अमित अरुण साहू लम्बे समय से हिन्द-युग्म से जुड़े है और हमारी काव्य गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस माह हम इनकी एक कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जो जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सातवें पायदान पर रही है।
पुरस्कृत रचना- जहर तो प्यार की निशानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
आप आइये और मेरे साथ बैठिये जरा
सुनिए जहर की भी अपनी कहानी है ...
१) एक गरीब माँ अपने बच्चों की रोटी के लिए
रही बेचती जिस्म अपना बाज़ार में
जब बच्चे हुए बड़े और जाना ये सब
छोड़ आए माँ को अपनी मँझधार में
उसने कोई शिकवा और शिकायत न की
पी गयी जहर जिल्लत का बच्चों के प्यार में
न जाने ये कितनी माँओं की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
२) एक बूढ़ा था इस देश में कभी
सारा जीवन दूसरों के नाम किया था
अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर
हमेशा अपने देश के लिए जिया था
पर लगा दी लोगों ने उसपर भी तोहमत बँटवारे की
पी गया वो जहर तोहमत का देश के प्यार में
न जाने ये कितने देशभक्तों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
३) कहते है हुआ था समुद्रमंथन कभी
अमृत भी निकला था उसमे और गरल भी
स्वार्थ लोलुपों ने अमृत छक-छक कर पिया
पर छुआ नहीं उन्होंने गरल को कभी
ऐसे में आये भोले-भाले शिवशंकर वहीँ
और पिया जहर शिव ने अपनों के प्यार में
न जाने ये कितने शंकरों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
४) एक पतिव्रता थी जिसने पति के लिए
त्यागा राज-पाट और गयी जंगल की ओर
पग-पग पर दिया साथ उसने अपने पति का
पति के ही संग बंधी रही उसके मन की डोर
पर उसे भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा
पी गयी वो जहर कलंक का पति के प्यार में
न जाने ये कितनी पत्नियों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
प्रथम चरण मिला स्थान- ग्यारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- समीर लाल के कविता-संग्रह 'बिखरे मोती' की एक प्रति।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
jahar to pyar ki nishani hai.
sundar kavita..
badhayi!!!
yahi jahar to jindgi hai ......jo shayad har ek insaan ko kabhi na kabhi pini hoti hai ........sirf matra ka fark hota hai .........sundar rachana
शब्दों के मोती ने इस जहर को बहुत ही सुन्दर बना दिया है.
सच भी तो एक जहर ही है
पहले मुझे लगा कि यह शायद कोई प्रेम कविता होगी लेकिन पढने पर पता चला कि इस का नाम सिर्फ ऐसा है. जो बात आपने कही अच्छी लगी. मुझे ये पंक्तियाँ काफी अच्छी लगीं.
एक गरीब माँ अपने बच्चों की रोटी के लिए
रही बेचती जिस्म अपना बाज़ार में
जब बच्चे हुए बड़े और जाना ये सब
छोड़ आए माँ को अपनी मँझधार में
उसने कोई शिकवा और शिकायत न की
पी गयी जहर जिल्लत का बच्चों के प्यार में
न जाने ये कितनी माँओं की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
जिस तरह से आपने कटाक्ष किया वो मुझे कैफी आज़मी साहब की एक नज़्म से मिलता जुलता लगा. देखें.
एक दो भी नहीं छब्बीस दिये
एक इक करके जलाये मैंने
इक दिया नाम का आज़ादी के
उसने जलते हुये होठों से कहा
चाहे जिस मुल्क से गेहूँ माँगो
हाथ फैलाने की आज़ादी है
इक दिया नाम का खुशहाली के
उस के जलते ही यह मालूम हुआ
कितनी बदहाली है
पेत खाली है मिरा, ज़ेब मेरी खाली है
इक दिया नाम का यक़जिहती के
रौशनी उस की जहाँ तक पहुँची
क़ौम को लड़ते झगड़ते देखा
माँ के आँचल में हैं जितने पैबंद
सब को इक साथ उधड़ते देखा
आज की सामाजिक दशा का सच है बधाई.
पर उसे भी देनी पड़ी अग्निपरीक्षा
पी गयी वो जहर कलंक का पति के प्यार में
न जाने ये कितनी पत्नियों की कहानी है
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये
जहर तो प्यार की निशानी है .........
जहर और प्यार के संयोजन को एक मंजिल तक पहुँचाना बहुत कठिन मगर संवेदनायें तो वो कमाल करती हैं जो आदमी सोच नहीं सकता बहुत बडिया कविता बधाई्
जहर को इतनी गलत नज़र से न देखिये !
बहुत ही बेहतरीन ।
बहुत सुंदर कविता है हर शब्द सत्य है यही सब होता है धन्यवाद
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