तुम बिन
सपाट सूनापन
याद कण कण
में पसर जाना,
सजा कर
लपटे जुल्फों की ,
इठलाना बलखाना
संवर जाना ,
बेतरतीब कर के
रूह की सिलवटें मेरी,
दुपट्टे का सर से
उतर जाना,
चमक ले चांद से,
अपने चहरे पर,
तुम और भी
संवर जाना ,
हिचकना कैसा
ये तो है चलन
जमाने का,
चुरा नूर ओरों का ,
खुद और भी
निखर जाना ,
मुझे ना आजमाना
मैं सच का सौदाई हूँ,
अक्स तेरा ही मिटेगा
जो उतरी मेरी कलई
मेरा क्या ,
मैं तो आईना हूँ ,
और
मेरा मुकद्दर है
गिरना,
छनकना,
टूटकर बिखर जाना’
सनद
*
अश्क, आहे, लहू होते वसीयत में,
आईनों का अस्थिसंचय नहीं होता
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
waah ! waah ! waah !
Adwiteey...bahut bahut sundar rachna....
Aanand aagaya padhkar.Aabhar.
बहुत ही सुंदर पढ़ के अच्छा लगा
अश्क, आहे, लहू होते वसीयत में,
आईनों का अस्थिसंचय नहीं होता
क्या लिखा है शब्द नहीं लिखने को
बीच में ,और * कैसे आगया
क्या कुछ सोच के डाला है ?
सादर
रचना
चमक ले चांद से,
अपने चहरे पर,
तुम और भी
संवर जाना ,
yahaan par 'tum' nahi ho ga. ya 'khud' ho ga ya 'tumhara'.
rachna kamzor hai m'amuli bhaav wali ,chand ek lines ko chhod kar.
वाह!!
अश्क, आहे, लहू होते वसीयत में,
आईनों का अस्थिसंचय नहीं होता
मुझे ना आजमाना
मैं सच का सौदाई हूँ,
अक्स तेरा ही मिटेगा
जो उतरी मेरी कलई
मेरा क्या ,
मैं तो आईना हूँ ,
वाह विनय जी ! बहुत अच्छा लिखा है।
अपना चेहरा देख कर लोग आईने पर गुस्सा
नेकालते हैं ।
सजा कर
लपटे जुल्फों की ,
इठलाना बलखाना
संवर जाना ,
बेतरतीब कर के
रूह की सिलवटें मेरी,
दुपट्टे का सर से
उतर जाना,
KYA BAAT HAI ! WAAH SHUBHANALL !
'''SHAHNAAZ'''
ये सच कहा है विनय जी....
आईने का कोई भी अस्थी-संचयन नहीं होता...
सच का सौदाई जो है....
कवितओं के मामले में आपको चूजी होने की ज़रूरत है।
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