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Thursday, May 14, 2009

मनुआ मेरा मस्त कलन्दर-गज़ल



मनुआ मेरा मस्त कलन्दर
झाँके सबके बाहर अन्दर


जाने किस-किसको है देखे
जग के बाहर अपने अन्दर

सपनों की बेदी पर पटका
गोरख-धन्धा वाहमछन्दर

कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर

खेलो लेकिन भूल  जाना
जो जीता बस वही सि्कन्दर

कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्तू शिवतू ही सुन्दर

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

महेन्द्र मिश्र का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना.बधाई.

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

डॉ.श्याम जी,

छोटी बंदिशों में बात बहुत ही खूबसूरती से कही है। मन मोह लिया :-

कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Yogesh Verma Swapn का कहना है कि -

bahut umda rachna .

Pritishi का कहना है कि -

Prabhaavshaali Makta !

कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्, तू शिव, तू ही सुन्दर

RC

manu का कहना है कि -

सुंदर रचना श्याम जी,
प्रभावशाली चित्र के साथ,,,,

neelam का कहना है कि -

कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर

Riya Sharma का कहना है कि -

जाने किस-किसको है देखे
जग के बाहर अपने अन्दर

कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्, तू शिव, तू ही सुन्दर

बहुत ही प्रभावशाली शेर ...
सुन्दर रचना श्याम जी !!!

mohammad ahsan का कहना है कि -

बढ़िया ग़ज़ल

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

खेलो लेकिन भूल न जाना
जो जीता बस वही सि्कन्दर.....
यह सत्य था,सत्य है....

gazalkbahane का कहना है कि -

गज़ल कबूल करने पर आप सभी का आभार
श्याम सखा श्याम

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

wah shyam ji wakai achhhi rachana ..shivrati hai parson aur aap ki ghazal ka kahiri sher ...thik waqt pe aa gaya... wah

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