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Wednesday, January 14, 2009

***मीठी यादें खारी मत कर


हम जैसों से यारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर

तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत कर

हुक्म उदूली का खतरा है
फरमां कोई जारी मत कर

आना जाना साथ लगा है
मन अपना तू भारी मत कर

खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर

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25 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

shyam ji agar main bahut galat nahi hun to ye kavita maine aapse suni hai.achha aashu lekhan.........
ALOK SINGH "SAHIL"

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

रचना सुंदर बनी है |
बधाई|
सभी को मकर संक्रांति की शुभेच्छा |

-- अवनीश तिवारी

Vinay का कहना है कि -

अति सुन्दर ग़ज़ल

---मेरा पृष्ठ
आनंद बक्षी

Dilsher Khan का कहना है कि -

"तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर"

क्या खूब लिखा है! वाह! 'श्याम' जी वाह!

Straight Bend का कहना है कि -

खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर

Beautiful lines. I am eager to read your composition in a longer meter/Beher. Please post one next time if you have written any.

God bless
RC

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर

हम जैसों से यारी मत कर
खुद से यह गद्दारी मत कर

बहुत बढ़िया लिखा है श्याम जी

Anonymous का कहना है कि -

एक ही पोस्ट पर दो बार मुफ्त का विज्ञापन | ये फ़िर भी पहले से थोडा जंचा है | फ़िर भी केवल कविता की बात करें तो ज्यादा ठीक है | अच्छी कविता है |

Divya Narmada का कहना है कि -

जीती बाजी हारी मत कर
सौदा नगद उधारी मत कर.

शोले उगल कलम से लेकिन
तू कविता को आरी मत कर.

मंजिल जब तक कदम न चूमे
पैर कभी भी भारी मत कर.

निभा एक से आजीवन ले
रोज नवेली नारी मत कर.

मेहनत की दो ही काफी हैं
हवस छोड़ बटमारी मत कर.

गीता ज्ञान न दे पाए जो
उसको श्याम मुरारी मत कर.

हरदम छिपती नहीं हकीकत
चुप रह 'सलिल' लबारी मत कर.

**********************************

Reetesh Gupta का कहना है कि -

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

क्या बात है !! बहुत सुंदर ....बधाई

Anonymous का कहना है कि -

आचार्य साहिब ,पैरोडी न करें अपनी भड़ास उनिकवि बन कर निकालें -अनाम

Anonymous का कहना है कि -

चुप रह 'सलिल' लबारी मत कर.
vakai चुप रह 'सलिल' लबारी मत कर anam

Anonymous का कहना है कि -

सौदा नगद उधारी मत कर.

शोले उगल कलम से लेकिन

मंजिल जब तक कदम न चूमे
पैर कभी भी भारी मत कर.

निभा एक से आजीवन ले


बटमारी मत कर.



हरदम छिपती नहीं हकीकत
चुप रह 'सलिल' लबारी मत कर.

लबर जी आपकी यह लाइन तो बहर से भी खारिज हैं जैसे कलम छोड़ -दोहे में तो चल जायेगा ग़ज़ल में इसे छोड़ कलम करना होगा
शोले उगल कलम ,शोलेढाल कलम ऐसे होगा
और भावः की तो लीद भरी है आपकी तथाकथित पैरोडी में

Anonymous का कहना है कि -

AANAAMI JI,
SALIL JI KE LIKHE KO KRPYA ESE NAA KAHE, BURI BAT HAI YE, SALIL JI NE TIPNI HI TO DI HAI

neelam का कहना है कि -

shyaam ji jo aapne kaha ,aise laga hum aapse rubru hain ,aur aapke moonh se hi sun rahe hain .
yakeen kare ya n karen pahli line padhte hi samajh gaye the ki aap hi hain ,bahot khoob

neelam का कहना है कि -

salil ji ke liye kahe gaye sabdon ne hume bhi aahat kiya hum salil ji se maafi chaahte hain .

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

Anonymous ji,
आप जो भी हैं.. आपकी टिप्पणी से आपके व्यवहार का तो हमें पता चल ही गया है.. और यदि आपको हिन्दयुग्म पर आना या टिप्पणी करना इतना बुरा लगता है.. (कि अपना नाम तक नहीं बता सकते..) तो आप आते ही क्यों हैं?

सलिल जी के लिये प्रयोग शब्दों के लिये सलिल जी से क्षमा...

Anonymous का कहना है कि -

आचार्य को प्रणाम ,
तपन जी ,मैं इन्ही वाले की बात कर रहा था...
ये जो भी हो वाले नहीं हैं ..इन्हें हम खूब जानते है..आप भी और आप भी
AB JAISE MAIN ANONYMOUS HOKAR BHI ANJAAN NAHEEN HOON

रंजना का कहना है कि -

तेरे अपने भी रहते हैं
इस घर पर बमबारी मत कर

रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत कर


वाह ! क्या बात कही है इन पंक्तियों में आपने........मन मुग्ध हो गया.

सुंदर भाव ,लाजवाब अभिव्यक्ति ,अतिसुन्दर रचना.....

Anonymous का कहना है कि -

खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

सच कहने की ठानी है तो
कविता को दरबारी मत कर

'श्याम’ निभानी है गर यारी
तो फिर दुनियादारी मत कर
कविता की दरबारी और दोस्ती में दुनियादारी इन शब्दों का प्रयोग बहुत सुंदर लगा .
सच कहा ख़ुद आ के लेजायेगा
सादर
रचना

Nikhil का कहना है कि -

आपसे ये रचना सुन चुका हूं...तब ज़्यादा अच्छी लगी थी....

निखिल

Anonymous का कहना है कि -

निखिल भाई, पहली बार सदा अच्छा लगता है पहली बरसात, पहला प्यार -हा -हा हा -श्याम

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

superb sur..

ek ek labj behatareen.......

maza aa gaya...re maza re gaya,...


shailesh

Divya Narmada का कहना है कि -

जाकी रही भावना जैसी...तेरा तुझको अर्पण... बहर से बहार की रचनाओं को पुरस्कृत होते देख न केवल मौन रहने अपितु बधाई देने वाले जागे तो...पैरोडी को कसौटी पर कसनेवाले पुरस्कृत रचनाओं को क्यों नहीं कसते? अस्तु.. मेरा उद्देश्य पूर्ण हो गया. मेरी उपस्थिति से एकाधिकार में खलल होता हो तो मुझे मौन होने में कोई कठिनाई नहीं है. टिप्पणीकारों को पूरे सम्मान और सद्भावनाओं के साथ --सलिल

Anonymous का कहना है कि -

bahoot sach likha h aapne bahoot achha likh ha .
खुद आकर ले जाएगा 'वो’
जाने की तैयारी मत कर

रोक छलकती इन आँखों को
मीठी यादें खारी मत कर
y to bilkul kamal h

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

Sanjeev ji,

maine kavita ke kewal bhav paksh par tippani kee hai.. aur mujhe sun kar aur padh kar bahut achha laga..

aut bahar se bahar ki rachna bhi mukatak ki shreni mai aati hai..shayad

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