tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post8610905209933370529..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: मेरा कदशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48232047241241992222009-01-23T21:59:00.000+05:302009-01-23T21:59:00.000+05:30स्वार्थ के पैमाने पर सबको नाप रखे थे कौन मेरे पीछे...स्वार्थ के पैमाने पर <BR/>सबको नाप रखे थे <BR/>कौन मेरे पीछे और <BR/>किसके पीछे मैं <BR/>पूँछ हिलाऊँगा <BR/>इसका बोध खो गया<BR/>जब भौतिकता का कद बढ़ता है ,मनुष्य की मनुष्यता का कद छोटा होता जाता है ,<BR/>सब जानते हैं कि<BR/>सब ठाठ पड़ा रह जायेगा ,<BR/>जब लाद चलेगा बंजारा <BR/>फिर हम और अधिक कि तलाश में ख़ुद को ही खो चुके हैं ,<BR/>सोचने को ,गहन चिंतन को मजबूर करती है ,यह कविताneelamhttps://www.blogger.com/profile/00016871539001780302noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-39921509516484547622009-01-23T20:16:00.000+05:302009-01-23T20:16:00.000+05:30कद कई तरह से बढ़ता है। जैसे ऐसी कविता लिखने वाले क...कद कई तरह से बढ़ता है। जैसे ऐसी कविता लिखने वाले कवि के कद को ही ले लीजिए............पाठक के मन में इनका कद कितना बढ़ गया---!क्या यह कभी कम होगा......? कंधो की सवारी के बाद भी नहीं। हॉ, सिर्फ भौतिक तरक्की को ही जिसने कद बढ़ना मान लिया उनका कद तो उनके साथ ही गुम हो जाना है।<BR/> बेहतरीन कविता ---जो चिंतन के लिए विवश कर देती है।<BR/> बधाई स्वीकारें--<BR/> --देवेन्द्र पाण्डेय।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-65330464905949700432009-01-23T19:49:00.000+05:302009-01-23T19:49:00.000+05:30इच्छाओं का सागर विशाल कभी भर पता नही जानते है जबकि...इच्छाओं का सागर विशाल<BR/> कभी भर पता नही <BR/>जानते है जबकि <BR/>सब कुछ रह जाएगा यहीं <BR/><BR/><BR/>जाना है एक दिन मालूम है फ़िर भी <BR/>ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें<BR/><BR/>और अब चतुर्थ आश्रम<BR/>चला चली की तैयारी<BR/>कन्धों की सवारी की प्रतिक्षा<BR/>लोग कह रहे हैं<BR/>पांव विमान से बाहर है<BR/>इन्हें ढँकों.......<BR/>मेरा कद ......?<BR/>आप की कविता पढ़ के ये मन द्रवित होगया .बहुत सुंदर है और यही तो जीवन की सच्चाई है .<BR/>सादर<BR/>रचनाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-12038864104408258042009-01-23T12:52:00.000+05:302009-01-23T12:52:00.000+05:30bahut hi sunder abhivyakti hai bdhaaibahut hi sunder abhivyakti hai bdhaaiनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-11618054247945860102009-01-22T23:30:00.000+05:302009-01-22T23:30:00.000+05:30रौंगटे खड़े हो गये...रौंगटे खड़े हो गये...तपन शर्मा Tapan Sharmahttps://www.blogger.com/profile/02380012895583703832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-5035926458069730002009-01-22T22:15:00.000+05:302009-01-22T22:15:00.000+05:30आपकी शानदार कविता पढ़कर बच्चन की पंक्तियाँ याद आ ग...आपकी शानदार कविता पढ़कर बच्चन की पंक्तियाँ याद आ गयीं....<BR/>"और और की रतन लगाता जाता हर पीने वाला ,<BR/> कितनी इच्छाएं हर जाने वाला छोड़ यहाँ जाता है ,<BR/> कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला <BR/>बहुत असरदार कविता .......manuhttps://www.blogger.com/profile/11264667371019408125noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-10965689106816057542009-01-22T21:42:00.000+05:302009-01-22T21:42:00.000+05:30अच्छी रचना है |बधाई|अच्छी रचना है |<BR/>बधाई|Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-74208815050990726802009-01-22T20:17:00.000+05:302009-01-22T20:17:00.000+05:30अनंत इच्छावों में से कुछ पूरे कुछ अधूरे होने से इं...अनंत इच्छावों में से कुछ पूरे कुछ अधूरे होने से <BR/>इंसान का कद कैसे बढता व कम होता है <BR/><BR/>अद्भुत विनय जी <BR/> <BR/>सादर !! Ria Sharmahttps://www.blogger.com/profile/07417119595865188451noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-31598733165789387632009-01-22T16:59:00.000+05:302009-01-22T16:59:00.000+05:30बहुत ही सुंदर रचना! बहुत-बहुत बधाई!बहुत ही सुंदर रचना! बहुत-बहुत बधाई!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-59135402019470715382009-01-22T16:44:00.000+05:302009-01-22T16:44:00.000+05:30अच्छी रचना है |बधाई| अपने अपने कद की बात है |समय क...अच्छी रचना है |<BR/>बधाई| अपने अपने कद की बात है |<BR/>समय के हिसाब से कद भी बदलता है |<BR/><BR/>अवनीश tiwareeअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-48388840040236078222009-01-22T16:33:00.000+05:302009-01-22T16:33:00.000+05:30कुल मिलाकर मेरा कदकुछ और बढ़ा ही दियाऔर अब चतुर्थ ...कुल मिलाकर मेरा कद<BR/>कुछ और बढ़ा ही दिया<BR/>और अब चतुर्थ आश्रम<BR/>चला चली की तैयारी<BR/>कन्धों की सवारी की प्रतिक्षा<BR/>लोग कह रहे हैं<BR/>पांव विमान से बाहर है<BR/>इन्हें ढँकों.......<BR/>मेरा कद ......?<BR/>वाह इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए पीठ ठोकने का मन है। बधाई स्वीकारें।शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-83064045888060407492009-01-22T16:16:00.000+05:302009-01-22T16:16:00.000+05:30vinay ji,behad sadhi hui rachna,badhai swikar kare...vinay ji,behad sadhi hui rachna,badhai swikar karein..<BR/>ALOK SINGH "SAHIL"आलोक साहिलhttps://www.blogger.com/profile/07273857599206518431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-86436085213895489502009-01-22T16:00:00.000+05:302009-01-22T16:00:00.000+05:30सुंदर प्रस्तुति। गागर में सागर। धन्यवाद।सुंदर प्रस्तुति। गागर में सागर। धन्यवाद।Prabhakar Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04704603020838854639noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-36211498572765373152009-01-22T15:37:00.000+05:302009-01-22T15:37:00.000+05:30इतनी बड़ी बात आपने इतने कम शब्दों में कितनी आसानी ...इतनी बड़ी बात आपने इतने कम शब्दों में कितनी आसानी से कह दी <BR/>एक प्रभावशाली रचना के लिए बधाईसीमा सचदेवhttps://www.blogger.com/profile/04082447894548336370noreply@blogger.com