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मछली को तलें तेल में या शुद्ध देसी घी में, क्या फर्क पड़ता है


आज हम अप्रैल महीने की यूनिकवि प्रतियोगिता की चौथी कविता प्रकाशित कर रहे हैं। इसके रचनाकार दिबेन पहली बार हिन्द-युग्म में शिरकत कर रहे हैं। 13 अक्टूबर 1955 को मुज़फ़्फ़पुर (उ॰प्र॰) में जन्मे दिबेन की लघुकथाओं की दो पुस्तकें, तथा कविताओं की एक पुस्तक (काँच के ताजमहल) प्रकाशित हो चुकी हैं। एम॰ए॰, एल॰एल॰बी॰ तथा वनस्पति विज्ञान में बी॰एसी॰ की आदि की पढ़ाई कर चुके दिबेन इन दिनों बहादुरगढ़ (हरियाणा) में रहते हैं।

पुरस्कृत कविता- मछली रानी

मछली को तलें तेल में
शुद्ध देसी घी में या वीटा में
या मिल्क फूड में
मछली पर क्या फर्क पड़ता है ?

बंसी में लगी कच्चे आटे की गोली
उसके विश्वास को छल गई
धनिया की बेटी संतरा
कच्चे आटे की महक के पीछे
सराए में जो गई अभी तक नहीं लौटी
सराए के बंद तिलस्मी दरवाजे पर धनिया
उसकी बाट जोहती
दिल में एक रोटी का सपना लिए सोती
तो आखों में नींद नही होती।

दरवाजे की झिर्रियों से सटी
वह; अंदर से आ रही सिसकियों; सिसकारियों से
कोई बू पाने की चेष्टा करती
हां! शायद
.......रोटी सिकनें की नहीं
गोश्त जलने की गंध है
वे लोग; संतरा का गोश्त पका रहे हैं
जश्न मना रहे हैं

अब;
सराय हो या फाइव़ स्टार होटल;
रेलवे स्टेशन; बस अड्डे का मुसाफिर खाना
या किसी रेडलाइट एरिया में
किसी चकले की बदबूदार सीलन भरी कोठरी
संतरा पर क्या फर्क पड़ता है ?



प्रथम चरण मिला स्थान- चौथा


द्वितीय चरण मिला स्थान- चौथा


पुरस्कार- अनुराग शर्मा तथा अन्य 5 कवियों के कविता-संग्रह 'पतझड़ सावन बसंत बहार' की एक प्रति।