मैने कब मांगा तुझसे कि इक घर दे दे
पाँव फैला सकूँ इतनी चादर दे दे
अब तलक खोलकर दिल दिये गम तूने
आज खुशियां भी इनके बराबर दे दे
ख्वाहिशें अपनी भी हैं फलक छूने की
मेरे मौला जो उड़ने को तू पर दे दे
ये नई पीढ़ी बेखौफ है,हो चली
ऐ खुदा तू इसे अपना कुछ डर दे दे
हाल बेहाल है इस कदर आज तो
जान देदूं मैं कोई कज़ा* गर दे दे
मरते-मरते अचानक मिला साँस क्या
कह उठा दे दे जोरू, जमीं,जर दे दे
है तमन्ना मेरी सर उठाकर चलूं
ऐ खुदा मेरे कंधो पे इक सर दे दे
मान लें हम भी उसको खुदा‘श्याम’जी
मीरा सी भक्ति कोई हमें गर दे दे
फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,
कजा=मौत
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
खूबसूरत ग़ज़ल लाजवाब शेर.....
अनोखे तेवर
ख्वाहिशें अपनी भी हैं फलक छूने की
मेरे मौला जो उड़ने को तू पर दे दे
लाजवाब
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' said...
लाजवाब
April 01, 2009 6:54 PM
ख्वाहिशें अपनी भी हैं फलक छूने की
मेरे मौला जो उड़ने को तू पर दे दे
वाह श्यामजी ! सुन्दर कविता !
अब तलक खोलकर दिल दिये गम तूने
आज खुशियां भी इनके बराबर दे दे
ये नई पीढ़ी बेखौफ है,हो चली
ऐ खुदा तू इसे अपना कुछ डर दे दे
(Doosre misra maanya nahin hai mujhe, :-), beherhaal bahut umda Sher!)
हाल बेहाल है इस कदर आज तो
जान देदूं मैं कोई कज़ा* गर दे दे
Bahut bahut achchi Ghazal!
Badhai
RC
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' &
manu said...
लाजवाब
shyam ji ghazal to acchi hai par behar ki bhi jaankari de det to accha hota...
..aap to jante hi hani ki seekh raha hoon to agar aap bata dein "de de ki" ginti....
mujhe confusion reh gaya hai....
ho sake to kisi ek sher ki ginti de dein....
main subah se uljhan main hoon...
:(
ख्वाहिशें अपनी भी हैं फलक छूने की
मेरे मौला जो उड़ने को तू पर दे दे
क्या बात है!!!
RC जी को बधाई ,
पूरी ग़ज़ल पढ़ पाने के लिए,,,,,
मुझे तो पहले मिसरे में ही अपने हाथ खड़े कर देने पड़े,,,,,
या तो हो सकता है के कोई ज्यादा ही मुश्किल बहर होगी जो मुझ बिना पढ़े को समझ नहीं आ रही है,,,
केवल मनु के लिये !
मैने कब मांगा तुझसे कि इक घर दे दे
२१ २, २ १ २ २ १ २ २ १ २
मैने का ने गिरना तो आप जानते ही,मांगा का गा का भी ग बन सकता है क्यों यह आप जिन से आजकल गज़ल सीख रहें हैं उनसे पूछ कन्फ़र्म कर लें,बाकी तो आप जैसा गुणी.. जानता ही है
शाह जी वज्न लिखा तो है ? फ़िर आप क्या ढूंढ रहे हैं
श्याम सखा‘श्याम’
श्याम जी,
मुझे नहीं मालूम था के मैं आजकल गजल भी सीख रहा हूँ,,,,,
यदि मुझे गिनती आती होती तो शायद ना अटकता,,,,, जैसे तैसे गिन कर काम चला ही लेता,,,
मगर मैं अब भी नहीं समझा के आपने क्या समझा दिया,,,,मुझे बस ये मालूम है के इस ग़ज़ल को मैं अपनी जबान पर नहीं ला पा रहा हूँ,,,,,
और अगर नहीं ला पा रहा तो कही ना कोई ना कोई प्रॉब्लम है ( हो सक्या है के मेरी ही जबान में हो )
पर कुछ ना कुछ है,,,पक्का है,,,,,,,,,,,,,,,,
बाकी गिनती तो मुझे करनी ही नहीं आती,,,,,
गुनगुनाना आता है,,,
जी श्याम जी,
मुश्किल से कुछ कुछ आनी शुरू हुई है गुनगुनाहट में,,,,, मगर पूरी तरह से नहीं,,
जैसी के ग़ज़ल को आ जाना चाहिए मेरी जबान पर यूं नहीं आया रही,,,,," दे दे " पर आकर गजलियत ख़त्म हो रही है,,,,,पहले वाले " दे " को गिराना पड़ रहा है,,,,, हो सकता है के गजाल के कानून के मुताबिक सही हो,,,,,,( पर मुझे सूट नहीं कर रहा) ,,,,,,
हर चीज की तरह ग़ज़ल को भी अपनी नज़र से देखता हूँ,,,,,
बात रही सीखने की ,,,,,,
दो साल के बच्चे से लेकर सदियों पहले के ग़ालिब तक से सीखता हूँ,,,,
बशर्ते कोई प्यार से सिखाये,,,,,,
( अभी ये टिपण्णी लिखने तक तो निगुरा हूँ ),,,आने वाले वक्त का कौन जाने,,,,( यूं आपसे भी कुछ ना कुछ सीखा ही होगा,,,)
मगर मेरा अपना तरीका हर किसी शब्द को गिराने की इजाजत नहीं देता,,,,,,बाकी आप तो घर जैसे हैं ,,,मिलते ही रहते हैं,,,,,,ये ग़ज़ल आपके ही द्वारा सुनकर क्या पता समझ आये,,,,
प्रिय मनु । अगर आप मुझसे अपनी टिपण्णी में तक्तीअ करने को कहते तो मैं उसे सहर्ष विनम्रतापूर्वक करता,लेकिन तुम्हारी टिपणणी अधजल गगरी सरीखी छलक रही थी और उस जैसी टिपण्णिया या बातों ने मुझसे ये शे‘र
ये नई पीढ़ी बेखौफ है,हो चली
ऐ खुदा तू इसे अपना कुछ डर दे दे
(Doosre misra maanya nahin hai mujhe, :-), beherhaal bahut umda Sher!)
लिखवाया अब शायद रूपम को भी यह मान्य हो जाए
मैं तो इस शे‘र से बात स्पष्ट करने कीकोशिश कर रहा हूं
खुद से चलकर नहीं हुनरे-सुखन आया है
पाँव दाबे हैं बुजुर्गों के तो फन आया है
दे की मात्रा अनेक अदीबों को गिराते देखकर ही गिराई है और यह मान्य है
श्याम सखा‘ श्याम’
आदरणीय श्याम जी ,
यदि मुझे तक्तीया का कुछ पता हो तो मैं आपसे कहू,,,,बाद की दो तिपन्नियों में भी मैंने और अधिक स्पष्ट किया है के मुझे ग़ज़ल का किताबी ज्ञान बिलकुल भी नहीं है,,,अतः गिनती या तख्तिया से भी मेरा कोई वास्ता नहीं,,,,,पर इसका ये अर्थ बिलकुल भी नहीं के मैं ग़ज़ल नाम की चीज से एकदम अनजान हूँ,,,,, दे की मात्रा गिराई तो जा सकती है पर यहाँ पर मेरी जबान ना इसे पूरा उठा पा रही है और गिरा कर तो और भी ज्यादा असुविधा लग रही है,,,,,बाकी maine कह के बहुत गलती की,,,,,मुझे वाकई में नहीं कहना चाहिए था,,,,,अक्सर ही जबरन आपकी बात माननी पड़ती है,,,,,,
अब कृपया ये तो स्पष्ट कर दिजीये के मैं गजल सीख किस से रहा हूँ,,,?
कम से कम अपने गुरुदेव का नाम तो जान ने का हक़ है ही मुझे,,,,,,,
हर बात पे..... तू
ये अन्दाजे गुफ़्त्गू क्या है
प्रिय मनु,मैं जैसे औरों की टिपण्णी रचनाएं पढता हं आपकी भी और इस बार आपके अन्दाज में ही जवाब दे दिया बस.इतनी सी बात है मुझे आपका बाकी जैसे आपने कहा कि कोई प्यार से सिखाये तो उससे पहले कोई प्यार से पूछे-सीखे तो..क्योंकि जो हम देते हैं वही पाते हैं
रही गुरू की बात तो आपने लिख ही दिया है
अब बाकी क्या रह गया
दो साल के बच्चे से लेकर सदियों पहले के ग़ालिब तक से सीखता हूँ,,,,
बशर्ते कोई प्यार से सिखाये,,,,,,
अब इसको विराम-विश्राम देते हैं,मेरे दिल में कोई दुर्भावना नहीं है किसी के लिये भी-श्याम
श्याम जी तथा मनु जी
प्रणाम
थोडीसी सफाई देने आई हूँ ! Hope you will accept ...
"दूसरा मिश्रा मान्य नहीं है मुझे " - इस कमेन्ट में maine "मुझे" लिखा है और आगे मैंने स्माइली लगायी है | मेरा मतलब था के शे'र तो बहुत उमदा है मगर.... खुदा, इस बेखौफ पीढी को बेखौफ रहने दे ... कोई डर न दे !
Bus itni si baat thi.
एक ज़रूरी बात ...I said it on a lighter note. Hence added a smiley too. I loved this Ghazal and I respect Shyam ji tremendously, it was just a lighter view that I shared!
मैंने किसी शे'र को वजन में नहीं तोला ! मगर जानकारी पढ़कर बहुत अच्चा लगा और सीखने को मिला!
My apologies for the misunderstanding!
धन्यवाद !
परम आदरणीय श्याम जी,
जान कर बहुत हर्ष हुआ के वो शेर मेरे लिए या मुझ जैसे के लिए लिखा गया है,,,,,
परन्तु ग़ालिब के जिस शेर को आपने मेरे कमेंट के साथ जोड़ा है मैं उस से सहमत नहीं हो पा रहा हूँ,,, ( आप मेरी तिपन्निया ध्यान से पढ़े और सोचें के क्या उनके लिए आपको चचा गालिब का ये शेर इस्तेमाल करना चाहिए था,,,,,??? ) हां यदि केवल उम्र की बात करें तो मैं कुछ हद तक मान सकता हूँ,,,,,(हालांके फेन के मामले में मेरा मत उम्र के बारे में भी कुछ अलग ही है,,,,) ये मैं मान ही चुका हूँ के मुझे यहाँ पर कोई बात ही नहीं कहनी चाहिए थी,,,,,इसलिए पहले वाले कमेंट में लाजवाब लिख कर निकल लिया था,,,मगर फिर पढने आया के देखें शायद अब हमारी जबान पर आपकी हसीं ग़ज़ल आ जाए,,,,, आपने सभी कुछ बता दिया सिवाय उस बात के जो बतानी थी,,,,खैर हो सकता है के आपने समझा दिया हो और मैं ही ना समझा हूँ,,,,,
बाकी दो साल के बच्चे का और मरहूम ग़ालिब का उदाहरण दिया तो ये सोच कर के मैं शायद खुद भी नहीं जानता के मुझ में ऐसी कौन सी चिप लगी हुई है जो मुझ को ये ,,," दे ",, "दे ",, नहीं पढने दे रही है,,,,, पर मेरा ये विश्वास और भी पक्का हो गया है के केवल किताबो से गजल नहीं आती,,,,,
अब तो आप मेरे गुरु के बारे में मुझे कुछ बता दें ,,,,,
मैं एकदम आपके कहे अनुसार बात को वाही विराम दे देता क्यूनके दुर्भावना मेरे मन में भी नहीं है,,,,,परन्तु आपने ऐसे सस्पेंस में डाल दिया के क्या करू,,,,,, मैं तो परेशान ही हो उठा हूँ,,,,
दूसरा अंतिम t
खूबसूरत लाजवाब् बेहत्रीन गज़ल के लिये आभार
खवाhहिशें अपनी भी हैं फलक छूने की
मेरे मौला जो उडने को तू पर दे दे
भगवान अपकी ये इच्छा पूरी करे मगर कमी अब भी नहीं है ये कला अब के नसीब मे नहीं होती
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