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Thursday, April 02, 2009

...... अंत


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अंत .....
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कुछ ऐसा अजीब रिश्ता था वह
जैसे
मेरी दो हथेलियों को मिलाकर बने चाँद का
उसमें रखे दो घूँट चंचल पानी से ....

जिसे गर मैं पी भी लेता
तो प्यास न बुझती ...
या
जिसमें गर मैं अपना प्रतिबिंब ढूंढता
तो जब तक वो नज़र आता
मेरी ही उँगलियों के बीच की दरारों से होकर
मेरा अस्तित्व
बूँद-बूँद गिरता नज़र आता ...!


उस पानी को
न गिरने से रोक सकता था
न उन हथेलियाँ अलग कर सकता था
जो तेरे लिये मैंने जोड़ लीं थीं

गर ऐसे निर्मल प्रेम का अंत
क़तरा......क़तरा ..... गिर कर ही होना है
तो वो उसी निर्गुण, निराकार के लिये गिरे
जिसने इस रिश्ते को बनाया था

अपने ही डूबते सूरज की तरफ़
ये हथेलियों का चाँद उठाकर
अब उंगलियाँ खोल दी है मैंने
और उस रिश्ते को ...
बूँद-बूँद कविताओं में
गिरने दे रहा हूँ ...

.... एक अर्घ्य देकर.


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RC
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

aachi soch...aachi kavita
Anupama

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

गर ऐसे निर्मल प्रेम का अंत
क़तरा......क़तरा ..... गिर कर ही होना है
तो वो उसी निर्गुण, निराकार के लिये गिरे
जिसने इस रिश्ते को बनाया था.....

अपने ही डूबते सूरज की तरफ़
ये हथेलियों का चाँद उठाकर
अब उंगलियाँ खोल दी है मैंने
और उस रिश्ते को ...
बूँद-बूँद कविताओं में
गिरने दे रहा हूँ ...

.... एक अर्घ्य देकर.


अनंत के दिए गए अंत का स्वीकार ... यूँ निश्छल प्रेम का अर्घ्य ..वाह ..अत्यंत सुन्दर

manu का कहना है कि -

कविता बहुत बहुत अच्छी लगी,,,
मन को छूने वाली रचना,,,,

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत बढिया रूपम जी,
एक एक शब्द दिल को छू गया।

ममता पंडित का कहना है कि -

गर ऐसे निर्मल प्रेम का अंत
क़तरा......क़तरा ..... गिर कर ही होना है
तो वो उसी निर्गुण, निराकार के लिये गिरे
जिसने इस रिश्ते को बनाया था

अद्भुत, बहुत ही सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें |

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

अपने ही डूबते सूरज की तरफ़
ये हथेलियों का चाँद उठाकर
अब उंगलियाँ खोल दी है मैंने
और उस रिश्ते को ...
बूँद-बूँद कविताओं में
गिरने दे रहा हूँ ...

.... एक अर्घ्य देकर
मन को छूते शब्द-सुन्दर अभिव्यक्ति
विनय के जोशी

विश्व दीपक का कहना है कि -

क्या बात है!
अतिसुंदर, प्रशंसा के लिए शब्द नहीं बचे।

भावों का निर्झर प्रवाह और शब्दों का बखूबी निबाह!
वाह जी वाह!

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

rachana का कहना है कि -

बहुत खूब मन द्रवित करने वाली कविता
सादर
रचना

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अच्छी नज़्म

Pritishi का कहना है कि -

Bahut bahut Shukriya !

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