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Thursday, January 22, 2009

मेरा कद


एक सुबह उठा
तो मेरा कद खो गया
मैं हतप्रभ
अब कैसे काम चलेगा
मैं बौना या सामने वाला
कैसे पता लगेगा
अपने कद की तुलना में
औरों के कद
आंक रखे थे
स्वार्थ के पैमाने पर
सबको नाप रखे थे
कौन मेरे पीछे और
किसके पीछे मैं
पूँछ हिलाऊँगा
इसका बोध खो गया
हे भगवान
एक ही रात में
क्या से क्या हो गया
कद का यह भ्रमजाल
मेरा उसका आपका नहीं
सबका है पेश है एक शब्दचित्र
जिसमें नाम फकत मेरा है
शहर से दूर था वह कॉलेज
जिसमें मैं पढ़ता था
कुछ पैदल कुछ
साइकिलों पर आते
मैं पैदल..........
हसरत से देखता साइकिल को
परीक्षा के दिन
एक सेठ पुत्र ने
साइकिल पर बिठा दिया
परीक्षा से महत्वपूर्ण
साइकिल की सवारी होगई
जीवन में पहली बार लगा
मेरा भी कुछ कद है
फिर नौकरी की साइकिल खरीदी
अच्छा लगा
स्कूटर बगल से गुजरता तो
मायूस हो जाता
कद कुछ कम हो जाता
बुढापे मे मोपेड खरीदी
तीस की गति पर
हवाई जहाज का आनंद लिया
पैदल और साइकिल सवारों को देख
नाक-भौं सिकोड़ता
चलने का शउर नहीं
बार-बार ब्रेक लगाना पड़ता है
कद बढ़ने का भ्रम जारी रहा
फिर एक दिन पौत्री ने कहा
दादाजी मम्मी को बैंक से लोन मिला है
घर में कार लायेंगे और
आपको भी खूब घुमायेंगे
पुत्र की भक्ति
पुत्रवधू की श्रद्धा
या दादाजी पर दया
कुछ भी हो
कार की कल्पना ने
कुल मिलाकर मेरा कद
कुछ और बढ़ा ही दिया
और अब चतुर्थ आश्रम
चला चली की तैयारी
कन्धों की सवारी की प्रतिक्षा
लोग कह रहे हैं
पांव विमान से बाहर है
इन्हें ढँकों.......
मेरा कद ......?

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

इतनी बड़ी बात आपने इतने कम शब्दों में कितनी आसानी से कह दी
एक प्रभावशाली रचना के लिए बधाई

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

सुंदर प्रस्तुति। गागर में सागर। धन्यवाद।

आलोक साहिल का कहना है कि -

vinay ji,behad sadhi hui rachna,badhai swikar karein..
ALOK SINGH "SAHIL"

शोभा का कहना है कि -

कुल मिलाकर मेरा कद
कुछ और बढ़ा ही दिया
और अब चतुर्थ आश्रम
चला चली की तैयारी
कन्धों की सवारी की प्रतिक्षा
लोग कह रहे हैं
पांव विमान से बाहर है
इन्हें ढँकों.......
मेरा कद ......?
वाह इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए पीठ ठोकने का मन है। बधाई स्वीकारें।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अच्छी रचना है |
बधाई| अपने अपने कद की बात है |
समय के हिसाब से कद भी बदलता है |

अवनीश tiwaree

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर रचना! बहुत-बहुत बधाई!

Riya Sharma का कहना है कि -

अनंत इच्छावों में से कुछ पूरे कुछ अधूरे होने से
इंसान का कद कैसे बढता व कम होता है

अद्भुत विनय जी

सादर !!

Divya Narmada का कहना है कि -

अच्छी रचना है |
बधाई|

manu का कहना है कि -

आपकी शानदार कविता पढ़कर बच्चन की पंक्तियाँ याद आ गयीं....
"और और की रतन लगाता जाता हर पीने वाला ,
कितनी इच्छाएं हर जाने वाला छोड़ यहाँ जाता है ,
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला
बहुत असरदार कविता .......

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

रौंगटे खड़े हो गये...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

bahut hi sunder abhivyakti hai bdhaai

Anonymous का कहना है कि -

इच्छाओं का सागर विशाल
कभी भर पता नही
जानते है जबकि
सब कुछ रह जाएगा यहीं


जाना है एक दिन मालूम है फ़िर भी
ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें

और अब चतुर्थ आश्रम
चला चली की तैयारी
कन्धों की सवारी की प्रतिक्षा
लोग कह रहे हैं
पांव विमान से बाहर है
इन्हें ढँकों.......
मेरा कद ......?
आप की कविता पढ़ के ये मन द्रवित होगया .बहुत सुंदर है और यही तो जीवन की सच्चाई है .
सादर
रचना

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

कद कई तरह से बढ़ता है। जैसे ऐसी कविता लिखने वाले कवि के कद को ही ले लीजिए............पाठक के मन में इनका कद कितना बढ़ गया---!क्या यह कभी कम होगा......? कंधो की सवारी के बाद भी नहीं। हॉ, सिर्फ भौतिक तरक्की को ही जिसने कद बढ़ना मान लिया उनका कद तो उनके साथ ही गुम हो जाना है।
बेहतरीन कविता ---जो चिंतन के लिए विवश कर देती है।
बधाई स्वीकारें--
--देवेन्द्र पाण्डेय।

neelam का कहना है कि -

स्वार्थ के पैमाने पर
सबको नाप रखे थे
कौन मेरे पीछे और
किसके पीछे मैं
पूँछ हिलाऊँगा
इसका बोध खो गया
जब भौतिकता का कद बढ़ता है ,मनुष्य की मनुष्यता का कद छोटा होता जाता है ,
सब जानते हैं कि
सब ठाठ पड़ा रह जायेगा ,
जब लाद चलेगा बंजारा
फिर हम और अधिक कि तलाश में ख़ुद को ही खो चुके हैं ,
सोचने को ,गहन चिंतन को मजबूर करती है ,यह कविता

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