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Friday, June 12, 2009

खयाल-खयाल होते हैं


प्रतियोगिता की पाँचवीं कविता युवा कवि उमेश पंत की है। उमेश पंत की कविताएँ अपने नये बिम्बों ने लिए पहचानी जाती हैं। इनकी एक कविता पहले भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

पुरस्कृत कविता- तुम्हारा ख़्याल

गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।

सपने,
गीली माटी जैसे
धूप में चटक जाती है
वैसे टूट रहे थे ज़र्रा-ज़र्रा
तुम्हारा खयाल
जब गूंथने चला आया मिट्टी को
सपने महल बनकर छूने लगे आसमान।

तुम उगी
कनेर से सूखे मेरे खयालों के बीच
और एक सूरजमुखी
हवा को सूंघने लायक बनाता
खिलने लगा खयालों में।

पर खयाल-खयाल होते हैं।
तुम जैसे थी ही नहीं
न ही पानी, न मिट्टी, न महक।
गला सूखता सा रहा।
धूप में चटकती रही मिट्टी।
कनेर सिकुड़ते रहे
जलाती रेत के दरमियान।
और खयाल...........?

औंधे मुंह लेटा मैं
आंसुओं से बतियाता हूं
और बूंद दर बूंद
समझाते हैं आंसू
के संभाल के रखना
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।


प्रथम चरण मिला स्थान- सोलहवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- पाँचवाँ


पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

mohammad ahsan का कहना है कि -

न ही पानी, न मिट्टी, न महक।
गला सूखता सा रहा।
धूप में चटकती रही मिट्टी।
कनेर सिकुड़ते रहे
जलाती रेत के दरमियान।

sundar panktiyaan

Manju Gupta का कहना है कि -

जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।
Uperyukt panktiyo mein kavita ka nichod hai.khayalo ko najar na lage.prem ki tarang bani rahe.


Manju Gupta.

rachana का कहना है कि -

गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।
क्या खूबसूरत बिम्ब हैं ताजगी का अहसास लिए हुए
रचना

sangeeta sethi का कहना है कि -

हाँ ! आंसू समझाते है कि जेबों में रखे है खूबसूरत ख्याल
जेबकतरे घूमते हैं यहाँ
सच पन्त जी ने दुनिया की नब्ज़ को पकडा है ! इतनी खूबसूरत कविता के लिए बधाई |

manu का कहना है कि -

पढ़ कर मजा आया,,,
बहुत सुंदर लिख है आपने,,,,

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सपने,
गीली माटी जैसे
धूप में चटक जाती है
वैसे टूट रहे थे ज़र्रा-ज़र्रा
तुम्हारा खयाल
जब गूंथने चला आया मिट्टी को

बहुत ही शुन्दर कविता है. मुबारकबाद कुबूल करें.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत ही भावनात्मक रचना है बधाई

Unknown का कहना है कि -

सभी टिप्पणीकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद। हर कविता प्रतिक्रियाओं की प्यास लिए उपजती है। हमेशा आपकी प्रतिक्रियाओं की दरकार रहेगी। इस बार हिन्दयुग्म ने मेरी कविता के परिचय में नये बिम्बों के लिये पहचाने जाने का जिक्र किया है। इस पहचान को बनाने के लिये हिन्दयुग्म का शुक्रगुजार हूं।

प्रिया का कहना है कि -

औंधे मुंह लेटा मैं
आंसुओं से बतियाता हूं
और बूंद दर बूंद
समझाते हैं आंसू
के संभाल के रखना
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।

man ko choo liya in panktiyon ne

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।

......लाजवाब

Ambarish Srivastava का कहना है कि -

अच्छी रचना !
मगर बचकर रहना !

जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।

Unknown का कहना है कि -

नए प्रतीकों ने और बिम्बों ने रचना को सुन्दर बना दिया है ..बधाई

sandeep chaudhary का कहना है कि -

very sensible and heart touching creation. Congratulation.

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