मनु बेतखल्लुस हिन्द-युग्म की यूनिकवि एवं॰ यूनिपाठक प्रतियोगिता में लगातार भाग लेते रहते हैं। इन्होंने अप्रैल माह की प्रतियोगिता में भी हिस्सा लिया, जहाँ इनकी कविता ने नौवाँ स्थान बनाया।
पुरस्कृत कविता- हो मुश्किल बहर से लाचार जैसे काफिया कोई
तेरी जिद से परीशां है तेरा ही आशना कोई
हो मुश्किल बहर से लाचार जैसे काफिया कोई
खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई
वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई
न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई
कहाँ तो वक़्त काटे जा रहा है 'बे-तखल्लुस' को
कहाँ देखा गया है वक़्त अपना काटता कोई...
प्रथम चरण मिला स्थान- पहला
द्वितीय चरण मिला स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- विवेक रंजन श्रीवास्तव 'विनम्र' के व्यंग्य-संग्रह 'कौआ कान ले गया' की एक प्रति।
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28 कविताप्रेमियों का कहना है :
वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई
kya baat hai manu ji.. maja aa gaya..
badhaai...
waise... hindyugm ke members aur pathak sab ko mila bhi lo to ek hi naam allrounder ke liye niklega...
aur wo aapka hoga.. :-)
मनु जी,
बहुत अच्छे अशआर कहें है, गज़ल उम्दा है (मेरी अपनी समझ से नही तो फिर कोई कह बैठेगा कि मुझे यह भी समझ नही, यदि ऐसा है तो मुआफी चाहूंगा कि गुस्ताखी पे गुस्ताखी किये जा रहा हूँ)।
मुझे तो यह बंद बहुत पासंद आया (अब कोई कारण ना पूछे, इतनी समझ की मुझसे अपेक्षा ना रखी जाये):-
सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई
बधाईयाँ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मनु जी
आप का लिखा पढना हमेशा सुखदाई होता है .आप की तुलिका को तो हम सदा नमन करते हैं ये गजल मुझे हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर लगी .सारे शेर सुंदर हैं .खास कर ये
खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
सादर
रचना
मनु जी
आप का लिखा पढना हमेशा सुखदाई होता है .आप की तुलिका को तो हम सदा नमन करते हैं ये गजल मुझे हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर लगी .सारे शेर सुंदर हैं .खास कर ये
खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
सादर
रचना
maf kijiyega do bar cha gaya
rachana
मनु जी!
गजल मन को छू गयी. बधाई. आप युग्म के नव रत्नों में हैं.
मनु जी,
आपने कितने सुंदर शेर लिखे हैं. कमाल कर दिया.....किस-किस शेर की तारीफ़ करी जाये? सब एक से एक बढ़कर हैं. Exellent! उर्दू भाषा भी कितनी खूबसूरत है. मुझे अपनी knowledge को develop करने का चांस ही नहीं मिला अपने ज़माने में. I just missed the boat.
हाँ मनु जी, मैं भी आचार्य जी की बात से बिलकुल सहमत हूँ.
और आपमें छिपी प्रतिभा छिपाने पर भी आप छिपा नहीं सकते. मुझे अपने बकबास वाले शेर व दोहे अब लिखने बंद करने होंगे. इन शेरों के आगे तो वह पानी भरने वाले भी नहीं हैं. वाकई में बहुत ही मज़ा आया पढ़कर. बस ऐसे ही आगे भी बढ़िया-बढ़िया शेर लिखकर हम सब का ढेर करते रहिये. (ही..ही...ही..) वाकई में मैंने कोई झूठ नहीं कहा.. कुछ भी नहीं. आपको बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं.
मेरे ब्लौग के हिंदी-युग्म वाले लिंक में आज जब ये मिस्रा एकदम से उभर कर आया, तो मन की उत्सुकता ने पहले ही मनु के बेतखल्लुसी की घोषणा कर दी कानों में मेरे और देखा तो सचमुच ये मनु जी की ही ग़ज़ल निकली...और हैरान हूँ कि ये नौवें स्थान पर है।
हैरान हूँ, हैरान हूँ, हैरान हूँ...
पूरी तरह बहर पे चुस्त ग़ज़ल को कहने वाला शायर जब इस अदा से काफ़िये की लाचारी प्रदर्शित करता है, तो मन-आँखें-समझ-सोच सब-के-सब हैरान हो उठते हैं इकट्ठा।
मतले ने बस जान ही नहीं निकाली है मनु जी, वर्ना कोई कसर नहीं रह गयी थी...
मतले से नीचे उतरता हुआ एक-एक शेर पे वाह-वाह निकालता हुआ अचानक से ठिठक जाता हूँ इस "सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है/दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई" अशआर पर आकर...लगा कि "मीर" की अदब वाला ये शायर यहाँ क्या कर रहा है हम अदनों के बीच...!!!!
इस शेर पर मनु जी कुछ भी माँग लो आप कभी भी।
इसके बाद कुछ और पढ़ने का मन नहीं....
हाँ, किंतु मक्ता भी अलग से खड़ा हो दाद माँग रहा है।
लगता है दिल्ली में कुछ और वक्त गुजारना पड़ेगा संग आपके इस अज़ीम ग़ज़ल को आपसे तरन्नुम में सुनने के लिये...
i salute you sir, with my sincere regards !
bahut hi khoobsoorat, kase bandhe ash'ar, umda taghazzul, achchhi naghmagi. wah bahut khoob, mubaarak manu saheb.
itni umda ghazal 9 number par ! main keh raha huun kahiin kuhh hindyugm mein gadbad hai.
منو صاحب
سوچا کیوں نھ آپ کی غزل کی تعریف اردو میں کر دی جاےء- ابھی کمپیوٹر پر لکنے کی مشق کر رھا ھوں
खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को
मेरी राहों तलक भी आये उनका रास्ता कोई
walllllllah ,bahut khoob ,
भई --खूब-खूब खूब
आपकी कैफ़ियत और मगरूर होना दोनो में क्या नजाकत है-बधाई
वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई
श्याम सखा
Speechless.
अब इतनी टिप्पणियों के बाद मेरे पास कुछ नहीं बचा है लिकने के लिए दूसरों के ही शब्द उठाकर लिखता हूँ
गौतम जी की बात से सहमत हूँ की उन्होंने सबसे उम्दा शेर का जिक्र किया वही मुझे भी सबसे अच्छा लगा ........ गजब है ऐसी कम ही गजले पढने को मिलती हैं
गाफिल साहब के शब्दों में कहू
"एक एक शेर गजल में गाफिल
एक नगीना सा जड़ा हो जैसे
सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई
दो बार दुसरे मिसरे में भला शब्द आने से सौंदर्य कुछ कम हो रहा है
अगर कोई वैकल्पिक शब्द जुड़ कर ये ठीक हो जाए तो कमाल हो जाए शेर तो वैसे लाजवाब है ही
पर इस से अच्छा मक्ता तो मिलना मुश्किल है :
कहाँ तो वक़्त काटे जा रहा है 'बे-तखल्लुस' को
कहाँ देखा गया है वक़्त अपना काटता कोई...
और ये भी आपका ही शेर (मक्ता) है न जिसका मैं पहले दिन से ही फैन हूँ :
"बेताखाल्लुस इसलिए बेमकता कहता है गजल
कुछ कसक बाकी रहे हर बात कह लेने के बाद
क्या बात है यहाँ तो आपके मक्ता कह लेने के बाद भी कसक बाकी है
की बात है, यहाँ तो आपके मक्ता कह लेने के बाद भी बहुत कसक बाकी है
अरे वाह मनु जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल है. हमें बड़ी पसंद आई :)
बस थोडी देर हो गयी आने में :)
सुना था दर्द बढ़ जाने से भी आराम मिलता है
दवाओं का भला अहसां उठाये क्यूं भला कोई
इस शेर की दूसरी पंक्ति में "भला" शब्द का इस्तेमाल दो बार कुछ अच्छा नहीं लग रहा . अगर कुछ ठीक कर सकें तो जरूर कीजियेगा .
arun ji ne bhi yehi baat likh di hai.... :)
जी अद्भुत जी,
अभी लौट कर देखा तो पाया के ये लाइन वाकई में गलत छाप गयी है मुझ से ,,,ये थी,,,
" दवा का फिर कहो अहसां उठाये क्यूं भला कोई "
आपका विशेष शुक्रिया केवल सौन्दर्य ही नहीं खराब हो रहा था अपितु अटपटा सा भी लग रहा था,,,
मेजर साब ,
आपका इंतज़ार है , अभी पिछ्ला जश्न भी बाकी है,,,,
जब आप ज्यादा खुश होते हैं तो थोडी और ओल्ड,,,,,
पर इतनी तारीफ ना करें के बन्दा अगली गजल पेश करने की ही हिम्मत ना कर सके,,,,,
ये मेरी khushnaseebi है के मैं आप लोगों से jud गया हूँ,,,,,
आप सभी को मेरी तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद ,,, हौसला अफजाई का शुक्रिया,,,,
ahsan जी,
pahli बार urdoo में kament देखा है yugm पर ,,,बहुत achchhaa लगा,,,,
पर मैं मुश्किल से jod jugaad कर पढ़ paataa हूँ,,,,अभी दो साल पहले ही घर में कायदा लाकर सीखने की कोशिश की थी,,,फिर बीच में ही छूट गयी ,,,क्यूंकि कोई सीखाने वाला नहीं था ,,
इतना ही पल्ले पडा है के,,,,,,
"मनु साहेब,
सोचा क्यों ना आपकी गजल की taareef urdoo में कर दी जाए , (achchhi या अभी) ,,,,
बस जी,,,,,
poori तरह से aankhe thak गयी तब jaaker itaa ही samjh aayaa है,,,.
yadi एक बार और kasht करके samjhaa दे तो meharbaani होगी,,,,
पर ये है के इस comment को पढ़ कर puraani exersice हो गयी एक बार,,,,,,,agr ये shaayad ज्यादा motaa likhaa hotaa तो ekaadh शब्द और samjh pataa
शुक्रिया,,,,,
منو صاحب
سوچا کیوں نھ آپ کی غزل کی تعریف اردو میں کر دی جاےء- ابھی کمپیوٹر پر لکنے کی مشق کر رھا ھوں
मनु साहब,
आप की ग़ज़ल तो खैर बहुत काबिल त'अरीफ़ है ही , इस पर किसी किस्म की ऊँगली उठाना सिर्फ बेवकूफी हो गी, मैं तो थोडा कट्टर समालोचक हूँ लेकिन इस ग़ज़ल की त'अरीफ आप के दुश्मन भी कर बैठें गे. हाँ इतना ज़रूर ख़याल आया कि इस ग़ज़ल में लिपि को छोड़ कर सभी कुछ तो उर्दू है, ग़ज़ल की रवाएत, लहजा, मिजाज सभी कुछ तो उर्दू ग़ज़ल जैसा है तो क्यूँ न इस की त'aरीफ भी उर्दू में कर दी जाए. आज कल नेट पर उर्दू लिखने का अभ्यास कर रहा हूँ इसी लिए लिखा कि
" मनु साहब,
सोचa क्यूँ na आप कि ग़ज़ल कि त'अरीफ़ उर्दू में कर दी जाए
अभी कम्प्यूटर पर लिखने ki मश्क़ कर रहा हूँ"
shukriya
जी अहसान जी,
ये देवनागरी में लिखी गजल लगभग उर्दू लहजे में ही कही गयी है ,,,,
मैं जरा बचता हूँ गजल में शुद्ध हिंदी के प्रयोग से,,,,,
या यूं भी कह लीजिये के मैं ना तो पूरी तरह हिंदी समझता,,,,और ना ही उर्दू,,,,,( ये सही है,,)
शौक दोनों का है,,,,,
पर गजल को चाहता हूँ के उसी तरह से आये जो की इसका सही रूप है,,,,,,
और ये आती भी ऐसे ही है मेरे पास,,,,,,
हाँ,
आपको हिंद युग्म पर urdoo में कमेन्ट करते देख शायद किसी को सही ना भी लगे,,,,
पर मुझे न केवल मजा आया बल्कि ....एक तरह से urdoo पढने की मेरी ख्वाहिश आज काफी दिन बाद पूरी हुई ,,,,,,,
आपकी हमारी तकरार तो चलती ही रहेगी,,,,
पर इस नए काम के लिए आप मेरी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें,,,,,,
यदि अक्षर थोड़े बड़े और स्पष्ट होते तो और आसानी होती मेरे जैसे के लिए,,,,,
मनु जी,
परिष्कृत परिपक्व लेखन !
बधाई,
urdu mein commment dekh kar sahi kyun nahin lagega manuji.. kuch na kuch seekhne ko to milta hi hai...
videshi english mein dohe/couplets seekh rahe hain..to urdu to apni hai...:-)
बेहद खूबसूरत ग़जल.....
न जाने क्या निकाला उसने मेरी बात का मतलब
रहा खाली निगाहों से खला में ताकता कोई
MANNU BHAEE JAAN LENE KE BARAABAR HAI ... MERE HISSE ME DILLI AAYEE HAI UJADI HUI...JISE SABHI NE LOOTAA HAI KAHO TO YE LIKH DUN... NAHI TO MIYAAN EK JAAN BACHI HAI WO LELO IS SHE'R PE... KAMAAL KI BAAT HAI BAHOT HI SHAANDAAR BAAT KAHI HAI AAPNE... BAH'R PE PURI TARAH KASI GAZAL... HINDYUGM PE BAHOT HI KAM DEKHNE KO MILTI HAI...
AAPKAA
ARSH
वो मेरी कैफियत जो देख लें, मगरूर हो जाएँ
मेरे आगे जब उनका ज़िक्र छेड़े दूसरा कोई
MANNU BHAEE IS SHE'R KE KYA KAHANE BAHOT HI MUKAMMAL SHE'R KAHI HAI AAPNE... YE MOTI MERE AANKHON SE BACH KAISE GAYAA SAMAJH NAHI AARAHAA HAI ISKE LIYE MUAAFI CHAHUNGAA... BAHOT HI RUMAANIYAT HAI IS SHE'R ME... KAMAAL KAR DIYAA HAI...SALAAM AAPKE LEKHANI KO AUR AAPKO...
ARSH
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
आपके इस शेर ने मुझे मजबूर किया कि मैं टिप्पणी करूँ
हाँलाकि पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है लेकिन मतले में जो मिसाल आपने दी है उसका कोई जवाब नहीं
फिर ख़ुदा की यकमिज़ाजी को चुनौती देता ये शेर तो बेमिसाल हो गया
एक और मिसरा जो ग़ज़लियात की इस भीड़ में अलग सा जान पड़ा वो ये है कि- खुदाया कुछ जजा तो बख्श मेरी बुत-परस्ती को…
कमाल है
वैसे मैं बेहद आलसी इंसान हूँ लेकिन आपकी ग़ज़ल मेरा हाथ पकड़ कर मुझसे टिप्पणी करवा रही है
बहुत-बहुत बधाई हो
बहुत वक़्त बाद मन के अशआर पढ़े
बहुत अच्छा लगा
-चिराग जैन
9868573612
खुदा कब पूछ बैठा वो इबादत क्या हुई तेरी
कहा अब दिल में शायद आ बसा है आपसा कोई
अब हो गयी ना मुश्किल, मनु जी, हम ठहरे सीधी बात करने वाले , आप इतनी खूबसूरती से घुमा-फिर कर क्या क्या कह जाते हैं कि बस, हम तो आपकी बहर, मतला में ही उलझ जाते हैं, लेकिन सौ बात कि एक बात ग़ज़ल है ZABARDAST ...
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