अरुण जी, दोबारा बुला ही लिया न मुझे.... मैंने इस रचना में एक बात मुख्या रूप से कहनी थी...शायद पत्नी भी ....नहीं... ......बल्कि... """""""""""""""""" शायद पत्नी ही..""""""""""ये कहे बिना मन नही मान रहा था... और कैसे कहता.........?? हमारी कविता तो हमारे घर में ही सही है...जब ऐसी लिखने लगेंगे तो पोस्ट करेंगे...
ये पूरी कहावत मुझे और सब को पता है ............... बस इतना ही कहूँगा आपके बौधिक दीवालियेपन पर :
" दुनिया ये मुहब्बत को मुहब्बत नहीं देती ईमान बड़ी चीज़ है कीमत नहीं देती, देने को मैं भी तुम्हे दे सकता हूँ गाली मेरी तहजीब मुझे इसकी इजाजत नहीं देती |"
और हाँ जिस तरह छुप रहे हैं आप, पता तो हमें भी है कि आप कौन हैं ...... और ये भी स्पष्ट है कि छुपने वाला न तो हाथी हो सकता और ना ही हाथी का समर्थन करने वाला .. अगर बेबाक प्रतिक्रिया नहीं दे सकते तो चुप बैठो
इस कविता को पढने के बाद, क्षमा कीजियेगा ..................! मैंने इसे कविता कह दिया | इसे पढने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दयुग्म ने हिंदी पाठकों ही नही अपितु एक आम पाठक को इस तरह के "न जाने क्या" पढ़ा कर उस पर अत्याचार करने का बीडा उठा लिया है |
मेरा आपसे दुबारा से सविनय अनुरोध है इस तरह के अत्याचार बंद करें
और Mr. Anonymous अँधेरे में बुरका पहन के निकलने वालों पे इतना ही कहना चाहूँगा कि जो अपना नाम नहीं बता सकते पहचान नहीं बता सकते उन्हें यह भी नहीं बताना चाहिए कि कविता क्या है और क्या नहीं और रही बात "हाथी और ........." की तो इनके अलावा जंगल में शेर भी होते हैं .....
कुछ लोग हिन्दयुग्म के सार्थक कार्यों में रोड़ा अटकाने एवं अपनी भड़ास धींगा मस्ती से निकालने में बहादुरी का बुर्का औढ़ने के प्र्यास में हैं। युग्म द्वारा पिछले माह के रिज्लट के बाद से यह सिल्सिला कुछ ज्यादा ही संक्रमित हो चला है। युग्म के परिणाम को जिस पारदर्शिता से प्रदशित किया गया नियंत्रकों द्वारा उसे ये लोग नदरअंदाज कर रहे हैं [ मैं नियन्त्र्को की टीम में नहीं हूं] जिस मासूमियत से नियंत्र्कों ने केवल एक जज को अधिकार देकर [मैं इसे गलत नही मानता]और सरेअबाजार कर अपनी निष्पक्षता का उदाहरण दिया उसे भी ये लोग नहीं देख पारहे केवल युग्म को नुकसान पहुंचाना इन की मनोवृति लग रही है नियन्त्र्को से जब मैने इस विषय पर बात की तो उन्होने इसे और बेहतर बनाने की बात न केवल मानी ,अपितुएक नियन्त्र्क ने [ शैलेष जी ] ने इसे युग्म पर पोस्ट भी किया। अब अदभुत-उसने इमेल कर अपनी गज़ल जो पिछली प्रतियोगिता में दसवें नं पर आयी थी मुझसे युग्म पर टिपण्णी का अनुरोध किया।तब मैने युग्म पर टिपण्णी न कर ए मेल से हे गज़ल के केवल एक शे‘र की कमिय़ों पर टिपण्णी उन्हे भेज दी.वह शायद वे पचा नहीं पाये और उसकी भड़ास यहां निकाल रहे हैं,फ़्र भी मैने उनकी टिपण्णी का जवाब उन्हे मेल पर हीभेजा न कि युग्म पर बहस शुरू की। मेरा मानना है कि हमें युग्म पर किसी रचना पर क्रियात्मक केवल एक टिपण्णी ही पोस्ट करनी चाहिये और बहस हेतु और स्थान [ ब्लॉग ] हैं वहां जाना चाहिये। मैं लगभग ४० साल से कविता,कहानी उपन्यास लिख रहा हूं ,फ़िर भी मैने युग्म पर आने के लिये बाईपास नहीं अपनाया और कवितायें प्रतियोगिता हेतु भेजीं,पहले परिणाम में मेरी कविता छटे स्थान पर थी,दूसरी बार प्रथम पर,हालांकि मेरे अपने हिस्सब से मेरी पहली कविता बेहतर थी,लेकिन जज का निर्णय मेरे लिये स्वीकार्य था। मैने इस कविता को पोस्ट करने के बाद इसी विष्य की कवितायें रोज एक, पोस्ट करने हेतु नियन्त्रकों को मेल किया,जवाब नहीं आया तो और पोस्ट नहीं की,क्योंकि मैं इसे नियन्त्रकों का वैसा ही अधिकार मानता हूं ,जैसा एक संपादक को होता है। अंत में मुद्दई लाख बुरा चाहे क्या होता है वही होता है..... श्याम सखा श्याम
मैने न तो कविता भेजकर या कविता के छटे स्थान पर आने पर कभी छोटा महसूस नहीं किया,वह भी तब जबकि विभिन्न सहित्य अकादमियो द्वारा मेरी तब तक ८ पुस्तकों को पुरस्कृत किया जा चुका था २-मैं पिछली प्रतियोगित्त कावह एकाकी जज भी नहीं हूं। श्याम सखा
अरूण मित्तल जी.. क्षणिकायें नहीं पढ़ी आपने कभी..?? शायद आपको जरुरत है...!!! और अगर आपको केवल गज़ल या छंद-युक्त कविता ही आती है तो इसका मतलब ये नहीं कि बाकि का अस्तित्व ही नहीं है!!! एक बात और.. जो कविता आपको अच्छी लगे उस पर टिप्पणी करें। केवल नकारात्मक टिप्पणी करना ही आपका काम नहीं है। और ऐसा भी नहीं कि आपको पिछले १० दिन में एक भी कविता पसम्द नहीं आई है। मेरी आपसे गुजारिश है कि कुछ अच्छा भी देखा कीजिये।
शुभ संध्या ................ आपके और श्याम जी के लिए
सुरेश मक्कड़ साहिल जी का एक शेर याद आ रहा है :
"क्या हुआ जो उसने मुझे बेवफा कहा, यूँ नाम तो आया मेरा उसकी जुबान पर"
ऐसा नहीं है कि मैंने केवल नकारात्मक्त टिप्पणियां ही कि हैं मैंने बहुत सकारात्मक भी लिखा है जो मुझे अच्छा लगा ... जरा "शिव आराधना" और "शांति दूत" कविता पर मेरी प्रतिक्रिया देख लीजिये
चलिए आपने ये कहा कि मुझे छंदमय कविता आती है .......... और गजल भी ... ये तो मेरे लिए बहुत सकारात्मक बात है .. आपकी सलाह मानकर मैंने आपके कमेन्ट में भी सब अच्छा अच्छा अपने लिए छाँट लिया
मेरी भी तीसरी टिप्पणी के लिए मुझे मुआफ करें ,,, मुझे किसी नंबर पर आने ना आने से कोई मतलब नही है..... हाँ, ४५ वे स्थान पर भी ना छपने का ज़रा अफ़सोस है...पर मुझे "यूनी-पाठक" तो बनाया गया था (हालांकि अब उसकी भी डेट एक्सपायर हो गयी है....::)).......) मुझे यूनी कवि या यूनी कविता का कोई ज्ञान हो न हो........यूनी पाठक का जरूर है.....ये भी पता है के ऐसा पाठक आसानी से हजम नही होता..... अनाम टिपण्णी में हलाँकि वो सब कुछ है जिसे अभद्र कहा जा सकता है....पर अनाम जी का सम्मान करते हुए मैं नियंत्रक महोदय से ये अपील हगिज नहीं करूंगा...के इसे डिलीट किया जाए.....इसे बाइज्जत यही रखा जाए.....यही तो बताएगी के किन शब्दों के चयन के लिए ..अच्छे भले आदमी को >>..एनी-माउस ...बन्ना पड़ता है.....जैसे सब को इस अधूरी लिखी कहावत का पता है.....ऐसे ही मुझको अनाम का पता है...और ये मेरे लिए कोई नयी बात नही है... अनाम जी,जब आप श्याम जी की रचना " सहन करना सीखना " पढ़ रहे हो तो काहे सहन नही करते....अमा यार ये शब्द किसी और पोस्ट के लिए बचा लेते ...ऐसी "असहनशीलता...??" नियंत्रक जी, आशा करता हूँ... की आगे से मुझे यूनी पाठक नही बनाया जाएगा.... ज्यादा लाग लपेट वाला बन्दा नहीं हूँ.....सो इस सम्मान के लायक भी नही हूँ.....मूड होगा तो टिप्पणी जरूर देता रहूँगा
adbhut ji aap theek nahi kar rah hain ,apni baat khud kahiye ,ye manu ji ke kandhe par rakhkar aap bandook chala rahe hain theek nahi hai ,koshish kaamyab nahi hogi ,ye mera vada hai aapse .itne lakhmijaaj shaayar se to bhagwaan hi bachaaye .
kudarat ko bhi nahi pasand sakhti bayaan me isiliye usne bakshi nahi haddi jubaan me
कम से कम अपनी राय लिखने के लिए तो मुझे किसी के कंधे पर भी बन्दूक रखने की जरूरत नहीं है .................
और हाँ ये जो बेबाक टिप्पणियों का तल्ख़ दौर शुरू हुआ है इसकी शुरुआत मैंने ही की थी अपने दम पर, (इस माह की प्रथम कविता पर) मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या अपनी राय देना गलत बात है ......... ???
और हाँ मैं तपन जी और आप की बात से भी सहमत हूँ की मैं कुछ ज्यादा ही बेबाक हो गया (नकारात्मक बिलकुल नहीं) ......... मैंने सकारात्मक टिप्पणियां भी लिखी हैं.... और ये भी निश्चित है कि मेरा विषय कभी नहीं बदलेगा ....... जब तक हिन्दयुग्म मुझे अनुमति देता रहेगा मैं अपने मन के विचार जरूर व्यक्त करता रहूँगा तपन जी ने कह दिया की मुझे क्षणिकाएं पढ़नी चाहियें ........... अब उन्हें क्या पता की मैं संग्रह के संग्रह पढ़ चुका हूँ .............. इस तलाश में की उनमे कविता के तत्व मिल जाएँ .......... और तत्व मिले भी हैं ..............
श्याम जी ने बिलकुल गलत कहा है उन्होंने व्यक्तिगत मेल से मुझे अपने शेर की कोई गलती नहीं बताई ............. ये बिलकुल झूठ है ......................और हाँ मुझे बहुत ख़ुशी होगी की मेरी गलती हिन्दयुग्म पर बताई जाए .............. "गलत तो गलत है, मैं तो यहाँ सीखने के लिए ही जुडा था" पर लगता है सबको अपनी तारीफ है pasand है
मैं बिलकुल स्पस्ट कर देना चाहता हूँ की मुझे किसी के कन्धे या समर्थन की जरूरत नहीं . .. मैं अपनी राय बेफिक्री और बिना किसी समर्थन के दे सकता हूँ ............... आपको मेरी अन्य कविताओं एवं लेखों पर लिखी सकारात्मक टिप्पणियां पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देती ...................
अरे इस कन्धे वाली बात पर तो एक पञ्जाबी शेर याद आ रहा था चलिए हिंदी अनुवाद लिख देता हूँ :
"इतना सच मत बोल कि अकेला हो जाये चार लोग छोड़ दे कन्धा देने के लिए"
हिन्दयुग्म को सादर नमन आदरणीय संचालक जी से निवेदन है कि यदि उन्हें लगता है कि मैं हिन्दयुग्म के प्रयास में रोड़ा अटका रहा हूँ तो मुझे एक मेल से सूचित कर दें .......
adbhut ji , aapke sher ke jawaab me arj hai . ek din hum bhi ye beadbi dikhaayenge yaaron , tum paidal hum kaandhe pe jaayenge yaaron . umeed karti hoon aapko pasabd aa hi gaya hoga .
aapki pankti puri kiye deti hoon kya rahim hari(hindyugm) ko ghato jo bhragu (adbhutji)maari laat . gile shikve khatam kijiye ,aur dosti ka haath thaamiye .yahi hari ki (hindyugm parivaar)ki ichchaa hai .
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
21 कविताप्रेमियों का कहना है :
सहन करना तो धरती ही सिखाती है..
हो सकती है
तुम्हारी पत्नी भी ..
इसके बारे में मैं अभी कुछ नहीं कह सकता.. :)
अच्छी लिखी है..बधाई ...श्याम जी को ..
पर पत्नी भी नहीं..........
शायद पत्नी,,,,ही,,
श्याम जी,
बहुत खुशी हुई कि आपने ये माना कि नारी में सबसे अधिक सहनशीलता होती है..नारी का रूप कोई भी हो .
शुभकामनाओं के साथ
श्याम जी ,
क्या बात है ?बीबी (पत्नी )को मस्का ???चलिए देर आयद दुरुस्त आयद |
ये हिंद युग्म पर कविताओं के नाम पर कोई मजाक चल रहा है क्या ............
मनु जी....
आप तो हमेशा कविता के तत्व ढूँढ़ते हुए नजर आते थे लगता है आप भी मेरी तरह थक चुके हैं ....
श्याम जी
क्षमा करें आपकी गजल की विद्वत्ता अच्छी है ..... कम से कम कुछ मंथन करने योग्य तो मिलता है ....
अरुण जी,
दोबारा बुला ही लिया न मुझे....
मैंने इस रचना में एक बात मुख्या रूप से कहनी थी...शायद पत्नी भी ....नहीं...
......बल्कि...
"""""""""""""""""" शायद पत्नी ही..""""""""""ये कहे बिना मन नही मान रहा था...
और कैसे कहता.........?? हमारी कविता तो हमारे घर में ही सही है...जब ऐसी लिखने लगेंगे तो पोस्ट करेंगे...
एक कहावत है .......हाथी चलते रहते हैं।
एनी माउस जी ,
ये पूरी कहावत मुझे और सब को पता है ...............
बस इतना ही कहूँगा आपके बौधिक दीवालियेपन पर :
" दुनिया ये मुहब्बत को मुहब्बत नहीं देती
ईमान बड़ी चीज़ है कीमत नहीं देती,
देने को मैं भी तुम्हे दे सकता हूँ गाली
मेरी तहजीब मुझे इसकी इजाजत नहीं देती |"
और हाँ जिस तरह छुप रहे हैं आप, पता तो हमें भी है कि आप कौन हैं ...... और ये भी स्पष्ट है कि छुपने वाला न तो हाथी हो सकता और ना ही हाथी का समर्थन करने वाला .. अगर बेबाक प्रतिक्रिया नहीं दे सकते तो चुप बैठो
हिन्दयुग्म के संचालक महोदय जी,
इस कविता को पढने के बाद, क्षमा कीजियेगा ..................! मैंने इसे कविता कह दिया | इसे पढने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दयुग्म ने हिंदी पाठकों ही नही अपितु एक आम पाठक को इस तरह के "न जाने क्या" पढ़ा कर उस पर अत्याचार करने का बीडा उठा लिया है |
मेरा आपसे दुबारा से सविनय अनुरोध है इस तरह के अत्याचार बंद करें
और Mr. Anonymous अँधेरे में बुरका पहन के निकलने वालों पे इतना ही कहना चाहूँगा कि जो अपना नाम नहीं बता सकते पहचान नहीं बता सकते उन्हें यह भी नहीं बताना चाहिए कि कविता क्या है और क्या नहीं और रही बात "हाथी और ........." की तो इनके अलावा जंगल में शेर भी होते हैं .....
कुछ लोग हिन्दयुग्म के सार्थक कार्यों में रोड़ा अटकाने एवं अपनी भड़ास धींगा मस्ती से निकालने में बहादुरी का बुर्का औढ़ने के प्र्यास में हैं। युग्म द्वारा पिछले माह के रिज्लट के बाद से यह सिल्सिला कुछ ज्यादा ही संक्रमित हो चला है।
युग्म के परिणाम को जिस पारदर्शिता से प्रदशित किया गया नियंत्रकों द्वारा उसे ये लोग नदरअंदाज कर रहे हैं [ मैं नियन्त्र्को की टीम में नहीं हूं]
जिस मासूमियत से नियंत्र्कों ने केवल एक जज को अधिकार देकर [मैं इसे गलत नही मानता]और सरेअबाजार कर अपनी निष्पक्षता का उदाहरण दिया उसे भी ये लोग नहीं देख पारहे केवल युग्म को नुकसान पहुंचाना इन की मनोवृति लग रही है
नियन्त्र्को से जब मैने इस विषय पर बात की तो उन्होने इसे और बेहतर बनाने की बात न केवल मानी ,अपितुएक नियन्त्र्क ने [ शैलेष जी ] ने इसे युग्म पर पोस्ट भी किया।
अब अदभुत-उसने इमेल कर अपनी गज़ल जो पिछली प्रतियोगिता में दसवें नं पर आयी थी मुझसे युग्म पर टिपण्णी का अनुरोध किया।तब मैने युग्म पर टिपण्णी न कर ए मेल से हे गज़ल के केवल एक शे‘र की कमिय़ों पर टिपण्णी उन्हे भेज दी.वह शायद वे पचा नहीं पाये और उसकी भड़ास यहां निकाल रहे हैं,फ़्र भी मैने उनकी टिपण्णी का जवाब उन्हे मेल पर हीभेजा न कि युग्म पर बहस शुरू की।
मेरा मानना है कि हमें युग्म पर किसी रचना पर
क्रियात्मक केवल एक टिपण्णी ही पोस्ट करनी चाहिये और बहस हेतु और स्थान [ ब्लॉग ] हैं वहां जाना चाहिये।
मैं लगभग ४० साल से कविता,कहानी उपन्यास लिख रहा हूं ,फ़िर भी मैने युग्म पर आने के लिये बाईपास नहीं अपनाया और कवितायें प्रतियोगिता हेतु भेजीं,पहले परिणाम में मेरी कविता छटे स्थान पर थी,दूसरी बार प्रथम पर,हालांकि मेरे अपने हिस्सब से मेरी पहली कविता बेहतर थी,लेकिन जज का निर्णय मेरे लिये स्वीकार्य था।
मैने इस कविता को पोस्ट करने के बाद इसी विष्य की कवितायें रोज एक, पोस्ट करने हेतु नियन्त्रकों को मेल किया,जवाब नहीं आया तो और पोस्ट नहीं की,क्योंकि मैं इसे नियन्त्रकों का वैसा ही अधिकार मानता हूं ,जैसा एक संपादक को होता है।
अंत में मुद्दई लाख बुरा चाहे क्या होता है
वही होता है.....
श्याम सखा श्याम
दोबारा टिपण्णी हेतु क्षमा सहित
मैने न तो कविता भेजकर या कविता के छटे स्थान पर आने पर कभी छोटा महसूस नहीं किया,वह भी तब जबकि विभिन्न सहित्य अकादमियो द्वारा मेरी तब तक ८ पुस्तकों को पुरस्कृत किया जा चुका था
२-मैं पिछली प्रतियोगित्त कावह एकाकी जज भी नहीं हूं।
श्याम सखा
अरूण मित्तल जी..
क्षणिकायें नहीं पढ़ी आपने कभी..?? शायद आपको जरुरत है...!!!
और अगर आपको केवल गज़ल या छंद-युक्त कविता ही आती है तो इसका मतलब ये नहीं कि बाकि का अस्तित्व ही नहीं है!!!
एक बात और.. जो कविता आपको अच्छी लगे उस पर टिप्पणी करें। केवल नकारात्मक टिप्पणी करना ही आपका काम नहीं है। और ऐसा भी नहीं कि आपको पिछले १० दिन में एक भी कविता पसम्द नहीं आई है। मेरी आपसे गुजारिश है कि कुछ अच्छा भी देखा कीजिये।
तपन जी,
शुभ संध्या ................
आपके और श्याम जी के लिए
सुरेश मक्कड़ साहिल जी का एक शेर याद आ रहा है :
"क्या हुआ जो उसने मुझे बेवफा कहा,
यूँ नाम तो आया मेरा उसकी जुबान पर"
ऐसा नहीं है कि मैंने केवल नकारात्मक्त टिप्पणियां ही कि हैं मैंने बहुत सकारात्मक भी लिखा है जो मुझे अच्छा लगा ... जरा "शिव आराधना" और "शांति दूत" कविता पर मेरी प्रतिक्रिया देख लीजिये
चलिए आपने ये कहा कि मुझे छंदमय कविता आती है .......... और गजल भी ... ये तो मेरे लिए बहुत सकारात्मक बात है .. आपकी सलाह मानकर मैंने आपके कमेन्ट में भी सब अच्छा अच्छा अपने लिए छाँट लिया
आपका स्नेह मिला धन्यवाद,
मेरी भी तीसरी टिप्पणी के लिए मुझे मुआफ करें ,,,
मुझे किसी नंबर पर आने ना आने से कोई मतलब नही है..... हाँ, ४५ वे स्थान पर भी ना छपने का ज़रा अफ़सोस है...पर मुझे "यूनी-पाठक" तो बनाया गया था (हालांकि अब उसकी भी डेट एक्सपायर हो गयी है....::)).......)
मुझे यूनी कवि या यूनी कविता का कोई ज्ञान हो न हो........यूनी पाठक का जरूर है.....ये भी पता है के ऐसा पाठक आसानी से हजम नही होता..... अनाम टिपण्णी में हलाँकि वो सब कुछ है जिसे अभद्र कहा जा सकता है....पर अनाम जी का सम्मान करते हुए मैं नियंत्रक महोदय से ये अपील हगिज नहीं करूंगा...के इसे डिलीट किया जाए.....इसे बाइज्जत यही रखा जाए.....यही तो बताएगी के किन शब्दों के चयन के लिए ..अच्छे भले आदमी को >>..एनी-माउस ...बन्ना पड़ता है.....जैसे सब को इस अधूरी लिखी कहावत का पता है.....ऐसे ही मुझको अनाम का पता है...और ये मेरे लिए कोई नयी बात नही है...
अनाम जी,जब आप श्याम जी की रचना " सहन करना सीखना " पढ़ रहे हो तो काहे सहन नही करते....अमा यार ये शब्द किसी और पोस्ट के लिए बचा लेते ...ऐसी "असहनशीलता...??"
नियंत्रक जी,
आशा करता हूँ... की आगे से मुझे यूनी पाठक नही बनाया जाएगा.... ज्यादा लाग लपेट वाला बन्दा नहीं हूँ.....सो इस सम्मान के लायक भी नही हूँ.....मूड होगा तो टिप्पणी जरूर देता रहूँगा
कविता-अकविता के मुद्दे पर बैठक से अच्छा स्थान और कुछ नहीं हो सकता है।
baithak kyaa,,,,???
jahaan chaar yar mil taae wahib ..
itni utha patak theek nahi hai ,
khud jiyo auro ko bhi jeene do ,
tumko hindyugm ki shaanti ka vaasta .
shyam ji ,
jaaved ji ka ek sher arj hai .
kin lafjon me itni kadwi ,itni kasaeli baat likhoon .
sher ki tahjeeb nibaahoon ya apne
haalat likhoon .
adbhut ji
aap theek nahi kar rah hain ,apni baat khud kahiye ,ye manu ji ke kandhe par rakhkar aap
bandook chala rahe hain theek nahi hai ,koshish kaamyab nahi hogi ,ye mera vada hai aapse .itne lakhmijaaj shaayar se to bhagwaan hi bachaaye .
kudarat ko bhi nahi pasand sakhti bayaan me
isiliye usne bakshi nahi haddi jubaan me
नीलम जी,
कम से कम अपनी राय लिखने के लिए तो मुझे किसी के कंधे पर भी बन्दूक रखने की जरूरत नहीं है .................
और हाँ ये जो बेबाक टिप्पणियों का तल्ख़ दौर शुरू हुआ है इसकी शुरुआत मैंने ही की थी अपने दम पर, (इस माह की प्रथम कविता पर) मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या अपनी राय देना गलत बात है ......... ???
और हाँ मैं तपन जी और आप की बात से भी सहमत हूँ की मैं कुछ ज्यादा ही बेबाक हो गया (नकारात्मक बिलकुल नहीं) ......... मैंने सकारात्मक टिप्पणियां भी लिखी हैं.... और ये भी निश्चित है कि मेरा विषय कभी नहीं बदलेगा ....... जब तक हिन्दयुग्म मुझे अनुमति देता रहेगा मैं अपने मन के विचार जरूर व्यक्त करता रहूँगा तपन जी ने कह दिया की मुझे क्षणिकाएं पढ़नी चाहियें ........... अब उन्हें क्या पता की मैं संग्रह के संग्रह पढ़ चुका हूँ .............. इस तलाश में की उनमे कविता के तत्व मिल जाएँ .......... और तत्व मिले भी हैं ..............
श्याम जी ने बिलकुल गलत कहा है उन्होंने व्यक्तिगत मेल से मुझे अपने शेर की कोई गलती नहीं बताई ............. ये बिलकुल झूठ है ......................और हाँ मुझे बहुत ख़ुशी होगी की मेरी गलती हिन्दयुग्म पर बताई जाए .............. "गलत तो गलत है, मैं तो यहाँ सीखने के लिए ही जुडा था" पर लगता है सबको अपनी तारीफ है pasand है
मैं बिलकुल स्पस्ट कर देना चाहता हूँ की मुझे किसी के कन्धे या समर्थन की जरूरत नहीं . .. मैं अपनी राय बेफिक्री और बिना किसी समर्थन के दे सकता हूँ ............... आपको मेरी अन्य कविताओं एवं लेखों पर लिखी सकारात्मक टिप्पणियां पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देती ...................
अरे इस कन्धे वाली बात पर तो एक पञ्जाबी शेर याद आ रहा था चलिए हिंदी अनुवाद लिख देता हूँ :
"इतना सच मत बोल कि अकेला हो जाये
चार लोग छोड़ दे कन्धा देने के लिए"
हिन्दयुग्म को सादर नमन आदरणीय संचालक जी से निवेदन है कि यदि उन्हें लगता है कि मैं हिन्दयुग्म के प्रयास में रोड़ा अटका रहा हूँ तो मुझे एक मेल से सूचित कर दें .......
सभी को सादर नमन
"क्षमा बड़ेन को चाहिए छोटन को उत्पात"
अरुण 'अद्भुत"
adbhut ji ,
aapke sher ke jawaab me arj hai .
ek din hum bhi ye beadbi dikhaayenge yaaron ,
tum paidal hum kaandhe pe jaayenge yaaron .
umeed karti hoon aapko pasabd aa hi gaya hoga .
aapki pankti puri kiye deti hoon
kya rahim hari(hindyugm) ko ghato jo bhragu (adbhutji)maari laat .
gile shikve khatam kijiye ,aur dosti ka haath thaamiye .yahi hari ki (hindyugm parivaar)ki ichchaa hai .
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)