हिन्द-युग्म के सक्रियतम पाठक मनु बेतखल्लुस मार्च महीने की यूनिकवि प्रतियोगिता की दौड़ में भी शामिल हैं। इनकी कविता सातवें पायदान रही। इन्होंने यह कविता अल्मोड़ा के एक भूभाग को महसूसते हुए लिखी। हम साथ में वह चित्र भी प्रकाशित कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता
ये हरी बस्तियां महफूज बनाए रखना,
इस अमानत पे कड़े पहरे बैठाए रखना
अगले मौसम में परिंदे जरूर लौटेंगे
सब्ज़ पेडों को, किसी तौर बचाए रखना
जिंदगी इन के बिना और भी मुश्किल होगी
सुर्ख उम्मीद के ये फूल खिलाए रखना
कटी है शब तो कभी आफताब चमकेगा
सुनहरी मछलियों पे जाल लगाए रखना
तेरी गफलत से कहीं राह में ना रह जाए
ख्वाब की फिक्र में आँखों को जगाए रखना
प्रथम चरण मिला स्थान- प्रथम
द्वितीय चरण मिला स्थान- सातवाँ
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
25 कविताप्रेमियों का कहना है :
laajawaab ,
ek caartoonist(topi wala ) ek shaayar bhi ho sakta hai ,bahut khoob saare sher achche hain ,bahut hi achche .
मनु जी! शानदार और जानदार रचना के लिए साधुवाद. मन को भाई.
मनु जी
बहुत खूब एक एक शेर लाजवाब .किस के बारे में लिखूं किस के बारे में न लिखूं .पूरी ग़ज़ल की लाजवाब है इतना अच्छा विषय और उस पर इतनी गहरी बाते .क्या कहने
चित्र में प्रकाश और पेड़ की छाया है क्या ही सुंदर है .
बधाइयाँ
सादर
रचना
कई साल पहले अल्मोडा जाते हुए इस जगह पर हमारी बस खराब हो गयी थी,,,,,
तभी ये लैडस्केप भी बना था और इस गजल की इब्तदा भी हुयी थी,,,,,
पूरी अभी पिछले ही महीने हुई है,,,,,,जब के पता लगा के यूनिकवि प्रतियोगिता वाली मेरी गजल कही और छप चुकी है ,,,तो जल्दी से ये पूरी हुई,,,,, और हाथों हाथ भेजी,,
जो लोग इससे पहले वाली गजल पर कमेंट कर चुके हैं वो भी कहेंगे के मनु के साथ ही ऐसा होता है यूनिकवि प्रतियोगिता में,,,,,,
पर जो उन लोगों ने कमेंट किये ,,,मैं उनका आभारी हूँ,,,,,
अब वे लोग दुबारा कमेंट दें,,,,
है ना मजे की बात,,,,,,,,,,
:::))) :::::))) ::))))))))))))))))))
नियंत्रक जी,
गलती तो आपकी और हमारे बराबर ही है,,,
बल्कि हमारी कम है,,,,,,,,,,
अब ज़रा मुखप्रष्ठ पर भी ,,,,,
वोटर को फिर ठगने निकले नेता बनकर नटवरलाल को हटाकर ,,,,,
सही कर लीजिये,,,,,,,,,,,,,,,
:::::::))))))))))
सरासर cheating हो रही है. पहले मेरा वोट ले लिया फिर कहते हैं गलत बक्से में पड़ गया......मनु जी, गलती आपकी है या नियंत्रक जी की I don't care (मेरा वोट मिल चुका है टोपी वाले नेता जी को ही, ही, ही, ही). यह तो वोट देने वालों पर सरासर अन्याय है. इस दुनिया में कैसी कूटनीति वाले लोग हैं. (रोकिये मत, please, कहने दीजिये मुझे अपनी तसल्ली के लिए हा, हा, हा, हा) क्या होगा इस कलयुग का? भगवान ही जानें. वैसे आपकी तसल्ली के लिए बताती हूँ कि यह कविता भी बहुत अच्छी है. और इस बार भी मात्राएँ नहीं गिनूंगी.
'लेकिन यह सब क्या हो रहा है यह कैसा चक्कर है
समझ नहीं आ रहा यहाँ किसकी किससे टक्कर है
अब तक नहीं पता लगा कौन हैं ये नटवरलाल जी
हवा में टंगा हुआ है वही अब तक मेरा सवाल जी.'
अगले मौसम में परिंदे जरूर लौटेंगे
सब्ज़ पेडों को, किसी तौर बचाए रखना
जिंदगी इन के बिना और भी मुश्किल होगी
सुर्ख उम्मीद के ये फूल खिलाए रखना
सकारात्मक सोच लिए,जीवन को आशावान बनाते हुवे ..उम्दा ग़ज़ल
जितनी खूबसूरती से ग़ज़ल लिखी उतना ही सजीव मनमोहक चित्र बनाया
As a artist bhee
बहुत बधाई आपको मनुजी !!
सब से पहले यह ki अच्छी ग़ज़ल है, नर्म नर्म सी. मुबारकबाद.
अब एक नुक़्ते की बात कर लूँ.
ग़ज़ल का कोई उन्वान नहीं होता, न यह ग़ज़ल किसी उन्वान पर है तो फोटो की ज़रुरत कहाँ से आ गयी!!
कहीं पढा था जो अल्फाज़ तस्वीर नहीं बना सकते वो शाएरी नहीं हो सकते , कहने का मतलब यह कि शाएरी के अल्फाज़ होते ही है तस्वीर बनाने के लिए य'अनी उन का काम ही है imagery तय्यार करना , इस लिए भी शाएरी को अलग से फोटोग्राफ्स की ज़रुरत नहीं पड़नी चाहिए
वाह कहा जाए तो अति सुन्दर रचना |
मेरा ख्याल है कि तस्वीर से रचना को और बल मिलता है |
दो कला का संगम भी हो जाता है |
तस्वीर जोड़ना अच्छी बात है |
बधाई|
अवनीश तिवारी
ahsan bhaai ,
tashveer sher ko tasveer dene ke liye nahi ,apitu yah bataane ke liye lagaai gayi hai ki ,humaare shaayar mahoday harfanmaula hain ,
shaayar,
painter,
aur cartoonist bhi
to is "topi wale guno ki khaan" ko kahiye waah waah
आपकी प्रतिभा को नमन
दो अच्छी रचनाओं से रूबरू करवाने हेतु आभार,
बस यही शुभकामना है |
*
अभी और ठहरेगे कारवा कागज़ पर
हर्फ़ उतरेगे तुम धुँआ बनाए रखना
विनय के जोशी
मनु जी,
पर्यावरण के लिए आपकी चिंता और उसे सुरक्षित रखने की आपकी इच्छा , इस रचना के रूप में अनुरोध बनकर हम सब के सामने है, दो दिन पहले ही विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया, इस अवसर पर आपकी रचना का प्रकाशित होना, सौभाग्य की बात है. बधाई स्वीकार कीजिये.
पूजा अनिल
लीजिये हरकीरत जी,
एक और चित्रकार के मन में चित्रा सा खिंच गया है....
सच में आपको पढ़ते पढ़ते कई धुंधलाते नक्श सामने आ जाते हैं.....जैसे इस बार मुफलिस जी की नज्म में हुआ ......गजल में अक्सर ऐसा नहीं होते देखा है.....
इसलिए मेरा मानना है के नज्म पेश करने में एक ज्यादा सधी हुआ कलम की दरकार होती है......
हुस्नो इश्क ,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,कभी चनाब के पानी में बहते रहे,,,,,,,,,,,,,,
पर ये बात है के ये उभरे हुए नक्श हमेशा ही बेचैनी देते हैं,,,
April 21, 2009 7:52 AM
April 21, 2009 10:40 AM
Harkirat Haqeer said...
मनु जी आपने पहली बार ग़ज़ल और नज़्म के फर्क को बताया ...हाँ ये बात तो सच है कि नज़्म ज़हन में एक चित्र सा खींच देती है और हम बहुत देर उसके प्रभाव में डूबते उतरते रहते हैं ...पर ग़ज़ल का अपना महत्त्व है ...दो पंक्तियों में गहरी बात ....हर किसी के बस का नहीं ये रोग.......!!
April 21, 2009 10:43 AM
अहसान जी का धन्यवाद ,,,कमेंट के लिए ,,गजल को पसंद करने के लिए,,,,,
पर जाने क्यों मुझे नहीं लगता के गजल जेहन में कोई तस्वीर खिंच पाती है,,,,, भले ही वो मुसलसल गजल क्यों ना हो,,,,वजह मुझे नहीं पता (या हो सकता है के मेरे ही दिमाग में तस्वीर ना खींचती हो,,,, अपनी निजी समस्या भी हो सकती है,,,,)
पर ये ऊपर का मेरा एक पुराना कमेंट है जो शायद कुछ स्पष्ट कर सके,,,,,
हाँ,
पेंटिंग मैं हर गजल या नज्म पर नहीं बना सकता,,,,,ना कुछ पैंट करना मेरे हाथ में होता..ना कुछ लिखना.....एक गजल या तस्वीएर आधे घंटे में भी हो जाती है,,,,और कई कई साल में भी ठीक से पूरी नहीं होती,,,,,
जैसे ये प्रस्तुत ,,,,,गजल,,,,,,(इसकी भी बहरें आपस में नहीं मिल रहीं,,,,, एक तरह से खारिज है ये गजल....)
पर इतने साल में पूरी हुई है,,,,,शायद इसलिए मुझे पसंद है,,,,,
:::::::)))
फिर भी आप सबने हौसला अफजाई की ,,,,
आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद
अगले मौसम में परिंदे जरूर लौटेंगे
सब्ज़ पेडों को, किसी तौर बचाए रखना
वाह...वाह....मनु जी तो आप यहाँ भी अपने जलवे बिखेर रहे हैं......बहुत खूब....!!
जिंदगी इन के बिना और भी मुश्किल होगी
सुर्ख उम्मीद के ये फूल खिलाए रखना
लाजवाब ...! दो पंक्तियों में गहरी बात.....न किसी चित्र की जरुरत ...न बिम्ब की ....फिर भी इतनी गहरी बात कि रूह खुश हो जाये.....!!
सुना कि आपने मेरा कमेन्ट चुराया है इस लिए चली आई.....!!
पर ये हिजडों का पुरस्कार.......??? क्या करूँ अपने ब्लॉग पे जो इन्होने भडास निकाली है उससे तो अब इस संबोधन से ही डर सा लगने लगा है ....!!
Manu ji,
मैं दोबारा फिर टपक पड़ी comment करने के लिए. बात यह है कि पूछना भूल गयी थी कि यह कैमरे से खींची तस्वीर है या आपकी पेंटिंग का कमाल है. जो भी हो बहुत सुंदर है. और कविता की सुन्दरता में कितने भले बिचार हैं उम्मीद पर टिके हुये. वाकई में उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है, है ना ऐसा? आप इतने अच्छे poet भी! शायर, दोहा- लेखक, कार्टूनिस्ट, नेता, और भी ना जाने क्या-क्या and not to forget a brilliant commentator too.....all in one. Wow!
शन्नो जी,
ये कागज़ पर वाटर कलर्स हैं,,,,
और एक आप हमें कुछ भी कह लें,,,,
भगवान् के लिए नेता ना कहें,,,
ये शब्द ज़रा सा कष्टकारी है मेरे लिए,,,,
::::::::))))))))))))))0
manu ji,
you said what i was avoiding. different sh'ers are disbalanced and some misras are out of behr.
अच्छा मनु जी, बिलकुल नहीं कहूँगी नेता आपको. जो कष्ट मिला है अनजाने में उसके लिए मैं क्षमा-प्रार्थी हूँ. और अपने सभी बेसुरीले शेर के बारे में भी. आगे शेर पढूंगी पर लिखने की हिम्मत नहीं होगी. लिखना नहीं आता था पर जरा कोशिश की थी. अब फुल स्टाप लगाती हूँ अपने शेर लिखने पर. चलिए मिलते हैं दोहे की कक्षा में फिर.
मनु जी,
मेरी अपनी टिप्प्णी तो कहाँ, किधर गई, यह तो आई गई बात हो गई।
एक बेहतरीन नज्म (शायद गज़ल कहना कुछ भावनाओं को आहत कर सकता है, तो मैं ऐसा गुस्ताख नही)। हरकीरत जी ने भी ठीक कहा है कि यह अंतर शायद आगे भी काम आये कि गज़ल और नज्म क्या अंतर होता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut badhiyaa
अहसान भाई,
मेरा ये मतलब हगिज ना था के मैं आपको ये बता रहा था के आपने मेरी बहार पर ध्यान क्यों नहीं दिया,,,,
क्यूंकि मैं बिना गिने लिखता हूँ,,,बहर भी मैंने पढी नहीं हैं,,,,पर ये बात मुझे महसूस हुयी के कहीं ना कहीं ये पूरी गजल एक बराबर मीटर की नहीं है,,,,,
क्यूंकि मैं खुद जब दूसरों की ज़रा सी गलती पकड़ लेता हूँ तो,,
और खुद jaane कितनी गलतिया किये बैठा हूँ,,मुझे भी नहीं पता,,,,,?
मेरा वो कमेंट खुद मेरी गलतियों के खिलाफ था,,,,
आपसे सबसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है के उसे अपने लिए ना लें,,,,,
शन्नो जी,
नेता का जिकरा फिर कभी ,,,,,(चुनाव का मौसम है ना,,,?? )
आप अपने शेर लिखना एकदम बंद नहीं करेंगी,,,,,प्रोमिस कीजिये,,,,
जैसे आपके दोहे के चाव ने हमें भी दोहा कहना सीखा दिया या प्रेरित किया,,,,उसके लिए आपका आभार,,,,,
हरकीरत जी,
मैंने कहा था न की अच्छा लिखेंगी तो चोरी बी होगा,,,,
ab तो कामिँट भी चोरी होने लगे हैं,,,,( तो नज़्म की क्या कहें,,,)
पर आपका शुक्रिया के आपने इन सब के लिए अपना ब्लॉग बंद नहीं किया,,,,,
Manu ji,
Thanks a million for awaking my confidence. Some times, I can't decide whether to laugh or cry when I find myself doubting about my ability. But your great sense of humour is infectious and a talent to make us all feel good about ourselves is so admirable. My confidence is very dodgy at times, it's always ready to leave my side. I just jumped into writing some shers without having any clue about them, as to this day I don't know and can't see much difference between a Sher and a Gazal. Don't you find it funny? But still I couldn't keep my nose out of it. I reckon I have made a confession of the day. I also fear If I carry on like this writing Shers in future then Sajeev ji and Tanha ji will go crazy and might decide to end that 'महफ़िल' or there is a possibility I might be thrown out of that 'महफ़िल'.
Then what? Will be a case of 'लौट के बुद्धू घर को आये' या 'ना खुदा ही मिला ना बिसाले सनम ना इधर के रहे ना उधर के रहे'.
almora sundar hai ,
ismein koi do rai nahi...
..lekin itna sundar hai ....
...aaj pata chala !!
....dhanyavaad manu ji almora ke do naye aauam dikhane ke liye (ek photo aur ek nazm)
शन्नो जी!
आपका आदेश सर-आँखों पर...दोहा और शेर की चर्चा तो हमने की है...अवसर मिलते ही दोहा, ग़ज़ल, शेर, नज़्म, गीत की भी चर्चा की जायेगी.
मनु तो मनु है, कुछ नहीं, उसके लिए असाध्य.
कलम तूलिका ताल सुर,'सलिल'उसे सब साध्य.
अब हम क्या कहें हमारे लिए तो कोई बात बची ही नहीं, सबने तो सब कुछ कह दिया, अब बाकी जो भी तारीफ बची हो वो सब आपके नाम हुई मनु जी .......
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)