ना ही मंजिल, रास्ता कोई नहीं
सच है फिर मेरा खुदा कोई नहीं
है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं
जिन्दगी से दूरियां सिमटी जरूर
मौत से भी फासला कोई नहीं
कुछ न कुछ होने का सबको इल्म है
इस शहर में सिरफिरा कोई नहीं
ना ही आँसूं, दर्द है, ना बेबसी
जिन्दगी में अब मजा कोई नहीं
उसको 'अद्भुत' सिर्फ सच से प्यार है
उसके जख्मों की दवा कोई नहीं
(बहर: फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन)
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
title dena bhool gaye arun ji..
है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
bahut achchi rachna ,badhaai sweekaren
अरुण जी, बहुत सुंदर मुझे ये पंक्तियाँ अच्छी लगीं .....
जिन्दगी से दूरियां सिमटी जरूर
मौत से भी फासला कोई नहीं
ना ही आँसूं, दर्द है, ना बेबसी
जिन्दगी में अब मजा कोई नहीं
है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
एक दम लाजवाब,,,बेजोड़,,, शेर,,,,,
तपन जी,, गजल में टाइटल की कोई जरूरत नहीं होती,,
ना ही आँसूं, दर्द है, ना बेबसी
जिन्दगी में अब मजा कोई नहीं
अच्छा लगा ,
manu ji.. ghazal ki baat nahin... post ka title missing tha...
ना ही आँसूं, दर्द है, ना बेबसी
जिन्दगी में अब मजा कोई नहीं
waah...
है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
teen rangon ko chaahta kaun hai aajkal?
सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं
बहुत खूब लिखा अरुण जी
सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं.....
बहुत ही अच्छी रचना
बहुत ही सुंदर खास कर ये शेर बहुत पसंद आये
है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं
सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं
सादर
रचना
good ghazal, adubhut ji.
'सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं.'
एक वार है जिन्दगी की सचाई पर भी.
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