नकाब ओढ़कर महज नकाब जिंदगी हुई
यूँ आपसे मिली कि बस खराब जिंदगी हुई
मुझे निकाल क्या दिया जनाब ने खयाल से
पड़ी हो जैसे शैल्फ पर किताब जिंदगी हुई
गुनाह में थी साथ वो तेरे सखी रही सदा
नकार तूने क्या दिया सवाब जिंदगी हुई
वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता
जो कल तलक थी आम,क्यों नवाब जिंदगी हुई
हकीकतों से क्या हुई मेरी थी दुश्मनी भला
खुदी को भूलकर फ़कत थी ख्वाब जिंदगी हुई
तेरे खयाल में रही छुई-मुई वो गुम सदा
भुला दिया यूँ तुमने तो अजाब जिन्दगी हुई
फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई
खुमारी आपकी चढ़ी कहूँ भला क्या दोस्तो
बचाई मैंने खूब पर शराब जिंदगी हुई
बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई
मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन ,मफ़ाइलुन
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
खुमारी आपकी चढ़ी कहूँ भला क्या दोस्तो
बचाई मैंने खूब पर शराब जिंदगी हुई
वाह श्यामजी ! उम्दा गजल के लिये बधाई ।
फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई
बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई
I liked the radeef+kafiya combination of this Ghazal. Another thing I like about your Ghazal's is Makta. It's mostly powerful.
pranaam
RC
नकाब ओढ़कर महज नकाब जिंदगी हुई
यूँ आपसे मिली कि बस खराब जिंदगी हुई...
बहुत खूब .
sunder ghazal shyaam ji,,,,
bahut bahut badhaai,,,,
काफी अच्छी गजल है
एक शेर में मुझे कुछ भावः की शिकायत है
मुझे निकाल क्या दिया जनाब ने खयाल से
पड़ी हो जैसे शैल्फ पर किताब जिंदगी
शेल्फ पर पड़ी किताब का मतलब हो की किसी ने आपको ख़याल से निकाल दिया है मुझे व्यवहारिक नहीं लगा क्योंकि शेल्फ पर पड़ी किताब हम पढ़ते हैं ,, हाँ कबाड़ या रद्दी में दाल दिया हो तो बात अलग है, माफ़ कीजियेगा मुझे भूल भी हो सकती है भावः समझने में
कृपया समाधान करे तो मैं आभारी रहूँगा
गज़ल कबूलने के लिये आप सभी का आभार !
केवल ख्याल से निकाला है,जिन्दगी से नहीं[,जिन्दगी से निकल्ती तो पड़ी कहां रहती,रद्दी में जाकर लिफ़ाफ़ा न बन जाती-]और कई बार शैल्फ़ में पड़ी किताब भी बरसों पड़ी रहती है,बिना बात जब कभी याद आती है तब.... ,पर क्या जिससे प्रेम किया गया हो उसे यह बात कबूल होगी
श्याम......
जिससे प्रेम होता है उसे शैल्फ़ की किताब सा भूला तो जा सकता है-रद्दी सा -कबाड़ सा निकाला नहीं जा सकता-इसे और गहराई से महसूसने के लिये युग्म पर मेरी कहानी रसभरी देखें
श्याम सखा‘श्याम
लाजवाब.
kya khoob zindgi ko bayan kiya hain.... accha laga hamhe
कहुँ क्या दोस्त तुने चीज ये भली लिख दी
बहाने गज़ल के ही मेरी ज़िंदगी लिख दी
wah shyam ji bahut khoob likha hai aapne sabhi sher apne aap men purn.
फुहार क्या मिली तुम्हारे नेह की भला हमें
रही न खार दोस्तो गुलाब जिन्दगी हुई
dher saari badhai.
वो सादगी, वो बाँकपन गया कहाँ तेरा बता
जो कल तलक थी आम,क्यों नवाब जिंदगी हुई
ग़ज़ल का सब से कमज़ोर sh'er. आम और ख़ास तो hota है लेकिन आम और नवाब का जोड़ नेहाएत अटपटा लग रहा है.
बहुत उत्तम रचना है !
उम्दा ग़ज़ल.....
बही में वक्त की लिखा गया क्या नाम ‘श्याम’ का
गजल रही न गीत ही कि ख्वाब जिंदगी हुई
गुलाब जिन्दगी हुई ,
पता नहीं इस गुलाब में ऐसी क्या कशिश है कि लोग जिन्दगी भी चाहते हैं तो गुलाब कि तरह
हम भी कहते हैं ,
फूल तो बहुत हैं बगिया में ,
मगर हमको तो गुलाब चाहिए |
अहसन भाई कि आपति ठीक नहीं लगी आम और नबाब का प्रयोग हमे तो अटपटा नहीं लगा ,जो आप कहना चाहते थे ,सब ने समझ ली एक ,इन नुकताचीं को छोड़कर
अहसान साहिब अगर आप ‘नवाब’ को खास नहीं समझते तो मुझे कुछ नहीं कहना।
श्याम सखा
padh kar bahut mazza aaya sir..
mai hamesha se aapki har rachana ko enjoy karta hu..
अहसन जी,
आपने शेर को कमजोर कहा, आप शब्दों पर बड़ा ध्यान देते हैं, आदरणीय दीक्षित दनकौरी जी का एक शेर अर्ज कर रहा हूँ
"शेर अच्छा बुरा नहीं होता
या तो होता है या नहीं होता"
बाकी आप पर,
नीलम जी
आपसे गुजारिश है कि थोडा भाषा को बदलिए ........... (सब ने समझ ली एक ,इन नुकताचीं को छोड़कर) अहसन जी ने अगर कोई दोष निकाला है तो वो नुक्ताचीं नहीं हो जाते और एक बात बता दूं कि हिन्दयुग्म पर हर कोई प्रशंसा को तो बड़ी नम्रता से लेता है पर आलोचना पर गुस्से में जवाब देता है ........ इसमें इस मंच कि कोई उपलब्धि नहीं कि हम सब रटी रटाई टिपण्णी लिखे....... "वाह वाह" बहुत अच्छा"
बाकी सबकी अपनी अपनी इच्छा मेरी मन में जो आया वो कह दिया .......
अरुण 'अद्भुत'
aap bhi aa hi gaye ek doosre nuktaacheen ,hahahahahahahahahhahaha
aap aalochna me kuch bhi kahe hum aalochne karne waale ko gar nuktaacheen kahe to itna tilmilaa jaate hain ,kis baat ko kis najriye se lena hai ye to aap ke upar hai ,humne unko nuktacheen kyoun kha wo jaante hain humaari unse puraani nokjhonk chalti rahti hai ,aap kyoun ?
(begaani shaadi me abdulla deewana bane hue hain )
gazal to acchee hai hi,yeh nukte
yaani nahale pe dahlaa bhee vah,aah
vibha
neelam ji
na to shaadi begani hai aur na hi abdulla deewaawana ............
hindyugm koi aap logo ka personal manch nahi hai ki is par aap apni nok jhok mitayege
baaki apni samjh ki baat hai kya kah sakte hain ..............
sh'er sirf technique , qafiya-radeef ,behr se bhi nahi hota hai , alfaaz ki khoobsoorti, taghazzul, takhayyul ,mithaas, m'otbar khayaalaat se bhi hota hai.
sirf qaafiya mizaani hi sh'er nahi hai.
qafiya-radeef, behr bhida dene ka matlab yeh nahi hai ki alfaaz ko nazarandaaz kar diya jaae ya ghair shaaerana alfaaz estemaal kiye jaaen ya alfaaz ko estemaal karne ki rawaaet ko taaq par rakh diya jaae.
मैं आपकी बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ अहसन जी,
काफिया, रदीफ़, बहर .... ये सब तो प्रारंभिक चीजे हैं, इनके बिना तो गजल हो ही नहीं सकती परन्तु किसी विशेष भावः के बिना सामान्य या कोई भी बात व्याकरण के नियमों का पालन करके कहने से गजल नहीं हो सकती वर्ना तो ये पंक्तियाँ भी शेर बन सकती हैं--
"मैं पत्थर को पाषाण बना सकता हूँ
मैं मानव को इंसान बना सकता हूँ
मैं मरघट को शमशान बना सकता हूँ
मैं इश्वर को भगवान् बना सकता हूँ
पता नहीं किस कवि कि हैं मुझे माफ़ करे पर उदाहरण सटीक बन रहा था ............
ek line rah gayi janaab ,
mai arun mittal ko "adbhut" banaa sakta hoon .
hind yugm manch hum sabka hai ,janaab itna gussa aapki bhi sehat ke liye theek nahi ,kuch samjhaayiye ahsan bhaai inko .hamesha raashan paani lekar ladne ko taiyaar baithe rahte hain
bilkul sahi adbhut ji. yeh bhi sh'er ho sakta hai
hawa udhar se aayi idhar gayi
hawa idhar se aayi udhar gayi
ya
maar katari mar jaana
dekhbhaal ke hgar jaana
lekin ye sher nahi hain as they are bereft of any serious thoughts, rather they are ugly.
ath sri mahaabharat katha aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)