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Friday, May 08, 2009

मछली को तलें तेल में या शुद्ध देसी घी में, क्या फर्क पड़ता है


आज हम अप्रैल महीने की यूनिकवि प्रतियोगिता की चौथी कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इसके रचनाकार दिबेन पहली बार हिन्द-युग्म में शिरकत कर रहे हैं। 13 अक्टूबर 1955 को मुज़फ़्फ़पुर (उ॰प्र॰) में जन्मे दिबेन की लघुकथाओं की दो पुस्तकें, तथा कविताओं की एक पुस्तक (काँच के ताजमहल) प्रकाशित हो चुकी हैं। एम॰ए॰, एल॰एल॰बी॰ तथा वनस्पति विज्ञान में बी॰एसी॰ की आदि की पढ़ाई कर चुके दिबेन इन दिनों बहादुरगढ़ (हरियाणा) में रहते हैं।

पुरस्कृत कविता- मछली रानी

मछली को तलें तेल में
शुद्ध देसी घी में या वीटा में
या मिल्क फूड में
मछली पर क्या फर्क पड़ता है ?

बंसी में लगी कच्चे आटे की गोली
उसके विश्वास को छल गई
धनिया की बेटी संतरा
कच्चे आटे की महक के पीछे
सराए में जो गई अभी तक नहीं लौटी
सराए के बंद तिलस्मी दरवाजे पर धनिया
उसकी बाट जोहती
दिल में एक रोटी का सपना लिए सोती
तो आखों में नींद नही होती।

दरवाजे की झिर्रियों से सटी
वह; अंदर से आ रही सिसकियों; सिसकारियों से
कोई बू पाने की चेष्टा करती
हां! शायद
.......रोटी सिकनें की नहीं
गोश्त जलने की गंध है
वे लोग; संतरा का गोश्त पका रहे हैं
जश्न मना रहे हैं

अब;
सराय हो या फाइव़ स्टार होटल;
रेलवे स्टेशन; बस अड्डे का मुसाफिर खाना
या किसी रेडलाइट एरिया में
किसी चकले की बदबूदार सीलन भरी कोठरी
संतरा पर क्या फर्क पड़ता है ?



प्रथम चरण मिला स्थान- चौथा


द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा


पुरस्कार- अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक प्रति।

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

दिबेन जी,

नमस्कार!

एक बहुत अच्छी कविता "मछली रानी" जो हमें आगाह करती है कि काँटे कहीं भी हो सकते हैं जरा सावधानी रखी जाये। फिर वो धनिया के माध्यम से हो या संतरा के प्रतीक से, एक तिलमिलाता हुआ व्यंग्य कसती है आज के प्रचलन पर। जहाँ लड़कियाँ सरे आम उठा ली जाती हैं फिर इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाती हैं।

रचना के लिये और प्रतियोगिता में चयन के लिये बधाईयाँ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Divya Narmada का कहना है कि -

badhaee

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

प्रतियोगिता में स्थान पाने के लिए बहुत बधाई,रचना की गूढता प्रशंसनीय है...

Saurabh kumar का कहना है कि -

kafi anubhav ke baad hi aisi soch nikal kar aati hai kalam se jisme samkalin parishthiti ke sath sath bandish bhi kabhi kabhi jhalakti hai.
Hindi sewa jai ho..

Saurabh Kumar

संगीता पुरी का कहना है कि -

बहुत बढिया लिखा आपने .. बधाई।

manu का कहना है कि -

बंसी में लगी कच्चे आटे की गोली
उसके विश्वास को छल गई
बहुत मार्मिक लगिए पंक्तियाँ,,,
चौथे स्थान की बधाई,,,

mohammad ahsan का कहना है कि -

सतही भावुकता में deep fried कविता. तेल चू रहा है

neelam का कहना है कि -

ahsan bhaai ,

agli machli talne ke kaam me aayega wo tel .

ek adbhut,ytaarthpark ,samsaamyiyk ,rachna .baat ka marm samjhen ,baaki rahne hi diya jaay ,kathya ,shilp ,ki vivechna ki jaroorat hai hi nahi shaayad

mohammad ahsan का कहना है कि -

neelam ji,
kisi bhi hindi akhbaar ka page 3 khol len, aadhi khabrain apharan ki hi rehti hain. un apharno mein aadhe apharan isi aate wali vidhi se hi hote hain. baqi apharnon mein aate ke substitutes rehte hain.
-mohammad ahsan
09415409325
ahsaanluck@gmail.com

दिपाली "आब" का कहना है कि -

bahut hi marmsparshi rachna kavita kahi hai sir.

badhai puraskaar ke liye, aur is khoobsurat kavita ke liye.

likhte rahiye.

manu का कहना है कि -

क्या बात है अहसान जी,,,,,
आज तो फोन शोन,,,,ईमेल वीमेल,,,,,,,,,,,
पर यदि ये खबरें अखबार में होती भी हैं तो क्या,,,?
क्या इन पर एक छंद मुक्त कविता नहीं हो सकती,,,???
अब दिबेन जी ,,आप पेज ३ छोडिये और आखिरी पेज से कोई कविता बनाइये,,,,,
नदीpul,,,
सा कुछ...

Unknown का कहना है कि -

manu ki farmaish par
too nadi thi,ret thi yaa gun-guni si dhoop thi
zikra tera har ghazal me baraha hota raha.
diben

Unknown का कहना है कि -

thanks for every comment.
diben.

mohammad ahsan का कहना है कि -

नीरवता की चादर ओढे जब रात सिमट आए
हर तारा बन जाए दीप तुम्हारी यादों का
- ahsan

Unknown का कहना है कि -

Bhai ahsaan,shukriya!
hum to yahan Banwas bhog rahe hain.
Banwas ki raton me hum ye soch ke jage aksar.
us shahar me chand ko ab kaun sulats hoga?
diben.

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