प्रतियोगिता की पाँचवीं कविता युवा कवि उमेश पंत की है। उमेश पंत की कविताएँ अपने नये बिम्बों ने लिए पहचानी जाती हैं। इनकी एक कविता पहले भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
पुरस्कृत कविता- तुम्हारा ख़्याल
गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।
सपने,
गीली माटी जैसे
धूप में चटक जाती है
वैसे टूट रहे थे ज़र्रा-ज़र्रा
तुम्हारा खयाल
जब गूंथने चला आया मिट्टी को
सपने महल बनकर छूने लगे आसमान।
तुम उगी
कनेर से सूखे मेरे खयालों के बीच
और एक सूरजमुखी
हवा को सूंघने लायक बनाता
खिलने लगा खयालों में।
पर खयाल-खयाल होते हैं।
तुम जैसे थी ही नहीं
न ही पानी, न मिट्टी, न महक।
गला सूखता सा रहा।
धूप में चटकती रही मिट्टी।
कनेर सिकुड़ते रहे
जलाती रेत के दरमियान।
और खयाल...........?
औंधे मुंह लेटा मैं
आंसुओं से बतियाता हूं
और बूंद दर बूंद
समझाते हैं आंसू
के संभाल के रखना
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।
प्रथम चरण मिला स्थान- सोलहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
न ही पानी, न मिट्टी, न महक।
गला सूखता सा रहा।
धूप में चटकती रही मिट्टी।
कनेर सिकुड़ते रहे
जलाती रेत के दरमियान।
sundar panktiyaan
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।
Uperyukt panktiyo mein kavita ka nichod hai.khayalo ko najar na lage.prem ki tarang bani rahe.
Manju Gupta.
गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।
क्या खूबसूरत बिम्ब हैं ताजगी का अहसास लिए हुए
रचना
हाँ ! आंसू समझाते है कि जेबों में रखे है खूबसूरत ख्याल
जेबकतरे घूमते हैं यहाँ
सच पन्त जी ने दुनिया की नब्ज़ को पकडा है ! इतनी खूबसूरत कविता के लिए बधाई |
पढ़ कर मजा आया,,,
बहुत सुंदर लिख है आपने,,,,
सपने,
गीली माटी जैसे
धूप में चटक जाती है
वैसे टूट रहे थे ज़र्रा-ज़र्रा
तुम्हारा खयाल
जब गूंथने चला आया मिट्टी को
बहुत ही शुन्दर कविता है. मुबारकबाद कुबूल करें.
बहुत ही भावनात्मक रचना है बधाई
सभी टिप्पणीकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद। हर कविता प्रतिक्रियाओं की प्यास लिए उपजती है। हमेशा आपकी प्रतिक्रियाओं की दरकार रहेगी। इस बार हिन्दयुग्म ने मेरी कविता के परिचय में नये बिम्बों के लिये पहचाने जाने का जिक्र किया है। इस पहचान को बनाने के लिये हिन्दयुग्म का शुक्रगुजार हूं।
औंधे मुंह लेटा मैं
आंसुओं से बतियाता हूं
और बूंद दर बूंद
समझाते हैं आंसू
के संभाल के रखना
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।
man ko choo liya in panktiyon ne
गर्मियों में सूखते गले को
तर करते ठंडे पानी-सा
उतर आया ज़हन में।
और लगा
जैसे गर्म रेत के बीच
बर्फ की सीली की परत
ज़मीन पर उग आई हो।
......लाजवाब
अच्छी रचना !
मगर बचकर रहना !
जेबों में भरे खूबसूरत खयाल
घूमते हैं यहां जेबकतरे।
नए प्रतीकों ने और बिम्बों ने रचना को सुन्दर बना दिया है ..बधाई
very sensible and heart touching creation. Congratulation.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)