याद मुझे क्यों आया है
तू तो यार पराया है
फ़स्ले-ग़म में दीवाना
सचमुच ही बौराया है
तन्हा ही जाना होगा
तन्हा ही तू आया है
मुखड़ा तो है अनजाना
फिर क्यों मुझ को भाया है
सब पर तेरा रंग चढ़े
कैसी तेरी माया है
कैसे उसको ढूँढोगे
दिल में उसे छिपाया है
'श्याम'मदारी है तू तो
मजमा खूब जमाया है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
21 कविताप्रेमियों का कहना है :
Me first !! :-)
'श्याम'मदारी है तू तो
मजमा खूब जमाया है
Bahut khoob! Jo chhotisi image lagayi gayi hai Ghazal ke saath was bahut pyari lagi!
Pranaam
RC
तन्हा ही तुझे जाना होगा
तन्हा ही तू आया है
सारी गज़ल ही बहुत खूबसूरत है
श्याम मदारी है तू तो
श्ब्दों से भर्माया है
क्या कहूँ आप्के सज़दे मे
मन मेरा भर आया है
आभार्
जो निर्मला जी ने कह दिया उसे ही हमारी टिप्पणी भी समझें ,निर्मला जी माफ़ी चाहूंगी इससे अच्छी टिप्पणी हम लिख ही नहीं सकते इसलिए आप उधार दे दीजिये ,कभी कभी हिन्दयुग्म पर ये भी चलता है |
तस्वीर देखकर तो एक बार हैरानी हुई , अरे ये हमारे रामू-शामू मेरा मतलब हमारी कहानी के बंदर बाल-उद्यान से निकल हिन्द्युग्म पर कैसे घूमने निकल आए । लेकिन आपकी गज़ल पढकर पता चला कि यहां मदारी का खेल खेला जा रहा है तो रामू-शामू ने तो आना ही था । पूरी गज़ल बहुत ही कोमल शब्दों मे सुन्दर से भाव पिरोए बहुत अच्छी लगी लेकिन आखिरी शेयर तो कमाल है । बहुत-बहुत बधाई
seema sachdev
bahut khoob..
wah zanaab..
Bahut bahut sundar bhaavpoorn pravaahmayi rachna. .....
एक असाधारण रचनाकार की बहुत ही साधारण रचना...........
बहुत छोटे छोटे छेद हैं.... गजल में :
याद मुझे क्यों आया है
तू तो यार पराया है
यार भी है और पराया भी ??
मुखड़ा तो है अनजाना
फिर क्यों मुझ को भाया है
अनजाना मुखडा भी भा सकता है ये तो कोई नियम नहीं की सिर्फ जाना पहचाना मुखडा ही भाये इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?
'श्याम'मदारी है तू तो
मजमा खूब जमाया है
ये मक्ता बिलकुल भारती के शेर की तरह लगता है
बहुत खुब लाजवाबजी
mahaveer
'श्याम'मदारी है तू तो
मजमा खूब जमाया है
हम भी तो आपकी शायरी के इर्द-गिर्द ही नाचते रहते हैं | बहुत खूब, और सटीक | अब तो तारीफ़ के लिए शब्द भी कम पड़ने लगे हैं |
एक बार फिर, हम आपके आभारी हैं |
छोटी बहर में कमाल की ग़ज़ल श्याम साब..
अरुण जी,
भारती वाले मकते की बात कुछ समझा नहीं मैं,,,ज़रा खुलासा करें तो बेहतर ,,,
पर,,,,
याद मुझे क्यों आया है
तू तो यार पराया है
यार भी है और पराया भी ??
हाँ,
कोई बड़ी बात नहीं,,,,, इसमें कोई व्याकरण नहीं,,,,बल्कि एक ख़ास तजुर्बा कह रहा है,,,,,
और भगवान् ना करे के आप को कभी इस गहराई तक जाना पड़े,,,,,
पर ये भी होता है,,,, ऐसा भी होता है,,,,,,
मुझे तो जाने क्यूं,,,,,,
ये सहज लग रहा है,,
भरती लिख रहा था, अक्सर गजल को पूरा करने के लिए हम ऐसा कर देते हैं,
तू तो यार पराया है,
देखिये यहाँ थोडा तिलिस्म लग रहा है उसके हिसाब से ठीक है क्योंकि पहला मिसरा अच्छा है
मैं समझ गया आप क्या कहना चाह रहे हैं, दीक्षित जी का एक शेर है:
"कब कहाँ कौन दोस्त बन जाए
हादसों का पता नहीं होता"
चलिए इस शेर को मान लेते हैं बाकी मुझे रचना बहुत साधारण लगी
अरुण अद्भुत
virodhaabhaas alankaar ki ek apni khoobsoorti hoti hai ,
jaise saadhaarn logon ki asaadhaaran baaten ya phir ,
asaadhaaran logon ki saadhaaran baaten
Tooo Good shyam ji.
Chhote beher waali gazal bahut achhi lagti hai mujhe…
Kyoke inke kam shabdo me hi sab kuchh kehne ki kaabliyat hoti hai…
Waah !!yogesh
गज़ल कबूलने के लिये आप सभी का आभार ।
याद मुझे क्यों आया है
तू तो यार पराया है
के बारे में नीलम जी और मनु जी ने अच्छी तरह समझा दिया है अत: मेरे कहने को कुछ बचा नहीं
फ़िर भी जो ना समझे वो .......
श्याम सखा
जो ना समझे वो अनाडी................
लीजिये श्याम जी घबरा क्यों रहे हैं मैं पूरा कर देता हूँ
मैं तो अपनी राय देता हूँ ......... मुझे लगता है की इन सब चीज़ों से शायद कुछ मेरे जैसे युवा कवि सीख पायें इस प्रक्रिया में कई बार बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है
बाकी आप पर है...............
अरूण आप अच्छी तरह जानते हैं कि रोहतकी डर को भी डराना जानते हैं,बाकि गजलकार इशारों में कहने के आदि होते हैं आपने इशारा समझ लिया
कहा भी गया है समझदार को इशारा काफ़ी
और सीखने के लिये विनम्रता पहला गुण होता है
अक्खड़्पन से शिक्षार्थी को परहेज करना चाहिये
सस्नेह
श्याम सखा श्याम
अरे सर जी ...........फिर गजलकार ही रहिये ना...............
"एक रोहतकी सौ कौतकी बराबर होते हैं" .......... की कहावत को क्यों चरित्रार्थ कर रहे हैं
वैसे मुझे सांकेतिक और व्यंग्य भरी चीज़ों कि अपेक्षा सीधे सीधे संवाद करना पसंद है इसलिए मैंने आपका अधूरा वाक्य पूरा कर दिया था ..........
आपने अगर शिक्षार्थी शब्द मेरी लिए प्रयोग किया है तो आपका आभारी हूँ, .... मैं तो सारी उम्र में भी साहित्य का एक सच्चा विद्यार्थी भी बन सकूं तो ये मेरा सौभाग्य होगा,
अच्छा लगा कि आपने डरा भी दिया और स्नेह भी जता दिया, बहुत पसंद आया आपका ये अंदाज़......
साहित्य सृजन में हर चीज़ को सकारत्मक लिया जाए तो अच्छा है.......
बहुत ही सम्मान के साथ
अरुण "अद्भुत"
छोटे बहर में आपका कोई मुकबला नहीं श्याम जी..
पहला शे’र सबसे अधिक पसंद आया...
याद मुझे क्यों आया है
तू तो यार पराया है
Arun adbhut ne shyaam sakha ki phaad kar rakh di...do kodi ki ghazal.
Amitabh
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