अमित अरुण साहू हिन्द-युग्म को एक वर्ष से लगातार पढ़ते आ रहे है। 25 जून 1980 को जन्मे अमित के दुष्यंत कुमार प्रेरणास्रोत है व पंकज सुबीर ग़ज़ल-गुरु। एम. कॉम., एम. बी. ए. की पढ़ाई कर चुके अमित साहू बापू और विनोबा की कर्मभूमि वर्धा के बाशिंदे है। अकाउंट और अर्थशास्त्र के शिक्षक अमित ने हिन्द-युग्म पर ही सुबीर सर से गजल के प्रारंभिक पाठ पढ़े। इन्हें विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन, दुष्यंत कुमार, बशीर बद्र, निदा फाजली और प्रेमचंद को पढ़ना पसंद है। प्रतियोगिता में पहली बार इनकी कविता शीर्ष 10 में प्रकाशित हो रही है।
पुरस्कृत कविता- आतंकवादियों के नाम
कभी किसी की बात का ऐसा असर भी हो
बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो
आतंकियों के दिल में जगे प्यार की अलख
बीवी हो, बच्चे हो, प्यारा-सा घर भी हो
खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो
निहत्थों और बेगुनाहों पे गोलियां चलाना
हिजड़ों की करामात है, उन्हें खबर भी हो
क्या सोचते हो के खुदा तुम्हें जन्नत देंगा
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो
करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो
मैं कहता हूँ, तुम मुस्लिम हो ही नहीं सकते
बिना धर्म के हो तुम, ये तुमको खबर भी हो
प्रथम चरण मिला स्थान- तेरहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' के व्यंग्य-संग्रह 'कौआ कान ले गया' की एक प्रति।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या सोचते हो के खुदा तुम्हें जन्नत देंगा
हैवान होकर सोचते हो के बशर भी हो
वाह अमित ! बहुत सुन्दर लिखा है
करते हो हमेशा ही 'गैर मुसलमाना' हरकत
फिर सोचते हो के दुआ में असर भी हो
bhai waah ,subhaanallah
कितनी सुंदर रचना लिखी है अमित ने .. काश 'गैर मुसलमाना' हरकत करनेवाले समझ पाते !!
अमित जी,
बहुत अच्छी रचना .....
कभी किसी की बात का ऐसा असर भी हो
बदले ख़यालात और खुदा का डर भी हो
खुदा के नाम पर लगा रखी है जेहाद
खुदा की पाकीजगी का जरा असर भी हो
सुरिन्दर रत्ती
अमित जी,
बहुत सुन्दर रचना है!बधाई एवं शुभकामनाएं!
अरुण जी बहुत अच्छी कविता लिखी आपने., सही कहा आपने अगर ये भी अपना घर,बीबी,बच्चे के बारे में सोचें तो ये खून-ख़राब-करने से डरने लगेगे....अच्छी रचना बहुत-२ बधाई.....
आप सच कहते है दुआ में असर के लिए इन्सान को अच्छा भी होना चाहिए ,धर बच्चों की चाह जग जाये तो शायद ये आतंकी न बने
सुंदर सोच
बधाई
रचना
मुझे तो चलकर बाल-उद्यान देखना चाहिए,,
Bahut hi achhe, Amit ji...
बस और कुछ तो निकलता नहीं वाह के सिवा !!
मैने आपकी कविता बिना इजाज़त अपने ब्लाग पर डाली है, उसके लिये क्षमा चाहूँगा
http://yogi-collection.blogspot.com/2009/05/blog-post_1702.html
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