फटाफट (25 नई पोस्ट):

Sunday, February 22, 2009

प्यार ने पैदा किए हैं वैज्ञानिक


न चाहते हुए भी,
जब से मासूम पीठों पर,
किताबों का गट्ठर लदा होगा.....
मासूम चेहरों ने बना ली होगी,
बस्ते में अलबम रखने की जगह....

कई बार कच्चे रास्तों पर,
ढेला खाती होगी
आम की फुनगी,
और गिरते टिकोले बढ़ाते होंगे,
प्यार का वज़न...

बिना किसी वजह के,
जब डांट खाते होंगे
बड़े होते बेटे,
प्यार का अहसास,
पहली बार देता होगा थपकी.....

जब नहीं हुआ करते थे मोबाईल,
नहीं पढे जाते थे झटपट संदेश,
आंखें तब भी पढ़ लेती होंगी,
कि किससे होना है दो-चार...
और हो जाता होगा मौन प्यारयययय

ये भी संभव है कि,
अनपढ़ मांएं या बेबस बहनें,
अक्सर याद करती होंगी चेहरा,
तो रोटियों के नक्शे बिगड़ जाते होंगे...

या फिर दाढ़ी बनाते पिता ही,
पानी या तौलिया मांगते वक्त,
अनजाने में पुकारते होंगे कोई ऐसा नाम,
जो शुरु नहीं होता,
मां के पहले अक्षर से....

एक सहज प्रक्रिया के लिए रची गयी रोज़ नयी तरकीबें,
प्यार ने पैदा किये हैं कितने वैज्ञानिक...

ये सरासर ग़लत है कि,
कवि,शायर या चित्रकार ही,
प्यार की बेहतर समझ रखते हैं.....

दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके....

निखिल आनंद गिरि

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Himanshu Pandey का कहना है कि -

"दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके...."

कितने प्यार से कह दिया आपने इसे.

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

निखिल जी,
सही कहा आपने कि -
जब नहीं हुआ करते थे मोबाईल,
नहीं पढे जाते थे झटपट संदेश,
आंखें तब भी पढ़ लेती होंगी,
कि किससे होना है दो-चार...
और हो जाता होगा मौन प्यारयययय
बहुत सुंदर एहसास लिखे हैं.
बधाई

Shamikh Faraz का कहना है कि -

दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके...."

bahut sundar shabd hain aapke.
agar waqt mile to mera blog bhi dekhen kabhi
www.salaamzindadili.blogspot.com

Anonymous का कहना है कि -

कई बार कच्चे रास्तों पर,
ढेला खाती होगी
आम की फुनगी,
और गिरते टिकोले बढ़ाते होंगे,
प्यार का वज़न.
बहुत सुन्दर

अम्मां कितनी लाचारी है
बस्ता हो गया भारी है
श्याम सखा श्याम

manu का कहना है कि -

आज कुछ शक सा लगा था ....पहली लाइन पढ़ कर के किसकी कविता आ गयी...
लाजवाब कविता है.....सही कहा है...प्यार के लिए शाएर या चित्रकार की समझ होना न होना कोई मैने नही रखता......ये सब भी ..प्यार के बाद.....प्यार से ही पैदा होता है
और दाढी बनाते पिता...अनजाने में पुकारते होंगे कोई ऐसा नाम जो माँ के नाम के पहले अक्षर से नही..........

कमाल ..कमाल... कमाल है ...जितना तारीफ़ हो ..कम है...

Unknown का कहना है कि -

दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके....
अच्छी कविता निखिल भाई

सुमित भारद्वाज

Ria Sharma का कहना है कि -

बिना किसी वजह के,
जब डांट खाते होंगे
बड़े होते बेटे,
प्यार का अहसास,
पहली बार देता होगा थपकी.....

प्यार की उत्पत्ति कब अचानक हो जाती है
नही कह सकते
मनोदशा वक्त करती शानदार कविता !!!

neelam का कहना है कि -

निखिल जी ,
आप को इस प्यार ने मनोबैज्ञानिक तो बना ही दिया है ,यह तो तय है ,कमाल कर दिया ज़नाब ,अद्भुत द्रष्टान्त , अनूठी कविता |जारी रहिये इसी तरह , शुभ कामनाओं के साथ |

रंजू भाटिया का कहना है कि -

दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके....

क्या बात है बहुत खूब बहुत सुंदर बात लिखी है आपने ..बहुत पसंद आई यह कविता आपकी

विपुल का कहना है कि -

अच्छी कविता... थोड़ी बिखरी हुई सी लगी |

चारु का कहना है कि -

न चाहते हुए भी,
जब से मासूम पीठों पर,
किताबों का गट्ठर लदा होगा.....
मासूम चेहरों ने बना ली होगी,
बस्ते में अलबम रखने की जगह....

कई बार कच्चे रास्तों पर,
ढेला खाती होगी
आम की फुनगी,
और गिरते टिकोले बढ़ाते होंगे,
प्यार का वज़न...

बहुत प्यारी कविता...

Arun Mittal "Adbhut" का कहना है कि -

कई बार मन में इस प्रकार के भावः उमड़ते थे आपने बहुत अच्छा लिखा .............. बहुत बहुत बधाई ......
इन पंक्तियों कि सचमुच न केवल एक सार्थकता है अपितु ये एक सोचने का दूसरा पहलु भी दिखाती हैं

ये सरासर ग़लत है कि,
कवि,शायर या चित्रकार ही,
प्यार की बेहतर समझ रखते हैं.....

दरअसल,
जिसके पास मीठी उपमाएं नहीं होतीं
वो भी कर रहा होता है प्यार,
चुपके-चपके....

बहुत खूब पुनः साधुवाद

Pooja Anil का कहना है कि -

निखिल जी,

बाकी पूरी कविता भी सुन्दर है, पर विशेष तौर पर ये पंक्तियाँ उल्लेख कर रही हूँ,

बिना किसी वजह के,
जब डांट खाते होंगे
बड़े होते बेटे,
प्यार का अहसास,
पहली बार देता होगा थपकी.....

अक्सर बड़े होते बेटे और बेटियों से बहुत सी उम्मीदें होती हैं, और उनकी मनः स्थिति को समझने की कोशिश नहीं की जाती, आपने उस बात को भी बड़ी ही खूबसूरती से अपनी कविता में ढल दिया. इसके लिए साधुवाद.

पूजा अनिल

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)