किसी को अम्न की थोड़ी सी इल्तिजा है क्या
तुम्हारे पास मेरे दर्द की दवा है क्या
तुम्हारे शह्र की परछाईयाँ फज़ा में हैं
तुम्हारे शह्र कोई हादसा हुआ है क्या
जवां के काँधे पे मज़हब का इक तमंचा है
वो जानता नहीं भगवान् क्या खुदा है क्या
धुआँ उड़ा तो मैं हैराँ था देख तसवीरें
हलाक लोगों में चेहरा मेरा छपा है क्या
उदू की जीत हुई जंग में न जाने क्यों
कमर न कसना भी कोई बड़ी खता है क्या
ख़बर सुनी तो बहुत लोग हड़बड़ाने लगे
ये देखना कोई अपना हुआ फ़ना है क्या
(अर्थ - अम्न = शान्ति, हलाक = मृत, उदू = दुश्मन, फ़ना = मृत)
----प्रेमचंद सहजवाला
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
" कमर ना कसना भी कोई बड़ी खता है क्या "
लाजवाब कहा है.....
ख़बर सुनी तो बहुत लोग हड़बड़ाने लगे
ये देखना कोई अपना हुआ फ़ना है क्या
bhaavukta bharpoor
तुम्हारे शह की परछाईयाँ फज़ा में है,तुम्हारे शह कोई हादसा हुआ है क्या...बहुत अच्छी लगी !badhai!
ख़बर सुनी तो बहुत लोग हड़बड़ाने लगे
ये देखना कोई अपना हुआ फ़ना है क्या
खूबसूरत शेरों का सिलसिला है ये ग़ज़ल
कमर ना कसना भी कोई बड़ी खता है क्या "
behatreen ghazal hai!!!
लाजवाब सर जी,वास्तव में लाजवाब......
आलोक सिंह "साहिल"
बेहतरीन...
मेरे मौला बता मुझको तेरी रजा है क्या.
दीन के नाम पे दहशत न हो, दवा है क्या.
तेरे ही नाम पे बन्दों को जो तेरे मारें.
नमकहरामों की वाजिब कोई सजा है क्या.
मिलाने हाथ दिया हमने वो लड़ा बैठे
हाथ तोडा तो जोड़ पूछते खता है क्या.
छोड़ दुश्वारियां चुन मार्ग लें सहजवाला
प्रेम के नशे से ज्यादा कोई नशा है क्या.
फ़िक्र में कुर्सी की अवाम को भुला बैठा.
सियासत कर रहा लाशों पे रहनुमा है क्या.
काम नापाक मगर नाम पाक है जिसका.
उससे ज्यादा भी कोई और बदगुमां है क्या.
तिजारत कर रहे मजहब की बाँट कर नफरत.
प्रेम से उनको 'सलिल' पूछ अदावत है क्या.
आचार्य संजीव 'सलिल'
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
तिजारत कर रहे मजहब की बाँट कर नफरत.
प्रेम से उनको 'सलिल' पूछ अदावत है क्या.
sahajwaala aur salil ji aap dono ko ,saadhuvaad
धुआँ उड़ा तो मैं हैराँ था देख तसवीरें
हलाक लोगों में चेहरा मेरा छुपा है क्या
अद्भुत भाव बहे
दर्द में डूबे हूवे
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