से झांकती<br />रक्ताल्प देह लहरा,<br />झरती टहनियों को चिढाती हूँ |<br />बरस - झूम कर बरस<br />पहले पसीना घुलेगा<br />फिर, परत दर परत<br />जिस्म से लिपटी माटी<br />उतरती जायेगी |<br />एक अतृप्त षोडशी आ बसेगी<br />तन में |<br />चंद पँक्तियाँ क्यों हर एक शब्द दिल को बीन्ध रहा है लाजवाब कविता ऐर संवेदनाओं को sसलाम आभार्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-55100808886100776222009-07-16T08:21:39.296+05:302009-07-16T08:21:39.296+05:30सुन्दर शब्द-चित्र खड़ा किया है आपने विनय जी। वाह।।...सुन्दर शब्द-चित्र खड़ा किया है आपने विनय जी। वाह।।<br /><br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.com