एक जुलाई सन १९५६ को मोदीनगर (जनपद गाजियाबाद) के ग्राम सोंदा में एक साधारण किसान के यहाँ जन्मे डॉ॰ राम गोपाल भारतीय का नाम हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपरिचित नहीं है। भारतीय स्टेट बैंक में कार्यरत डॉ भारतीय की अब तक अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें भाग्य चक्र (कथा संग्रह) रास्ते चुप हैं (काव्य संग्रह) आदमी के हक में (गीत-ग़ज़ल संग्रह) डॉ॰ अम्बेडकर संस्मरण- कुछ यादें तथा कैसे कहूँ (ग़ज़ल संग्रह) प्रमुख हैं। इनकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें बालोपयोगी तथा नवसाक्षरों के लिए भी प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने समता सन्देश पत्रिका, वन्दे मातरम् (देश भक्ति गीत संकलन), डॉ॰ महेश दिवाकरः सृजन के विविध आयाम तथा आखर-आखर गंध (मेरठ का प्रतिनिधि काव्य-संकलन) का सम्पादन भी किया है। आकाशवाणी से इनके द्वारा रचित रूपक, नाटक, कहानियाँ तथा वार्ताएं आदि भी प्रसारित हो चुकी हैं। भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ॰ अम्बेडकर फेलोशिप, दुष्यंत कुमार स्मृति सम्मान, महाराष्ट्र दलित साहित्य अकादमी द्वारा मचंद लेखक पुरूस्कार तथा अनेक साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं से सम्मानित डॉ॰ भारतीय अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, सृजन, ज्योत्सना, राष्ट्रीय हिंदी परिषद् तथा साहित्य लोक जैसी अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हैं तथा इन्होंने चौ॰ चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से मेरठ जनपद के हिंदी काव्य का समीक्षात्मक अध्ययन (वर्तमान कवियों के विशेष सन्दर्भ में) विषय पर पी॰ एच॰डी॰ (हिंदी) की उपाधि प्राप्त की है। दिसम्बर २००८ माह की यूनिकविता के लिए इन्होंने अपनी एक कविता भेजी थी, जो तीसरे स्थान पर आई है।
पुरस्कृत रचना
कांटे अब गमलों में पाले जायेंगे
खुश्बू वाले फूल निकाले जायेंगे
ये गुदड़ी के लाल संभाले रखना तुम
वरना इनको लोग चुरा ले जायेंगे
घर में हो या बाहर बचना मुश्किल है
अब पत्थर हर ओर उछाले जायेंगे
फिर दुनिया में झूठ के सर पे सहरा है
जान से फिर सच कहने वाले जायेंगे
सोच समझकर कहना सीधी बातें भी
उल्टे सीधी अर्थ निकाले जायेंगे
चोरों की बस्ती में एक दूसरे की
करतूतों पर परदे डाले जायेंगे
अब चेहरों के दाग छुपाने की खातिर
आइनों में नुख्स निकाले जायेंगे
सोचो कीचड़ से बचकर कैसे निकलें
कैसे अब किरदार संभाले जायेंगे
अर्थ की खातिर सौ अनर्थ करने वाले
क्या लाकर आए थे क्या ले जायेंगे
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ६, ७॰१
औसत अंक- ६॰७
स्थान- प्रथम
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५, ६॰७ (पिछले चरण का औसत
औसत अंक- ५॰५६६६७
स्थान- तीसरा
पुरस्कार- कवि गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' द्वारा संपादित हाडौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संग्रह 'जन जन नाद' की एक प्रति।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
अद्भुत !!!!
शब्दों के आभाव मैं.....
भावो को उद्देलित कर देने वाली
एक सशक्त रचना
हर पंक्ति अर्थ से लबालब
बधाई !!
सादर
वाह !!!
अब चेहरों के दाग छुपाने की खातिर
आइनों में नुख्स निकाले जायेंगे
बहुत खूब
अवनीश तिवारी
बहुत अच्छी ग़ज़ल ..
बधाई हो ..
सोच समझकर कहना सीधी बातें भी
उल्टे सीधी अर्थ निकाले जायेंगे
वाह रामगोपाल जी! बहुत अच्छी लगी गज़ल
बेबहर की रचना को ग़ज़ल कहना नियंत्रक के काव्य स्तर का प्रमाण है शायद अनाम
वाह
रचना पढकर मजा आ गया
अनाम जी,
आपको कहाँ पर गज़ल लिखा दिखा, कृपया प्रकाश डालिये
वाह
रचना पढकर मजा आ गया
अनाम जी,
आपको कहाँ पर गज़ल लिखा दिखा, कृपया प्रकाश डालिये
बेवजह किसी पर आरोप मत लगाये, और अब गुमनाम लोगो से भी काव्य स्तर का प्रमाण लेना पडेगा?
सुमित भारद्वाज
रचना मे बहर ढूढने के बजाय कवि के भावो को समझिये
वैसे गुरू जी ने कहा था हज़ल लिखना अच्छी कला नही है, पर उन्होने ये भी कहा था जो लोगो के दिल को छू जाए और आसानी से समझ आये वो ही आजकल पसंद किया जाएगा
सुमित जी, ये कहीं और कह रहे है..हाँ दो शेरों में कमी है पर ऐसे छुप कर बोलना ग़लत है ..इन के जैसे एक और हैं.....मुझे ज़रा सा कनफूजन हो जाता है ......मगर मैं अपनी तकनीक में और सुधार ला रहा हूँ....
जी हाँ , मंच पर आने वाले ज्यादातर एनी माउस को पहचानता हूँ मैं...बस कभी कभी धोखा लग जाता है....अभी एक पिछली पोस्ट पर तनहा जी ने भी सवाल उठाया था मगर अच्छे इंसान की तरह ना के छुप कर ...हमें भी अच्छा लगा था और बताने वाले को भी.....
कृपया किसी को निरा पाठक या निरा शाएर ना समझें.......और भी बहुत कुछ है जो आपकी समझ से बाहर की चीज़ है.....
नमस्ते...anonymous ji
अंधकार को निगल उजाले जायेंगे
'मावस में भी दीपक बाले जायेंगे
नाच न आए तो टेढा कह आँगन को
नेता अपने दोष छिपा ले जायेंगे
जो औरों की खातिर हँसकर जहर पिए
उसे पूजने रोज शिवाले जायेंगे
तू मर-मर कर जिन्हें जिंदगी देता है
तुझे जलाने वही उठा ले जायेंगे
आँख मूँद करनी लेखो दहशतगर्दों
कैसे मुँह में कहो निवाले जायेंगे
हजल छापकर नस्ल बिगाडें आदम की
दोजख में वे सभी रिसाले जायेंगे
ताजमहल तामीर तभी हो सकता है
जब तसलों के संग कुदाले जायेंगे
भारतीय रत्नाकर बनकर तो देखो
सागर बनने 'सलिल' पनाले जायेंगे
खार बिछे हों राहों में चाहे जितने
'सलिल' पाँव में लेकर छाले जायेंगे
sanjivsalil.blogspot.com
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dsivanarmada.blogspot.com
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ये गुदड़ी के लाल संभाले रखना तुम
वरना इनको लोग चुरा ले जायेंगे
WAH...Bahut sanjeeda sher...
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