दोहा पर दोहा कहे, खुद अपने गुण-धर्म.
पठन-मनन-चिंतन करें, लिखें समझ कर मर्म.
दोहा लेखन के प्रति गंभीर रचनाकारों के लिए दोहा के विविध आयामों का समावेश करते हुए विविध रचनाकारों के दोहे प्रस्तुत करने का उद्देश्य केवल यह है की आप दोहा रचते समय उसकी विशिष्टताओं को समाविष्ट कर सकें.
महाकवि रहीम:
दीरघ दोहा अर्थ के, आखर थोड़े आहि.
ज्यों रहीम नट कुण्डली, सिमिट कूद चढ़ जाहि.
दुलारे लाल:
सतसैया के दोहरे, चुने जौहरी हीर.
भाव भरे तीछन खरे, अर्थ भरे गंभीर.
नीरज:
गागर में सागर भरे, मुदरी में नव रत्न.
अगर न यह दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न.
आचार्य भगवत दुबेः
दोहा मुक्तक काव्य का, प्रखर छंद विन्यास.
तारे सी लघुता मगर, ध्रुव सा दिशा प्रकाश.
गिरिमोहन गुरु:
तेरह-ग्यारह मात्रिका, चारू चरण हैं चार.
शब्द-शब्द सब बिन्दुवत, अर्थ सिन्धु विस्तार.
दोग्धक दूहा दोहरा, दोहे के पर्याय.
आदिकाल से आज तक, दोहा है अनिवार्य.
राधेश्याम शुक्ल:
हर मंजिल हर मोड़ पर, दोहा छोडी छाप.
काया इसकी वामनी, लिया सभी कुछ नाप.
मनीषी:
दो चरणों का दोहरा, जादू की तलवार.
वामन अड़तालीस का, नाप रहा संसार.
जगदीश प्रसाद विकल:
शब्द सुमन संचय सरस, लघु तन ह्रदय विशाल.
कवि मन उपवन की छटा, दोहा तीनो काल.
सत्यव्रत सिंह:
काव्यात्मक दोहा सुघर, रूप-स्वाद का योग.
कवि करते आये सदा, नव-नव नीति प्रयोग.
शास्त्री नित्य गोपाल कटारे:
दोहांनुजोति मोहकः योनुश्तुप्छ्न्दस्य. तू.
श्रेष्ठः ज्येष्ठः बोधकः हिन्दी साहित्यस्य.
डॉ. जयजयराम आनंद:
हर दोहा आनंद का, जनमानस की पीर.
गागर में सागर भरे, गंगा-जमना तीर.
संजीव 'सलिल':
गीतिकाव्य के गगन में, दोहा दिव्य दिनेश.
अन्य छंद शशि-तारिका, वे सुर यही सुरेश.
दूहा, दोहअ, दोहरा, द्विपथक, दोग्धक नाम.
दुषअह, दोहक, दोहडा, दोहा छंद ललाम.
भरे बिंदु में सिन्धु यह, लघु में विलय विराट.
दोहा, छंद-नरेश का, यश गाते कवि-भाट.
अर्थ, बिम्ब, रस, उक्ति से, छोड अमिट प्रभाव.
मर्म भेद कर रसिक का, दोहा भरता घाव.
देश-काल का आइना, जन-मानस का मित्र.
अंकित करता शब्दशः, दोहा सच्चे चित्र.
धर्म, नीति, आचार का, दोहा अमिट प्रमाण.
मिलन-विरह, बदलाव फिर, ध्वंस पुनर्निर्माण.
द्रोह-मोह, दुर्योग या, योग-भोग, संयोग.
दोहा वह उपचार जो, हरता हर भव-रोग.
अड़तालिस मात्रा गिनी, शब्द-शब्द में अर्थ.
ताना-बाना सतासत, शेष सभी कुछ व्यर्थ.
चार चरण युग चार ज्यों, उभय पंक्ति दिन-रात.
चौबिस घंटे कला बन, कहें काल की बात.
दोहा मात्रिक छंद है, तेइस विविध प्रकार.
तेरह-ग्यारह दो पदी, चरण समाहित चार.
स्नान-ज्ञान के घाट पर, बुद्धि कलश-सच नीर.
शब्द ब्रम्ह है, अंश मन, दोहा विमल शरीर.
विषम चरण के अंत में, रहे 'सनर' नेपथ्य.
सम चरणान्त 'जतन' कहे, सार्थक है कवि-कथ्य.
विषम चरण के आदि में, 'जगण' विवर्जित मीत.
गुरु-लघु सम चरणान्त में, दोहा की शुभ रीत.
कला तीन या चार का, युग्म रहे पद-आदि.
विषम 'सनर' सम 'जतन' गण, अंत हरे हर व्याधि.
नीलम जी! आपके द्वारा उद्धृत दोहा सलिल प्रवाह की तरंग है. अजित जी! आपके निम्न दोहे में मात्रा गणन बिलकुल सही है.
सलिल नमन है आपको
111 111 2 2 12 = 13
आज हुए हम धन्य
21 12 11 21 = 11
बिरल रक्त है आपका
111 21 2 212 = 13
महादेवी कुलज्य।
1222 121 = 11
किन्तु चौथे चरण में लय भंग है... शब्दों में हेर-फेर से आप उसे ठीक के सकती हैं.
मनु जी! शन्नो जी के दोहों पर चर्चा वहीं हो गयी, जहाँ वे छपे हैं. देखिये,
अब आज का गृह कार्य: ''कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन.'' इस दोहा की अगली पंक्ति सही-सही लिखने वालों को एक दोहा उपहार में मिलेगा.
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
आचार्य जी,
हर पल सुधार की कोशिश में हूँ, और अभी भी छोर पकडे हूँ.
आपके बिचार जानने की आशा में दोहे का तीसरा और चौथा चरण लिखने का प्रयत्न किया है मैंने:
आपका लिखा: कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन
मेरा लिखा: शब्द-चयन की सुगढ़ता, अर्थ दे मन को चैन
अभी-अभी दोहे का तीसरा और चौथा चरण भेजा है टिप्पणी में. कुछ सुधारना चाहती हूँ. इसके लिए क्षमा चाहती हूँ.
'शब्द-चयन सुगढ़ बनाये, अर्थ से मिलता चैन.'
अच्छे दोहों को बांटने के लिए आचार्यजी का धन्यवाद |
गृह कार्य पूरा किया है देखियेगा -
कब मनु जी दोहा लिखें,
थके राह तक नैन |
कहती प्रियसी अब लिखो ,
११२ ११२ ११ १ २
बीती जाती रैन ||
२२ २२ २१
आपका,
अवनीश तिवारी
प्रणाम आचार्य,,,
दोहा तो पता नहीं कब लिखा जाए,,,,
पर,,,,
"शब्द-चयन सुद्रढ़ बने, मिले अर्थ से चैन' (सुद्रढ़ की जगह सुंदर भी हो सकता है)
एवं,,,,,
"कहत प्रेयसी अब लिखो,बीती जाती रैन" या,,(कहे प्रियतमा अब लिखो,बीती सगरी रैन)
या सारी रैन, पूरी रैन,,,,,,
या,,,
"बोली सजनी अब लिखो, निकली आधी रैन"
ऐसा ही होगा ना आचार्य,,,,??
कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन
शायरी के कायल मनु, दोहा करे बेचैन
गुरु जी,
मुझे पता है कि आप मुझे डांटेंगे जरूर (शायद). लेकिन क्या करुँ दोहों के लिखने की आदत से मजबूर हो गयी हूँ. बस इस बार के लिए यह कुछ और. इनाम तो शायद मनु जी को ही मिलेगा एक और दोहे के रूप में. लेकिन यह तो मैंने आपकी राय जानने के लिए लिखे हैं. फिर अगर तकदीर में इनाम भी लिखा होगा तो इससे अच्छा और क्या
हो सकता है.
१. पकड़ लेखनी हाथ में,
१+१+१ २+१+२ २+१ २ =१३
मनु मन को दे चैन
१+१ १+१ २ २ २+१ = ११
२ अब लिखि भी ले मनु कछू
१+१ १+१ २ २ १+१ १+२ = १३
गुरु होंय बेचैन
१+२ २+१ २+२+१ = ११
३.'सलिल'-वारि की बूँद पी
१+१+१ २+१ २ २+1 २ = १३
पा ले अतुलित चैन
२ २ १+१+१+१ २+१ =११
४. मीठे बोल मिश्री घुले
२+२ २+१ १+२ १+२ = १३
कड़वे बोल कुनैन
१+१+२ २+१ १+२+१ = ११
तपन जी,
या तो शायरी को शेरों किजीये,,,
दुसरे बेचैन से बेचैनी हो रही है,,,,,,,,,,,,,
शन्नो जी,
आप काहे डांटने की या कान पकड़ कर निकाले जाने की बात करती हैं,,,,?इतना जल्दी इतना ज्यादा होम वर्क भला और कौन कर सकता है,,,,,हम जैसे निक्कमे छात्र को तो दोहअ लिख कर प्रेरित किया जा रहा है और आप,,,,,
आपके पिछले वाले दोहों में कितनी कम गलतिया थी,,,,पर आप पथ बहुत जल्दी भूलती हैं,,,
अभी आपको ही कहा था आचार्य ने के "कछु" ,,,,"लिखी" ,,"होय" जैसे शब्दों के प्रयोग से बचें,,,अब अपने जो नंबर दो दोहा लिखा है,,,,,उनमे बड़े आराम से इन से बचा जा सकता है,,,,ज़रा दुबारा देखें,,,,
बाकी मनु के मन में आये बिना कुछ लिखा ही नहीं जाता,,:::::::))
इसलिए केवल आपके लिखे में ही टांग अडाकर हाजिरी दे रहा हूँ,,,,,
मुझे जरूर आचार्य निकाल सकते है कान पकड़ कर,,,
aur
"meethe bol mishree bhare"
jab aap ise dohe ki tarah gaayeingi,,,
to aapko lay mein bhi fark lagegaa,,,
bhale hi aapki ginti sahi ho...
शुभ-शुभ बोलो मनु जी, कहीं ऐसा न होय १३+११
हम हों कक्षा से बाहर, मिले ठौर ना कोय. १३+११
सॉरी!
तीसरे चरण में एक मात्रा की कमी रह गयी थी. शायद मनु जी को ऐसी गलतियाँ महसूस न हो पायें पर मुझे उस मात्रा की कमी पूरी किये बिना बेचैनी हो रही थी इसलिए सुधार करना आवश्यक हो गया. और जल्दी से मनु जी के नाम में ज़रा सी तबदीली लानी पडी, क्योंकि जल्दी में कुछ और न सूझा. इसके लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ. आशा है कि मनु जी कोई समस्या नहीं खड़ी करेंगे.
शुभ-शुभ बोलो मनू जी, कहीं ऐसा न होय
हों हम कक्षा के बाहर, मिले ठौर ना कोय.
आचार्य जी
विलम्ब हो गया। अभी दोहरी जिम्मेदारी जो है।
सभी के सुंदर प्रयोगों के बाद जो कुछ शब्द बचे हैं उन्हीं का प्रयोग कर रही हूँ -
कब मनु जी दोहा लिखे
थके राह तक नैन
जब श्रद्धा औ इडा मिले
11 12 2 12 12= 13
जगते मनु के बैन।
112 11 2 21 = 11
भला हो आपका मनु जी, कि आप की निगाह मेरी गलती पर पड़ गई, मेरा मतलब पहले चरण से था तीसरे से नहीं: 'शुभ-शुभ बोलो मनू जी'. यह पहला चरण है.
आपका नाम मात्रा में गड़बडी के कारण temporarily बदलने की जुर्रत की है मैंने. आशा है कि आपको इससे कोई तकलीफ नहीं हुई होगी. अगर हुई है तो मैं seriously क्षमा मांगती हूँ आपसे. लिखने के बाद हमेशा जांच कर ही भेजती हूँ लेकिन तीर कमान से छूटते ही अपनी गलती का अहसास हो जाता है. ऐसा क्यों होता है मेरे साथ पता नहीं. और मैं अपना माथा ठोंक कर रह जाती हूँ. और जानकर ख़ुशी हुई कि आपको जाने-अनजाने में ही दोहों में गलतियाँ निकालने का इतना ज्ञान हो गया. बहुत ही तीव्र-दृष्टि है आपकी. अब आप अपने को दोष देना छोड़ दीजिये कि आप दोहे के बारे में कुछ नहीं जानते हो. Just keep it up.
मनु जी, दोबारा लिख रहा हूँ...देख लें.. :-)
कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन
शेरों को करते पसंद, दोहा छीने चैन
आदरणीय आचार्य जी,
यह मेरा आखिरी प्रयास है इस हफ्ते का. यह दो प्रयत्न और कर रही हूँ. मेरी विनती है आप से कि आप इन दोहों के बारे में अपने बिचार अवश्य बतायें कि यह दोहे कैसे हैं जिनमे पहला और दूसरा चरण आपके कर-कमलों से लिखे हुए हैं.
''कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन
मृग-तृष्णा में भटक के, ना खोवे सुख चैन''
''कब मनु जी दोहा लिखें, थके राह तक नैन
आतुर बोली लेखनी, ना हो अब बेचैन''
परिणाम जानने की बहुत ही प्रतीक्षा रहेगी.
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