पत्नी जाती है
सुबह की पाली में
चिट लगा जाती है
‘ओवन मे
रखा है नाश्ता
कर लेना गर्म
और खा लेना,
गुड्डु को क्रच में
छोड़ कर
आज भी देर से
पहुंचूगी आफ़िस,
हां अलार्म लगा दिया है
प्लीज उठ जाना
एक बजे
ले आना गुड्डू को '
पति उठता है
चिट पर लिखे
काम निबटाता है
अलार्म लगाकर फ़िर
पसर जाता है
अलार्म सुन उठता है
रात की पाली है
जाते हुए
लिखता है
‘रोते हुए गुड्डु को
छोड़ आया था नानी के घर,
दूधकी बोतलें,
फल-सब्जियां
सब रख दी हैं फ़्रिज में .
थका हूं बेहद
माथा भी गर्म है
मगर रात की पाली
का निभाना धर्म है
पर चलो आज फ़्राइडे है
कल का वीक-एंड तो हमारा है,
“जानू”
बस जीने का
बचा यही सहारा है''
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
मै यहाँ यही सब रोज देखती हूँ आप ने बहुत ही सुंदर चित्रण किया .क्या खूब लिखा है
वैसे भी आप हमेशा ही बहुत अच्छा लिखते हैं
सादर
रचना
वक्त की कविता है, यथार्थ चित्रण है। हमेशा जीवित रहेगी।
बहुत करारा व्यंग्य है!!!!
बहुत सुन्दर पारिस्थिक चित्रण....
मजा आ गया पढ़ कर.
सादर
शैलेश
श्याम जी, शहरों की थकी-थकी यान्त्रिक जिन्दगी का
यथार्थ चित्रण है ; बधाई
आज के युग का यथार्थ है... अंतिम पंक्तियों मे आशा का दीप जल उठा...जो भी मिले उसी मे खुश रहने का भाव प्रभाव छोड़ रहा है...
जी दर्पण दिखा दिया श्याम जी
माधुरी
sahi likhaa hai paro ji ne....
hummmn...
बहुत अच्छा लिखा है ........ आज के सन्दर्भ में हमारी जिन्दगी इतनी मशीनी हो गयी है की हमें हर काम पर्ची पर लिख कर करना पड़ रहा है..... जहाँ हर समय एक गणित हमारे मन में चलता रहता है, और उसी चक्कर में पूरा वीक निकल जाता है
सच तो ये है की निन्यानवे के फेर में आजकल वीकएंड भी व्यस्त होते जा रहे हैं.........
अच्छा लगा की हम सोचते तो हैं ....
अरुण अद्भुत
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