घर से बेघर था, क्या करता
दुनिया का डर था, क्या करता
जर्जर कश्ती टूटे चप्पू
चंचल सागर था, क्या करता
सच कहकर भी मैं पछताया
खोया आदर था, क्या करता
चन्दा डूबा, तारे ग़ायब
चलना शब-भर था, क्या करता
ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता
खुद से भी तो छुप न सका वो
चर्चा घर-घर था, क्या करता
आखिर दिल मैं दे ही बैठा
बांका दिलबर था, क्या करता
मेरा जीना मेरा मरना
तुमपर निर्भर था, क्या करता
सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल-भर था, क्या करता
बादल बिजली बरखा पानी
टूटा छप्पर था, क्या करता
सब-कुछ छोड़ चला आया मैं
रहना दूभर था, क्या करता
थककर लुटकर वापिस लौटा
घर आखिर घर था, क्या करता
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27 कविताप्रेमियों का कहना है :
ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता
खुद से भी तो छुप न सका वो
चर्चा घर-घर था, क्या करता
आखिर दिल मैं दे ही बैठा
बांका दिलबर था, क्या करता
मेरा जीना मेरा मरना
तुमपर निर्भर था, क्या करता
वाह वाह बहुत खूब। बहुत अच्छा लिखा है।
सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल-भर था, क्या करता
bahut sundar,bahut khoob ,bahut lajawaab
जर्जर कश्ती टूटे चप्पू
चंचल सागर था, क्या करता
अच्छी गज़ल है...मगर मेरा खयाल है कि एकाध शेर हटा भी दिए जाते तो कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता...
निखिल
थककर लुटकर वापिस लौटा
घर आखिर घर था, क्या करता
वाह! वाह!
JITNI ACHHI UTNI HI JYADA LAMBI GAJAL...............
alok singh "sahil"
गजब की रचना,बेहद उम्दा क्या कहूँ ....क्या भाव है....गजब लिख दिया आपने तो ढेरो साधुवाद आपको बंधुवर.....
अर्श
Simply Beautiful!!
Liked this She'r the most ..
saच कहकर भी मैं पछताया
खोया आदर था, क्या करता
RC
सच कहकर भी मैं पछताया
खोया आदर था, क्या करता
जर्जर कश्ती टूटे चप्पू
चंचल सागर था, क्या करता
बहुत उम्दा...
निखिल से सहमत..बीच के शे’र कम हो सकते थे..
आभार !
अनुग्रहित
श्यामसखा
sach keh kar bhi mai------bahut badiyaa likhaa bdhaai
hats off !!!
bahut badhiya..
गज़ल अच्छी है......भाव सीधे एवं गहरे हैं। गज़ल मुकम्मल कही जा सकती है।
वैसे श्याम जी, मैं चाहूँगा कि आप इस गज़ल की "बहर" भी बता दें,क्योंकि न जाने क्यों एक-दो शेर मुझे "बहर" से बाहर लग रहे हैं और मुझे पक्का यकीन है कि "बहर" के बारे में अल्प-ज्ञान हीं मुझे यह संदेह करने पर बाध्य कर रहा है। मेरे "बहर"-ज्ञान को बढाने और मेरे संदेह का निवारण करने के लिए कृप्या आप इस गज़ल की "बहर" से हमें अवगत करा दें।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
बहर के नाम में ना उलझें ’तन्हा’जी
वजन है फेलुनफेलुन,फेलुन फेलुन [16]
मैं इसे ग़ज़ल का सत्संग कहता हूँ हाँ पूछने पर जिस शे`र के वजन में शंका हो वह भी लिखें तो गणना भी बताई जा सकेगी श्याम सखा
तनहा जी .,
बहर का नाम ना भी हो तो भी पता लग जाता है ....
बल्कि बहर को बगैर नाम के जानने , अंदरूनी तौर पर जान ने में जो ग़ज़ल का लुत्फ़ आता है ...वो जानने के बाद उतना नहीं रहता ....फ़िर तो बस यूँ रह जाता है के हम गज़क नहीं पढ़ रहे बल्कि किसी की पड़ताल कर रहे हैं.....
मुझे तो ठीक ठाक सी ही लगी क्यूनके मैंने भी बहर को नाम से जानने की कोशिश कभी नहीं की..बस पढ़ते पढ़ते जहाँ अटकाव होता है पता लग जाता है..
बाकि आप का शायद कुछ अलग तज़रबा भी हो सकता है.......
वाह! शयाम सखा जी। कुछ शेर तो बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं।
ख़ास अच्छे लगे-
जर्जर कश्ती टूटे चप्पू
चंचल सागर था, क्या करता
सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल-भर था, क्या करता
ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता
क्या खूब ग़ज़ल है ये शेर तो लाजवाब है
ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता
सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल-भर था, क्या करता
सादर
रचना
ठूंठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था, क्या करता
खुद से भी तो छुप न सका वो
चर्चा घर-घर था, क्या करता
मासूमियत और लाचारी मैं लपेट कर
दिल की बात कहना वाह वाह !!!
बहुत खूब श्याम जी !!!!
क्या ग़ज़ल सिर्फ़ उन्हीं बहरों में बन सकती है जिनके नाम हैं ? अगर रचना की गणना ठीक है मगर बेहर का नाम नहीं है, तो वो जायज़ ग़ज़ल कहलाएगी ?
शेरों का क्रम कहीं पर लचक गया सा लगता है , जब एक प्रवाह में पढा जाता है |
लेकिन रचना मजेदार है , पढ़ने में मजा आया |
बधाई |
अवनीह्स तिवारी
अपने अल्पग्यान के कारण किसी भी गज़ल की तारीफ करते डर लगता है----
जैसे--किसी गज़ल की बहर फाइलुन-फाइलुन समझ के तारीफ करी तभी कोई तीस मार खाँ आ धमके और अनाम
नाम से कहने लगे कि किस अहमक ने तारीफ करी गज़ल की बहर फाइलुन-फाइलुन नहीं मफाइलुन-मफाइलुन है ।
--चाहे जो हो---- यह गज़ल मुझे पूरी बहर में लग रही है और इतनी अच्छी भी लग रही है कि सुबह से गुनगुना रहा हूँ।---
-- ठूँठ कहा था सबने मुझको
मौसम पतझर था क्या करता
--वाह क्या शेर है--क्या सफाई है--क्या सादगी है--क्या बात है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
श्याम जी!
हो सकता है कि मेरा सवाल स्पष्ट न हुआ हो। मुझे "बहर" के नाम से कोई लेना-देना नहीं, मैं बस शेर का वज़न जानना चाहता था। वो क्या है कि गज़ल-लेखन सीख रहा हूँ और इस लिए रूकन और अरकान की जानकारी इकट्ठा कर रहा हूँ । मात्राओं की गिनती पर अटका हूँ। इसलिए चाहा कि इसी गज़ल के बहाने वज़न के बारे में जान लूँ।
मनु जी!
इसे द्वंद्व हीं कहिये कि मेरी गज़लों को "बहर" से बाहर होने के कारण हीं नकारा गया है और अब जब "बहर" में आना चाह रहा हूँ तब भी मुश्किलें आ रही हैं :) आखिर मैं गज़ल लिखना सीख भी पाऊँगा ? :))
-विश्व दीपक ’तन्हा’
श्याम जी!
कृप्या आप निम्नलिखित पंक्तियों में वज़न की गिनती बता दें-
ठूंठ कहा था सबने मुझको
खुद से भी तो छुप न सका वो
सारी उम्र पड़ा पछताना
सब-कुछ छोड़ चला आया मैं
धन्यवाद,
विश्व दीपक
तनहा जी,
इस ग़ज़ल में क्या दिक्कतें आती हैं सीखने में ये तो म्य्झे मालूम नहीं क्यूनके कभी सीखी नहीं ..आप तो उनी कवि भी हैं..और मेरी तो कभी कोई ग़ज़ल कहीं छपी भी नहीं ...टिप्पानी पर किसी का बस नहीं चलत तो छाप जाती हैं ..पर मेरे लिए इतना ही पुरूस्कार काफ़ी है के लोग मान लेते हैं. के बगैर उस्ताद के भी सबसे मुश्किल काव्य विधा में कह लेता है ...कुछ लोग जन्मजात शाएर कह के खिल्ली उडाते हैं ..पर कोई फर्क नहीं पड़ता..जब अपनी बात अपने से कहने के लिए लिखें तो इसी में मजा है...जैसे मतला ज़रूरी होता है मगर मैं जबरदस्ती नहीं बनाता ...
ऐसे ही मक्ता....
मैं तो अपने लिए बनाई गयी पेंटिंग पर भी साइन नहीं करता ...हलाँकि ये भी जरूरी होता है ..पर कई बार लगता है के जब ब्रश नाम लिखने के लिए पेंटिंग की तरफ़ बढ़ता है तो अक्सर तस्वीर कुछ कह देती है ...अगर मैं उसे समझ लेता हूँ तो उस पर नाम लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पता..
शायद ऐसा ही ग़ज़ल में हो...बाकी अगर मेरे कारण कोई कनफूजन हुआ हो तो मुझे माफ़ कर दें
अरे मनु जी!
आप माफी काहे माँग रहे हैं......मैने ऎसा तो कुछ नहीं कहा था। आपने भी कुछ ऎसा नहीं कहा कि माफी माँगी जाए। आप अपने दिल की बात कहते हैं और वो आपकी सबसे बड़ी खूबी है। आप गज़ल के नियमों पर जोर नहीं देते तो उसमें कोई बुराई नहीं है। स्वयं "निदा" जी ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि व्याकरण के पीछे पड़ने से कोई गज़लगो नहीं हो जाता। मेरी बस इतनी ख्वाहिश है कि मैं नियमो को भी जान लूँ और इसलिए "बहर" और "वज़न" जानने की इच्छा रखता हूँ। आप भी अपनी जगह सही हैं और मैं भी अपनी जगह। न आपको माफी माँगने की जरूरत है और न हीम मुझे। इसलिए बिंदास टिप्पणि कीजिए :)
और हाँ मैं युनिकवि नहीं रहा कभी :)
-विश्व दीपक ’तन्हा’
ठूंठ कहा =था सबने मुझको
२११२ =.२ २ २ २ २
खुद से भी तो छुप न सका वो
२ २ २ २ २ १ १२2
सारी उम्र पड़ा पछताना
२ २ २ १ १२ ११ २ 2
सब-कुछ छोड़ चला आया
११[२] २ २ १ १२ २ 2 मैं २ श्याम सखा
वाह! 'श्याम' जी वाह!
सच कहकर भी मैं पछताया
खोया आदर था, क्या करता
सारी उम्र पड़ा पछताना
भटका पल-भर था, क्या करता
थककर लुटकर वापिस लौटा
घर आखिर घर था, क्या करता
- दिलशेर 'दिल'
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)