नेह निर्झर
सूख चुका अब
जन अरण्य
उब चुका अब
अब ना मचलता
लहरों के संग
अब ना संवरता
मौसम के संग
नही बहलता
प्रेम गीत से
अविचल हर
हार जीत से
कोकिल कण्ठ
कर्कस क्रन्दन
रिक्त हदय
यांत्रिक स्पन्दन
श्रृध्दा धाम की
शाम उदास
आरती गौण
नगाडे खास
राम तुम्हारे
द्वार लाचार
रावण विराजे
बैखौफ दरबार
वक्र भाल
कदम बेताल
हाल बेहाल
पेट पाताल
उंगली पर तिलक
मुख पर चमक
मत रमत
चयन युघ्द
रण शरण
निरीह रियाया
कभी तो जीत पायेगी
आर ही आर
लडी जा रही लडाई
कभी तो पार जायेगी
सत्ता स्वार्थ का
तिमिर चीर
वह सुबह
कभी तो आयेगी
*
विनय के जोशी
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाए...
प्रशंसनीय
अच्छी कविता है।
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
अच्छी रचना है |
अवनीश तिवारी
बहुत सुंदर विनय जी,,,,,
अच्छा प्रवाह,,,
bahot hi prashansaniya kavita hai prawaah bhi khoob rahi...badhaayee
arsh
सुबह कभी तो आयेगी...सभी को इंतज़ार है विनय जी .
सोचने को मजबूर करती सुन्दर अभिव्यक्ति !!
विनय जी,
बस उस सुबह के इंतजार में हम भी आप के साथ है।
शब्द गंगा के भागीरथ को और क्या लिखा जाये टिप्पणी में।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
wo subah jaroor aayegi......bes kisi subhash, bhagat singh & yug pravart ki pahchaan ho jaye ya phir hum me se koi.......sankalp le aagey badh jaye
बहुत ही सुंदर शब्दों के साथ अच्छी कविता
सादर
रचना
बहुत ही सुंदर शब्दों के साथ अच्छी कविता
सादर
रचना
विनयजी
बहुत ही श्रेष्ठ रचना। बधाई।
राम तुम्हारे
द्वार लाचार
रावण विराजे
बैखौफ दरबार
वक्र भाल
कदम बेताल
ek sukhad aavahan ,wo subah kabhi to aayegi
अवश्य आएगी वह सुबह......निःसंदेह ये ख्याल लेकर आयेंगे
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