उस रात लिखी मैंने कविता
दर्द की कलम को
लहू में डूबा के
पर जो लिखा
वो टेढी-मेढ़ी रेखाओं के आलावा कुछ नहीं था
गम की पत्तियाँ जब झर-झर गिरती रहीं
लहू के शोते से फूटते रहे
चीख की रेखा हद पार करती रही
शहीदों को माएं
जब लाल का मुख चूमती रहीं
उन्हीं क्षणों से
उठाये मैंने
कुछ काँपते, कुछ क्रोध से भरे शब्द
लिखनी चाही एक कविता
पीड़ा के फफोलों
झुलसे विश्वास
चुभती कांच की किरचों
के सिवा कुछ न दिखा
कविता एक चीख बन कर रह गई
धुँए में जलते
कवि की कलम जो थामी
कुछ अस्पष्ठ से शब्द
असमंजस की छटपटाहट
बचने की गुहार
अन्तिम चन्द बोल
जो बिखराए कागज पे
तो रो पड़ी कविता
मुट्ठी भर आतंकी (आतंकवादी )
घुस घर में आतंक मचाते रहे
कायर खद्दर धारी
चोले बदल मुखौटे लगा
लाशों की मोहरों से
राजनीति की चौपड़ खेलते रहे
दोषारोपण का तांडव चलता रहा
इनके कहे को जो चिपकाया
कविता विभत्स लगने लगी
ख़ुद के बाहुबल पे विश्वाश करें
घर में घुस के मारा है
अब तो प्रतिकार करें
जन-जन की पीडा
आंसू नहीं प्रतिशोध बन के बहे
चेतना की आंधी, व्यथा की ज्वाला
समय की गर्द से बची रहे
गुबार देश के हर कोने से उठे
क्षेत्र से पहले देश दिखे
ऐसी क्रांति किरण
तोरण द्वार सजाये
कुछ तारे उतरे ज़मी पे
और कविता उम्मीद से भर जाए।
यूनिकवयित्री- रचना श्रीवास्तव
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
कायर खद्दर धारी
चोले बदल मुखौटे लगा
लाशों की मोहरों से
राजनीति की चौपड़ खेलते रहे
दोषारोपण का तांडव चलता रहा
इनके कहे को जो चिपकाया
कविता विभत्स लगने लगी
बहुत खूब रचना जी
|| तड़प उठी थी ग़ज़ल वक्त-ऐ-अज़ल की मानिंद,
चुन के लाशों से जो कुछ हर्फ़ लगाए हमने ||
..................................................
............शुक्रिया....!!
वाह ! क्या खूब लिखा है।
रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता |पढ़ के दिल दहल जाता है
लाजवाब
आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
बहुत सही है आपके विचार |
रचना के लिए बधाई |
अवनीश तिवारी
कविता में रोष है सच्चाई है...
अच्छा लिखा है...
reallyyyyyy,hilakar rakh diya rachna ji....
ALOK SINGH "SAHIL"
जन-जन की पीडा
आंसू नहीं प्रतिशोध बन के बहे
चेतना की आंधी, व्यथा की ज्वाला
bahut sunder rachana
आप के सुंदर शब्दों का धन्यवाद .आज जो कुछ भी लिख पाती हूँ शायद आप सभी के स्नेह की वजह से ही है .आशा है ये स्नेह गागर कभी खली न होगी
धन्यवाद
रचना
विनय जी, ब्लॉग पर शब्द खींच कर ले जाते हैं .ना के संवेदनशील कविता पर संवेदनशील टिप्पन्नियों के बीच ये जबरदस्ती के विज्ञापन | पहले आपकी मनोदशा समझ ली जाए तो फ़िर आपके ज्ञान में हम लोग भी भागीदार बनें | ठीक है ना|
रचना जी ,
अपनी बात को पूरी तरह सम्प्रेषित करती, बहुत ही सशक्त कविता |
विनय के जोशी
आप की कविता ने हिला के रख दिया .जो कवि वाली बात लिखी है न उस ने तो रुला के रख दिया
बहुत सुंदर
बधाई
शिप्रा
वो टेढी-मेढ़ी रेखाओं के आलावा कुछ नहीं था
गम की पत्तियाँ जब झर-झर गिरती रहीं
मुट्ठी भर आतंकी (आतंकवादी )
घुस घर में आतंक मचाते रहे
कायर खद्दर धारी
चोले बदल मुखौटे लगा
लाशों की मोहरों से
राजनीति की चौपड़ खेलते रहे
दोषारोपण का तांडव चलता रहा
इनके कहे को जो चिपकाया
कविता विभत्स लगने लगी
ख़ुद के बाहुबल पे विश्वाश करें
घर में घुस के मारा है
अब तो प्रतिकार करें
जन-जन की पीडा
आंसू नहीं प्रतिशोध बन के बहे
rachana ji vastavik aavaj hai
jan-jan ki vaani hai
bahut sundar
घर में घुस के मारा है
अब तो प्रतिकार करें
जन-जन की पीडा
आंसू नहीं प्रतिशोध बन के बहे
चेतना की आंधी, व्यथा की ज्वाला
समय की गर्द से बची रहे
गुबार देश के हर कोने से उठे
क्षेत्र से पहले देश दिखे
ऐसी क्रांति किरण
तोरण द्वार सजाये
कुछ तारे उतरे ज़मी पे
और कविता उम्मीद से भर जाए।
kavita padh ke man bhar aya.
har woh insaan jisne kisi apne ko khoya hai yeh kavita uski vyataha hai..har us apne ki vyatha hai jiske ishwar ke diye jeevan ko atankiyon ne api kroorta se ant kar diya..Ishwar bhi roya hoga is vibhatsa khel pe. news mein dekha mehsoos kiya aur waqt ki dhool mein sab chip gaya lekin aaj ek baar phir rachna ji aapke dard bhare shabdon ne jaga diya aur man ne kaha ki ab sunne nahin karne ki bari hai....maro ya kuch karo ab har bhartiye yeh jaan chuka hai.
Bahut achche rachna ji.
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