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Thursday, April 02, 2009

क्षणिकाएँ





(1)
सहमी सी
डरी सी
हारी सी
निकली थी घर से
नुक्कड़ पर
कई विकल्प खड़े थे,
उसने सच्चाई और साहस
चुन लिए और वह
जीत गई
*
(२)
हम
ग़म के घरोंदे बन
एकाकी बैठे थे
तुमने छुआ
खुशियों की तितलियाँ
बिखर गई |
*
(३)
अपनों से
बिछडने की रेखा
ह्रदय पर गहरी पड़ी है
पर नवजात की मुस्कान
हर बार,
दीवारों पर टंगी
तस्वीरों पर
भारी पड़ी है
*
(४)
श्वेत - श्याम
सपने थे मेरे
फिर एक निशा
तुम आये - मेरे सपने में
और सभी रंगीन हो गए
*
(५)
उल्लासित बेटी
स्वेच्छा प्रणय पर,
-पर माँ की पलकों पर
नमी आ गई.
पूछा जो किसी ने ... क्यूँ ?
तो सिसकी ले बोली
मुझे अपनी माँ
याद आ गई .
*
(६)
फिर
एक बार
शाकाहारी होने की
कसमें खाई
और भेड़ों के
निर्णायक वोटों से
भेड़िये जीत गए
*

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

नवजात की मुस्कान
हर बार,
दीवारों पर टंगी
तस्वीरों पर
भारी पड़ी है
vaah vaah vijayji vah vah
"GHUMAKKAD"

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

जोशी जी,

सच्चाई से आँख मिलाती बहुत ही दमदार पंक्तियाँ :-

फिर
एक बार
शाकाहारी होने की
कसमें खाई
और भेड़ों के
निर्णायक वोटों से
भेड़िये जीत गए

बधाईयाँ.

मुकेश कुमार तिवारी

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

दूसरी और तीसरी क्षणिकायें अधिक पसंद आईं

Harihar का कहना है कि -

शाकाहारी होने की
कसमें खाई
और भेड़ों के
निर्णायक वोटों से
भेड़िये जीत गए

विनय जी ! मैं तो पढ़ कर घायल हो गया !

Udan Tashtari का कहना है कि -

सभी क्षणिकायें उम्दा है-अपने आप में पूरी.

manu का कहना है कि -

सभी एक से बढ़ कर एक,,,,
मगर तीसरी का कोई जवाब नहीं,,,
नवजात की मुस्कराहट दीवार पर तंगी तस्वीरों पर भारी,,,,,
बहुत प्यारी,,
और आखिरी वाली भी बहुत ही जानदार लगी,,,,
भले ही उपमाये साधारण है पर आपने कमाल कर दिया,,,

शोभा का कहना है कि -

श्वेत - श्याम
सपने थे मेरे
फिर एक निशा
तुम आये - मेरे सपने में
और सभी रंगीन हो गए
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई स्वीकारें।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

All r good

neelam का कहना है कि -

सहमी सी
डरी सी
हारी सी
निकली थी घर से
नुक्कड़ पर
कई विकल्प खड़े थे,
उसने सच्चाई और साहस
चुन लिए और वह
जीत गई

humaari najar me yahi hai chhanika number 1

विश्व दीपक का कहना है कि -

उल्लासित बेटी
स्वेच्छा प्रणय पर,
-पर माँ की पलकों पर
नमी आ गई.
पूछा जो किसी ने ... क्यूँ ?
तो सिसकी ले बोली
मुझे अपनी माँ
याद आ गई .

यह क्षणिका सुंदर लगी, बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बहुत उम्दा और संदेशपरक क्षणिकाएँ

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