मनुआ मेरा मस्त कलन्दर
झाँके सबके बाहर अन्दर
जाने किस-किसको है देखे
जग के बाहर अपने अन्दर
सपनों की बेदी पर पटका
गोरख-धन्धा वाह, मछन्दर
कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर
खेलो लेकिन भूल न जाना
जो जीता बस वही सि्कन्दर
कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्, तू शिव, तू ही सुन्दर
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर रचना.बधाई.
डॉ.श्याम जी,
छोटी बंदिशों में बात बहुत ही खूबसूरती से कही है। मन मोह लिया :-
कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut umda rachna .
Prabhaavshaali Makta !
कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्, तू शिव, तू ही सुन्दर
RC
सुंदर रचना श्याम जी,
प्रभावशाली चित्र के साथ,,,,
कतरा इक आँखों से टपका
खारा कैसे हुआ समन्दर
जाने किस-किसको है देखे
जग के बाहर अपने अन्दर
कौन भला है तुझसे बढ़कर
तू सत्, तू शिव, तू ही सुन्दर
बहुत ही प्रभावशाली शेर ...
सुन्दर रचना श्याम जी !!!
बढ़िया ग़ज़ल
खेलो लेकिन भूल न जाना
जो जीता बस वही सि्कन्दर.....
यह सत्य था,सत्य है....
गज़ल कबूल करने पर आप सभी का आभार
श्याम सखा श्याम
wah shyam ji wakai achhhi rachana ..shivrati hai parson aur aap ki ghazal ka kahiri sher ...thik waqt pe aa gaya... wah
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