अभी कुछ दिन पहले मैंने आपको युवा कवि हरे प्रकाश उपाध्याय की कविताओं से मिलवाया था, और यह वादा किया था कि उनकी अन्य कविताओं से आपको रूबरू करवाऊँगा। 'खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ' में से जब मैं कुछ कविताएँ चुनने की कोशिश करता हूँ तो विफल हो जाता हूँ। हरे प्रकाश की किसी भी कविता को उनकी प्रतिनिधि कविता कहा जा सकता है। इनकी कविता के शब्द बहुत सहज ढंग से पाठक के मन में उतरते हैं। प्रथम दृष्टया यह लगता है कि यह आम आदमी की कविता है। कलम उठाने बैठ जाये तो पहली दफा लिखने वाला भी ऐसी कविताएँ लिख सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। साधारण शब्दों में जो कथ्य-बयानी है, वह इन्हें बड़ा बनाती है। इनके साधारण पात्र, साधारण बिम्ब, साधाराण उपमाएँ बस प्रतीक भर हैं जो दुनिया भर की बिडम्बनाएँ समेटे हैं। एक कविता पढ़ते चलिए-
'इस बरस फिर'
इस बरस फिर बारिश होगी
मगर पानी
सब बह जाएगा समुद्र में
बता रहे हैं मौसम विज्ञानी
इस बरस पौधों की जड़ सूख जाएगी
मछली के कंठ में पड़ेगा अकाल
ऐन बारिश के मौसम में
इस बरस फिर ठंड होगी
और ठिठुरेंगे फुटपाथी
महलों में वसन्त उतरेगा इस बरस फिर
जाड़े के मौसम में
बिने जाएँगे कम्बल
मगर उसे व्यापारी हाक़िम-हुक़्मरान
धनवान ओढ़ेंगे
सरकार बजट में लिख रही है यह बात
इस बरस फिर आयेगा
वसन्त
मगर तुम कोपल नहीं फोड़ पाओगे बुचानी मुहर
इस बरस फिर
लगन आयेगा बता रहे हैं पंडी जी
मगर तुम्हारी बिटिया के बिआह का संजोग नहीं है करीमन मोची
इस बरस फिर तुम जाड़े में ठिठुरोगे
गरमी में जलोगे
बरसात में बिना पानी मरोगे सराप रहे हैं मालिक
अपने आदमियों को।
बढ़ई इस बरस चीरेगा लकड़ी
लोहार लोहा पीटेगा
चमार जूता सिएगा
और पंडीजी कमाएँगे जजमनिका
बेदमन्त्र बाँचेंगे
पोथी को हिफ़ाज़त से रखेंगे
और सबकुछ हो पिछले बरस की तरह
आशीर्वाद देंगे ब्रह्मा, विष्णु, महेश....!
बाकी फिर कभी॰॰॰॰
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
बढ़ई इस बरस चीरेगा लकड़ी
लोहार लोहा पीटेगा
चमार जूता सिएगा
और पंडीजी कमाएँगे जजमनिका
बेदमन्त्र बाँचेंगे
पोथी को हिफ़ाज़त से रखेंगे
और सबकुछ हो पिछले बरस की तरह
आशीर्वाद देंगे ब्रह्मा, विष्णु, महेश....!
बहुत खूब... रुक क्यों गए... चलने देते....
हिन्दी युग्म,
आप सभी को हार्दिक बधाई श्री हरेप्रकाश जी उपाध्याय की बहुत ही अच्छी कविताएँ पढवाने के लिये.
यदि संभव हो तो हरेप्रकाश जी का संपर्क सूत्र भी देने की कृपा करें.
रचनायें किसी भी नवकवि के लिये प्रेरणा हैं और अपने आस-पास के प्रतीकों का इस्तेमाल सिखाती हैं.
मुकेश कुमार तिवारी
मन को छूती अछूती रचना के लिये बधाई.
आपको पढ़कर अच्छा लगा।
बहुत खूब! कविता पढ़कर बरबस ही मिर्जा गालिब के एक कलाम, "इक बिरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है..." की याद आ गयी.
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