आजकल यूँ घुला है जहर धूप में
पल में धुंधला गई हर नज़र धूप में
जो अँधेरे में बरसों से गुमनाम था
आते ही हो गया बेबसर धूप में
उसने शायद सियासत की परवाह न की
बस तभी है अकेला वो घर धूप में
छाँव गाँवों में पीपल की हो जायेगी
पर जलेगा बहुत ये शहर धूप में
शब तो रहती है वीरान ही देखिये
आज होने लगा हर कहर धूप में
वक्त ले आया है हमको किस मोड़ पर
लग रहा है अंधेरों का डर धूप में
ना ही यादे किसी की ना साथी कोई
कितना तनहा हुआ है सफ़र धूप में
सच के साए में "अद्भुत" जला आशियाँ
हमको रहना पड़ा उम्र भर धूप में
बेबसर= अंधा
(बहर: फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन)
अरुण मित्तल "अद्भुत"
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
सच के साए में "अद्भुत" जला आशियाँ
हमको रहना पड़ा उम्र भर धूप में
बहुत सुन्दर ! अद्भुत जी !
छाँव गावों में पीपल की हो जाये गी......!मेरे को ये पंक्ति बहुत अच्छी लगी...!गाँव में लोग अब भी प्र्यावन के प्रति सचेत है..जबकि शहर कंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित हो चुके है...और धुप में जलते ही रहेंगे...!बहुत अच्छी रचना...
शानदार गजल अरुण जी,,,,
सभी शेर खूबसूरत,,,,
और कुछ शेर तो एकदम कमाल,,,,
शब तो रहती है वीरान ही देखिये
आज होने लगा हर कहर धूप में
वक्त ले आया है हमको किस मोड़ पर
लग रहा है अंधेरों का डर धूप में
बहुत दमदार,,,,
मतला और maqta ,,,,
दोनों ही गजल की जान हैं,,,
हाँ,
bebasr के लिए jaroor poochhnaa hotaa yadi आपने arth न लिखा hotaa तो....
आजकल यूँ घुला है जहर धूप में
पल में धुंधला गई हर नज़र धूप में
छाँव गाँवों में पीपल की हो जायेगी
पर जलेगा बहुत ये शहर धूप में
Bilkul sahi kaha.Aajkal prayavran me parivartan se jo tabaahi ho rahi hai , uske liye ham khud hi jimmedar hain.
ना ही यादे किसी की ना साथी कोई
कितना तनहा हुआ है सफ़र धूप में
Maja aa gya......
Arun sir aap jo bhi likhte hain kamal ka likhte hai....
Kash ye gazal kabhi khatam hi nhi hoti.....
Aap ko bahut bahut badhai iss RACHNA ke liye.....
....................RKB
एक मुश्किल रदीफ़ को इतनी बखूबी निभाते हुये इतनी अच्छी ग़ज़ल कहने के लिये दिल से बधाईयां स्वीकार कीजिये अरुण जी
सारे शेर बहुत अच्छे बन पड़े हैं। खास कर "छाँव गाँवों में पीपल की हो जायेगी" वाला शेर तो माशाल्लाह...अच्छे शेर की सबसे बड़ी खासियत ये होती है कि सामने वाला सोचने लगता है कि हाय ये मैंने क्यों नहीं कहा। कुछ ऐसा ही हाल मेरे साथ हुआ अपके इस बेमिसाल शेर को पढ़ कर...
बस तीसरे शेर में कुछ उलझन सा महसूस किया...मिस्रा-उला का "उसने" मिस्रा-सानी के "घर" के साथ जा नहीं रहा है। शायद मेरी कम-इल्मी वजह हो...
और मक्ता तो बस पूरा अरुणमय हो रखा है
बधाई फिर से
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