स्पेन निवासी पूजा अनिल एक बार यूनिपाठिका का खिताब जीत चुकी हैं। वर्ष 2008 के लिए जिन चार पाठकों को हिन्द-युग्म पाठक सम्मान के लिए चुना गया था, उसमें एक नाम इनका भी था। लेकिन हम इसबार इनकी पठनीयता की बात न करके, इनके अंदर छिपी रचनात्मकता की बात कर रहे हैं। मार्च माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में इनकी एक कविता 10वें स्थान पर रही।
पुरस्कृत कविता- तलाश
1. ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
2. ढलता हुआ सूरज
रोशन कर रहा था
मेरे अस्तित्व को
और मैं खुद को ढूंढ़ रही थी
अपनी ही परछाई में।
3. क्षण-प्रतिक्षण
अपनों के साथ में
ढूँढ़ा किये दोस्ती को
मगर नज़र से छिपा रहा
पल-पल साथ रहा जो मन।
प्रथम चरण मिला स्थान- बारहवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- दसवाँ
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
arrrrrrrrrrrrrrrrrrrrreyyyyyyyyyyyyyyyyyyy
ye kya pooja itni sanjeeda insaan hain aap hume to maaloom hi n tha .
aap unikavi ,kabhi hum aapke naam ko kabhi is kavita ko dekhte hain ,
aur sochte hain .........
bahut khoob
Bahut achchi kshanikayein. Doosri wali toh gazab !
God bless
RC
अरे बहुत ही सुंदर .एक एक शब्द में गहरे अर्थ है
badhai
रचना
सार्थक-सारगर्भित क्षणिकाएँ...मन को भाईं.
वाह! वाह!
आप तो बड़ी छुपी रुस्तम हैं पूजा जी, कविता भी करती हैं वह भी इतनी अच्छी. मन प्रसन्न हो गया. बधाई स्वीकार करें.
पूजा जी,
नंबर दो और नंबर एक की क्षणिका तो कमाल की है,,,,
बेहद दमदार,,,,छूती हुई ,,,
आखिरी वाली भी बहुत अचछी लगी ,,,,पर नंबर दो और एक तो बस गजब ही हैं,,,,,
पढ़कर मजा आया,,,,
और सोचने का भी मन हुआ,,,,बहुत गहरी लगीं,,,
पूजा जी,
वाह! वाह!! वाह!!!
तीनों टुकडों में जान है, बात खूब कही है :-
ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
बधाईय़ाँ.
मुकेश कुमार तिवारी
ज़िन्दगी भर जिसे
तलाशता रहा मैं
आँखों की कोर में
भीगी
वो ख़ुशी
मुझे कभी दिखी नहीं।
mahsoos karti huii bheegi khushi .
bahut sundar !!!
pooja ki talash,pooja ke jazbaat,.........vilakshan
शुक्रिया नीलम जी, तभी तो तलाश शुरू हुई.... :), पूरा जीवन बीत जाता है और स्वयं को भी नहीं जान पाते. RC, रचना जी, मनु जी, शन्नो जी, सेहर जी, मुकेश जी, रश्मि प्रभा जी और आचार्य जी का भी धन्यवाद. आप सभी की हौसला अफजाई से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलता है.
शुक्रिया साथियों.
पूजा अनिल
तीनों क्षणिकाएँ मुझे जबरदस्त लगीं। मन के भावों को शब्दों में बखूबी पिरोया है आपने। आगे भी ऎसे हीं लिखते रहिये और युग्म की शोभा बढाते रहिये।
-विश्व दीपक
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