क़र्ज क्यों बाकी रहे
फ़र्ज़ क्यों रहे अधूरा
रास्ता आने के लिए है...
तो जाने के लिए भी
सफर बढ़ने का नाम है...
...तो लौटना भी सफर है
कमबख्त ज़िंदगी हर बार
ऐसे नियम क्यों बनाती है
कि सफर मंज़िल-दर-मंज़िल
सिर्फ बढ़ने का नाम है
कि रास्ता कदम-दर-कदम
चलने का नाम है
रास्ता तो तब है
जब चाहा लौटना भी हो
पता नहीं
बहुत कुछ पाने की चाह में
आदमी सब कुछ छोड़
क्यों बढ़ता जाता है
पता नहीं
आदमी किस कारण
ख़ुद का ख़ुदा बनना चाहता है......
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
9 कविताप्रेमियों का कहना है :
सफर केवल ... बढ़ने का नाम नहीं ..लौटना भी तो सफर है.......बहुत सही नज़रिया देखने का..बधाई हो.....
शायद किसी अति आशावादी के गले ना उतरे ....पर एक पहलू को सौ तरह उलट पलट कर देखना मुझे भी पसंद है...........
अब आदतन आपसे क्षमा मांग कर ...अआपकी पोस्ट पर ...फ़िर से अपनी बात कहना चाहूंगा...और आशा है...के आप इजाज़त देंगे....और "अनाम महेश जी' भी दुबारा अनाम होकर मुझे नही रोकेंगे..........पर अछअ है....कम से कम एक नम तो है....पुकारने के लिए...
मेरी साथ समस्या ये है....के अक्सर ही मुझे अनाम का अहसास हो जता है...मैं अक्सर ही सही होता हूँ...पर हमेशा नही....
सिर्फ़ इशारा दे सकता हूँ....नाम किसी हाल में नही ले सकता..........
हमेशा..जवाब में..एनी माउस नही लिखता न....?? ज्ञान ...उम्र...रुतबे..के लिहाज से सबको अलग अलग संबोधन देता हूँ....एक बार निक्कमा भी लिखा था....मुझे मालूम था के ये बन्दा मेरे लिए एक दम नया है....पर युग्म की और मेरी खुशकिस्मती के जिसे ऐसे लिखा था वही ...
दिक्कत ये होती है...के उस अनाम तक तो मेरी बात पहुँच ही जाती है......और उसको भी आमतौर पर केवल संबोधन से ही पता लग जाता है.........
पर बाकी जो लोग ग़लत फहमी का शिकार हो जायें तो...????
मैं अपना विज्ञापन नहीं कर रहा....मगर आप चाहें तो मेरे ब्लॉग पर एक नालायक सी नज़्म पर श्री गौतम राजरिशी की टिपण्णी पढ़ सकते हैं............
फ़िर हमें बताये के हम....
हिंद युग्म पढ़ना छोड़ दें.......?
टिपण्णी देना छोड़ दें...........?
या ग़लत देख कर टोकना छोड़ दें.........???....जो के औरों के लिय जितना आसान है....मेरे लिए उतना ही ............. मुश्किल........
चूहा देख कर पकड़ने का दिल तो करता ही है...........
aur haan,
mujhe yahi manch par bataaye...mail se...phone se...ya blog par tippni deker nahi........
waise ye blog par 'Tippani""hoti badi sukhdaaayee hai...par mujhe yahi bataayeinge to achchhaa rahegaa........apne blog se zyaadaa dhyaan mujhe is manch ka hai...
मैंने आपकी पुरानी भी बहुत कवितायेँ पढ़ी हैं ... लेकिन ये कविता बहुत कमज़ोर लगी मुझे !!
सादर
दिव्य प्रकाश
सफ़र के बाद सफ़र,फ़िर सफ़र,सफ़र ही सफ़र
सुन्दर
श्याम सखा
बहुत कुछ पाने की चाह में
आदमी सब कुछ छोड़
क्यों बढ़ता जाता है
पता नहीं
आदमी किस कारण
ख़ुद का ख़ुदा बनना चाहता है......
behtareen ,abhishek jikya panktiyaan hai ,sambhavtah har koi hi sahmat hoga
सफ़र लौटना इसलिये नहीं है कि उसमें छुपी होती है शाश्वतता गति की. गति चाहे जिस भी बिन्दु से शुरु हो निरन्तर अग्रगामी हुआ करती है. इसलिये मंजिल का पता तो निरन्तर गतिमान हो कर निश्चित दिशा में बढ़्ने से ही मिला करता है.
कहीं राह भटक कर मनुष्य आगे चला चले उसी राह पर, मंजिल छूट भी जाय तो फ़िर फ़िर लौटना अग्रगामिता कहलाती है.
कविता पढ़ते हुए बहुत प्रभावित नहीं हुआ.
आखिरी की पंक्तियाँ अच्छी हैं..
पता नहीं
आदमी किस कारण
ख़ुद का ख़ुदा बनना चाहता है......
मनु जी,
अनाम टिप्पणियाँ नहीं रोकी जा सकतीं। हम 'अनाम' का विकल्प तो बंद कर सकते हैं लेकिन किसी को गूगल एकाउंट बनाना नहीं रोक सकते। हम एक 'आईपी' ब्लॉक करें या 'गूगल खाता' बैन करें, तो कोई दूसरा-तीसरा बना सकता है। एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर तक पहुँच सकता है।
मेरी आपसे गुजारिश है कि अनाम टिप्पणियों में से जो अच्छा हो, उसपर ध्यान दें, जो अच्छा नहीं है, उसपर न ध्यान दें। और सबसे महत्वपूर्ण बात कि आप संबंधित टिप्पणियाँ नियंत्रक को या आवश्यक पोस्ट पर किया करें। इस तरह से पाठक पोस्ट की जगह जिरह पर ज्यादा गौर फरमाते हैं।
I really liked the lines :
"बहुत कुछ पाने की चाह में
आदमी सब कुछ छोड़
क्यों बढ़ता जाता है"
mera manana hai : poorane rishte nate, poorani jagah, hamare principles.....hum bhool kar really khush nahin rah sakte hain.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)