प्रतियोगिता की तीसरी कविता के रूप में हम मनोज भावुक की एक कविता प्रकाशित कर रहे हैं। मनोज भावुक भोजपुरी साहित्य और भाषा के लिए खूब काम कर रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- चिड़िया, हमारे घर आती थी कभी
बहुत नाच जिनिगी नचावत रहल
हँसावत, खेलावत, रोआवत रहल
कहाँ खो गइल अब ऊ धुन प्यार के
जे हमरा के पागल बनावत रहल
बुरा वक्त मे ऊ बदलिये गइल
जे हमरा के आपन बतावत रहल
बन्हाइल कहाँ ऊ कबो छंद में
जे हमरा के हरदम लुभावत रहल
उहो आज खोजत बा रस्ता, हजूर
जे सभका के रस्ता देखावत रहल
जमीने प बा आदमी के वजूद
तबो मन परिन्दा उड़ावत रहल
कबो आज ले ना रुकल ई कदम
भले मोड़ पर मोड़ आवत रहल
लिखे में बहुत प्राण तड़पल तबो
गजल-गीत 'भावुक' सुनावत रहल
प्रथम चरण मिला स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- तीसरा
पुरस्कार- हिजड़ों पर केंद्रित रुथ लोर मलॉय द्वारा लिखित प्रसिद्ध पुस्तक 'Hijaras:: Who We Are' के अनुवाद 'हिजड़े:: कौन हैं हम?' (लेखिका अनीता रवि द्वारा अनूदित) की एक प्रति।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
अरे वाह, मनोज साहब ने भोजपुरी में अच्छी खासी ग़ज़ल लिख डाली. उन को बधाई
मनोज भावुक जी,
बहुत बढ़िया रचना है आपकी, भोजपुरी तो नहीं जानती, बस आप ऐसे ही लिखते रहिये, हम यह भाषा भी सीख लेंगे . :)
बधाई .
नियंत्रक महोदय जी,
कविता का शीर्षक गलत छाप दिया गया है , कृपया सुधार लें.
पूजा अनिल
हमेशा की तरह अच्छी रचना मनोज जी...
बधाई आपको...
नियंत्रक जी,
कृपया पूजा जी की बात पर ध्यान दें...
bhojpuri kee apni ek khaas mithaas hoti hai , marm aur mithaas ka sanyojan behtareen hai.........
सारे ही शेर बहुत सुंदर कहे गयें हैं
ये बाला तो बहुत ही सुंदर हैं
कबो आज ले ना रुकल ई कदम
भले मोड़ पर मोड़ आवत रहल
सादर
रचना
सुमधुर भोजपुरी रचना....साधुवाद.
बहुते नीक बा हो तोहार कवितवा ..
सादर
दिव्य प्रकाश
मनोज भैया, राउर कविता लाजवाब बा. पढ़ के अइसन लागत बा की एक एक शब्द अनुभव के सागर में से मोती जइसन चुन के डालल गइल बा. कब केहु आपन हो जाला अउर कब आपन पराया इ समझल आज के समय में बहुत मुश्किल बा. राउर कविता करेजवा पर सीधे वार करत बा. एह कविता पर छोट भाई के तरफ से साधुवाद....
आशुतोष कुमार सिंह
www.bhojpuriyababukahin.blogspot.com
मनोज भैया, राउर कविता लाजवाब बा. पढ़ के अइसन लागत बा की एक एक शब्द अनुभव के सागर में से मोती जइसन चुन के डालल गइल बा. कब केहु आपन हो जाला अउर कब आपन पराया इ समझल आज के समय में बहुत मुश्किल बा. राउर कविता करेजवा पर सीधे वार करत बा. एह कविता पर छोट भाई के तरफ से साधुवाद....
आशुतोष कुमार सिंह
www.bhojpuriyababukahin.blogspot.com
मनोज जी,
देरी से कुछ कहने के लिये क्षमा चाहूंगा.
बहुत ही सुन्दर कविता, शब्दों के साथ लय,ताल का संगम अद्भुत है.
वैसे, मेरा पैतृक नाता उत्तर-प्रदेश से है तो अवधि तो समझ लेते है और भोजपुरी भी थोड़े से बेहतर समझ आती है.
" जमीने प बा आदमी के वजूद
तबो मन परिन्दा उड़ावत रहल "
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ हैं.
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
न जाने कइसे पढ़े का छुट गइल रही हमरे से इ कविता ,
बहुते नीक बा ,पढ़ के दिल खुस हो गइल बा ,
तोहरे से पहिले पाण्डेय जी सुनावत रहिल अइसन कविता ,
देखा तनी सब लोग उ काहे हिन्दयुग्म का भुत्लाये ग इल है ,अब समझे चुनावे में busy हो गइल बा
इस मनोज भावुक के मुझे पूर्वा टीवी के नाम पर धोखा दिया था. इसकी असलियत हो भोज्पुरिया वालो ने ठीक से उघारा है
http://www.bhojpuria.com/v2/index.php/samachar/hot-topic/298-manoj-bhawuk-caught-red-handed
After a long time gone through a Bhojpuri Kavita.. I Love this language.. the only language having the power of expression much beyond the literal words ..
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