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और एक दिन वो मेरी गाड़ी के नीचे आ गया!
एक हादसा मेरे रोज़मर्रा के रास्ते पर हो गया था !
उसका ज़ख्म गहरा था
मुझे दिख रहा था उसका खून बह रहा है
मगर मैं वहां से चल दिया क्योंकि
.... ग़लती उसकी थी
उस दिन के बाद
मैं हर रोज़ उसे देखता
वहीँ सड़क के किनारे वो बैठा रहता
अपने खुले घाव लेकर
उसे दर्द होता था .................
और शायद ....
....... मुझे भी
फिर उसके ज़ख्म
नासूर होने लगे
पकने लगे ........ रिसने लगे
उसे चुभने लगे
और शायद .......
मुझे भी
उसका दर्द मुझसे देखा न गया
कुछ करना ज़रूरी था ....
हाँ .... कुछ करना ज़रूरी था
इसलिए
... मैंने अपना रास्ता बदल दिया !
अब उसके ज़ख्मों में दर्द नहीं है ..............
........
अब मुझे भी दर्द नहीं होता
...........
RC
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
उसका दर्द मुझसे देखा न गया
कुछ करना ज़रूरी था ....
हाँ .... कुछ करना ज़रूरी था
इसलिए
... मैंने अपना रास्ता बदल दिया !
अब उसके ज़ख्मों में दर्द नहीं है ..............
अब मुझे भी दर्द नहीं होता
आज के हालात पर लिखा
कटु सत्य....
अद्भुत !!!!!
nisandeh adbhut!
gajal ke baad kavita....
ALOK SINGH "SAHIL"
इसलिए
... मैंने अपना रास्ता बदल दिया !
सही कहा रूपम जी...
"बे-तक्ख्ल्लुस ", दर्द से तेरे वो यूँ तडपा किए ,
सामने से गुजरे लेकिन हाथों से परदा किए.....
जाने राह बदलने वाले की क्या प्रोब्लम रही हो...?
समाज़ का सच है जिसे आपने आईना दिखाया है। जाने क्यों हर कोई इस सच से दूर भागता है ,जबकि हर पल इसी सच को जीता है।
अच्छी रचना के लिए तहे-दिल से बधाई स्वीकार करें\
-विश्व दीपक
अब दर्द नही होता । इस कविता के मध्यम से बहुत हद तक हमलोगों को हो आईना दिखया गया है या यूँ कहे की नंगा किया गया है ।
ये घटनाये रोज होतीं है और हमसब लगभग यही करते हैं .
आप की कविता ने मुझे एक घटना याद दिला दी .जो मेरी एक सहेली के साथ हुई थी .
उस ने अपना सब कुछ खोदिया है .आप की कविता में व्यंग भी है दर्द भी और क्या कहूँ
सुंदर
रचना
और कोशिश करिए | गद्य और पद्य का मिश्रण करना एक चलन तो बन गया है , लेकिन पूर्ण रूप से पद्य की अपनी ही बात होती है |
बधाई इस रचना के लिए |
अवनीश तिवारी
शुक्रिया सबका |
रचना जी, कुछ आपकी सहेली की तरहा ही कहानी थी जिससे इस कविता की प्रेरणा मिली थी | फिर लगा के यह हादिसा ज़िंदगी में आम तौर पैर भी तो लागू हो रहा है ... एक्सीडेंट तो बस एक अनालोजी (analogy) है !
God bless
RC
rupamji ki kavita ye aurat bhi hai maa bhi hai bahut achhi lagi itani achhi ki paas baithi betion ko bhi sunaayi aur ruk kar sochana oada
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