गज़ल
हम उसूलों की तरह रिश्ते निभाते ही रहे.
गाज बन कर हम पे वह बिजली गिराते ही रहे.
हम उन्हे अपना समझ दिल में बसाते ही रहे
मानकर दुश्मन वो हमको तो सताते ही रहे.
चुप थे हम इज्जत कभी उनकी न मिट्टी में मिले
जान कर कमजोर वह हमको डराते ही रहे.
हो गईं बेकार सारी कोशिशें अच्छाई की
रात दिन वह विष पे विष हमको पिलाते ही रहे.
उनकी राहों में सदा हमने बिखेरे फूल थे
फूल को पत्थर समझ आँखे दिखाते ही रहे.
रात सन्नाते में चाकू घोंपकर सीने हमारे
सामने सबके हमें अपना बताते ही रहे.
खेल खेला वह नियति ने दी सजा पापी को उसने
मान कर हमको नियति बरसों जलाते ही रहे.
कवि कुलवंत सिंह
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
14 कविताप्रेमियों का कहना है :
उनकी राहों में सदा हमने बिखेरे फूल थे
फूल को पत्थर समझ आँखे दिखाते ही रहे.
बहुत खूब कहा आपने ..अच्छी लगी आपकी यह गजल
अच्छी रचना | बधाई |
शेरों की लम्बाई याने बहर और सामान हो जाए तो रचना और भी लयात्मक बन जाए |
अवनीश तिवारी
उनकी राहों में सदा हमने बिखेरे फूल थे
फूल को पत्थर समझ आँखे दिखाते ही रहे.
wah kulwant ji, nissandeh ek umda rachna. badhai sweekaren.
kahan achhe hai magar avnish ke baat ko tawajjo jarur den...
arsh
humko to samajh kam hain gazlon ki specialy urdu ki.... but jo bhi likha accha laga
takniki roop se atpati ghazal, vichaaron ke hisaab se m'amooli ghazal. kayi ash'aar sirf tukbandi.
बहुत ही लचर शिल्प ........ बेबहर गजल है ....
माफ़ी चाहूँगा ये तो गजल है ही नहीं
बहुत ही नादानी भरी रचना लगती है ....
मैं अहसान जी और तिवारी जी की बात से सहमत हूँ इसे गजल कहना नादानी होगी
अभिव्यक्ति अच्छी है बधाई
halki rachna,,
Kulwant ji aapki gazlen hamesha hi bhaut ghari aur sundar khyaal liye hoti hai
khas kar ye sher phool ko patthar samjh aankhe dikhate hi rahe
kamaal kaha hai
Aap sabhi mitro ka haardik dhanyawaad...
गज़ल
Behar --
2122 2122 2122 2122 212 / 2121
हम उसूलों की तरह रिश्ते निभाते ही रहे.
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
गाज बन कर हम पे वह बिजली गिराते ही रहे.
2 1 2 2 2 1 2 2 2 122 2 1 2
हम उन्हे अपना समझ दिल में बसाते ही रहे
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 12
मानकर दुश्मन वो हमको तो सताते ही रहे.
21 2 2 2 1 2 2 2 12 2 2 12
चुप थे हम इज्जत कभी उनकी न मिट्टी में मिले
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2
जान कर कमजोर वह हमको डराते ही रहे.
2 1 2 2 2 1 2 2 2 122 2 12
हो गईं बेकार सारी कोशिशें अच्छाई की
2 12 221 2 2 21 2 2 21 2
रात दिन वह विष पे विष हमको पिलाते ही रहे.
21 2 2 2 1 2 2 2 12 2 2 12
उनकी राहों में सदा हमने बिखेरे फूल थे
2 1 22 2 12 2 2 122 21 2
फूल को पत्थर समझ आँखे दिखाते ही रहे.
2 1 2 2 2 1 2 22 12 2 2 12
रात सन्नाटे में चाकू घोंपकर सीने हमारे
2 1 222 1 22 212 22 121
सामने सबके हमें अपना बताते ही रहे.
21 2 2 2 12 2 2 122 2 12
खेल खेला वह नियति ने दी सजा पापी को उसने
21 22 2 1 2 2 2 12 22 1 2 1
मान कर हमको नियति बरसों जलाते ही रहे.
21 2 2 2 1 2 2 2 12 2 2 12
कवि कुलवंत सिंह
Kulwant ji...
aapki sabhi rachnaaye aur gazlen hamesha hi bhaut ghari aur sundar khyaal liye hoti hai.
aapyun hi likhte rahiye taaki hum aapse kuch seekh saken.
dhanyavaad.
रात सन्नाटे में चाकू घोंपकर सीने हमारे
2 1 222 1 22 212 22 121
सामने सबके हमें अपना बताते ही रहे.
21 2 2 2 12 2 2 122 2 12
खेल खेला वह नियति ने दी सजा पापी को उसने
21 22 2 1 2 2 2 12 22 1 2 1
मान कर हमको नियति बरसों जलाते ही रहे.
21 2 2 2 1 2 2 2 12 2 2 12
shak hai ,,,,,,,,,,,
khatkaa,,,,,,,,,,,,,
padhkar nahi ,,,,sunkar,,,,,,,
मनु जी ..
मुआफ करें
आपके इरादे भी ग़ज़ल की कक्षा खोलने के हैं लगता है ??:)))
हर कवि की हर रचना बहुत अच्छी ही हो कोई ज़रूरी नहीं ना मित्र !!!!
वैसे कवि कुलवंत जी आपसे अपेक्षायें कुछ ज्यादा रखते हैं हम सभी ..बस बात इतनी ही है
साधुवाद !!!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)