मत फेंको जूता
यह है शिष्टाचार के खिलाफ़
और कानून के विरुद्ध ।
तुम क्षमा कर दो उन्हे
जो हत्या में लिप्त थे
जरा देखो तो सही !
उनके हाथ अब कितने पाक-साफ है !
वे गले में टांगे घूम हैं
निर्दोष होने का प्रमाण-पत्र !
जरा समझो कि
साँस छोड़ती चन्द जिन्दगियां
धन्य हुई
जिनसे चील कौओं ने तुष्टि पाई;
फड़फड़ाती अकुलाती चिड़ियों की वेदना
धन्य हुई
जिनसे गलत में ही सही
प्रतिशोध की हवस पूरी की
बाज ने और गिद्धों ने
जिनके क्रूर नृत्य से डरता है आकाश
तो तुम सह लो और भूल जाओ
क्योंकि तुम्हारे अपनों की याद
मुँह चिढ़ाती है
आइने में नपुंसकता बन कर
इनके ठाठ-बाठ में शरीक हो जाओ
कि ये तुम्हे क्षमा करके पौरुषवान हो गये
फिर से कहता हूँ
मत फेंको जूता
अब तुमने फेंक ही दिया
तो तुम्हारे फटे मौजे के छेद से
नासूर दिखने लगे
जिसकी पीड़ा
कलम बेच खाने वालों को भी हुई
कहने लगे - तुम्हे
कलम की ताकत पर
भरोसा नहीं रहा
उसकी शक्ति हार गई जूते के आगे
तुम्हारे दर्द ने
व्यवस्था पर
जो आक्रमण किया
वही तो किया था
चील कौओं की राजनीति ने
बाज और गिद्धों के स्वार्थ ने
फ़र्क ही क्या रहा?
तो इस सभ्य समाज की
सारी खुशफ़हमियाँ
बनी रहने दो;
चुनाव के रोज
इठलाती उंगली पर लगी
इतराती हुई काली-
स्याही की कसम
मत फेंको जूता !
-हरिहर झा
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
जीवन का गणित
गलत है जूता फेंकना सही कहेगा कौन।
मजबूरी का शस्त्र तब सत्ता होती मौन।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
हरिहर जी,
मौजूदा हालातों पर और परिस्थितिजन्य आवेग के मुँह पर करारा तमाचा मारती कविता के लिये बधाई.
वहीं, कविता यह संदेश भी देती है कि वक्त तेरा भी आयेगा, जरा इंतजार कर :-
" तो इस सभ्य समाज की
सारी खुशफ़हमियाँ
बनी रहने दो;
चुनाव के रोज
इठलाती उंगली पर लगी
इतराती हुई काली-
स्याही की कसम "
सोचने पर मजबूर करना ही कवि की सफलता है और काव्य की सार्थकता भी.
पुनश्र्च बधाईयाँ.
सादर
मुकेश कुमार तिवारी
झा साहब आपकी रचना मत फैंको जूता मत फैको वास्तव में प्रशंसनीय है ।हमारे कथित नेताओं के कारनामें ही ऐसे हई कि हताश और निराश आम आदमी क्या करे कुछ समझ नहीं आता है।नेताओं को इससे सबक लेना चाहिऐ कि कम से कम अब तो सुधरें।
हरिहर जी
कितना सुंदर चित्रण है की शब्द नहीं कहने को
कलम की ताकत पर
भरोसा नहीं रहा
उसकी शक्ति हार गई जूते के आगे
कितना करारा व्यंग है सुंदर अति सुंदर
सादर
रचना
संवेदनामय सामयिक रचना.
वास्तव में सुंदर,,,,,,,,,
ek sashakt rachana | badhai |
saadar,
vinay k joshi
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