गली के मोड़ पर
उजा़ले में
कुतिया ने बच्चे दिए
जाड़े में
एक-दो नहीं पूरे सात
ठंड से बचाती रही वह उन्हें
पूरी रात
सबके सब सुंदर प्यारे थे
माँ की आँखों के तारे थे
सुबह तक एक खो चुका था
शायद अल्लाह का प्यारा हो चुका था
बचे छः
सह गयी वह
कष्ट दुःसह।
कोई पास से गुजरता तो गुर्राती
दिन भर यहाँ-वहाँ छुपाती
फिर आती हाड़ कंपा देने वाली काली रात
बच्चों को चिपकाती अपने स्तन से
सारी रात
उफ !
रात भर उसका रोना
मुश्किल था हमारा सोना
सुबह तक एक और खो चुका था
शायद किसी का हो चुका था
यमराज ले जाए या आदमी
बच्चे गुम हो रहे थे
कुतिया को गिनती नहीं आती
पर इतना जानती
कि बच्चे
कम हो रहे थे
कातर निगाहों से
उन्हीं से मदद की उम्मीद करती
जो अब
हल्की गुर्राहट से भी डरने लगे हैं
हाथों में डंड़ौकी ले
घरों से निकलने लगे हैं।
दिन गुजरते जाते हैं
एक-एक कर पिल्ले गुम होते जाते हैं।
एक दिन बर्तन माजने वाली बताती है-
कुतिया का सिर्फ एक पिल्ला बचा
उसे भी उठा ले गए
पान वाले चचा....!
मेरी पत्नी पूछती है-
पिल्ले को छोड़, तू बता
तेरा छोटू आज काम पर क्यों नहीं आया ?
वह बताती है-
उसका बाप उसे मुम्बई ले गया है
वहाँ एक बहुत बड़ा साहब रहता है
अब वह वहीं रहेगा
एक हैजा से मर गया
दूसरा अपने से भाग गया
यही बचा था
इसे भी इसका बाप ले गया
कहते-कहते उसकी आँखें डबडबा गईं।
मैने सुना
बर्तन मांजत-मांजते
बीच-बीच में बड़बड़ाती जाती है-
कुतिया का सिर्फ एक बच्चा बचा
उसे भी उठा ले गए
पान वाले चचा..!
मैने महसूस किया
एक वफादारी
दूसरे निर्धनता का दंश
झेल रहे हैं।
देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुतिया को गिनती नहीं आती
पर इतना जानती
कि बच्चे
कम हो रहे थे
kafi accha likha hai.
--shamikh.faraz
बहुत भावभरी अभिव्यक्ति।
यमराज ले जाए या............बच्चे कम हो रहे थे..
क्या झाँका है बेजबान का दिल.... क्या है कलम की चुभन ..
कविता मे बेजुबान का ऒर गरीबी का दरद बाखूबी बयान किया है आपने , इस से आगे कहने को शबद नही
बेहद मर्मस्पर्शी.............
आलोक सिंह "साहिल"
ह्रदय-स्पर्शी रचना
मन को छू गयी यह रचना
यही बचा था
इसे भी इसका बाप ले गया
कहते-कहते उसकी आँखें डबडबा गईं।
.
इन पंक्तियों में जननी सार्वभौमिक हो गई है और दर्द विस्तारित |
बहुत प्रभावशाली कविता |
.
विनय के जोशी
यही बचा था
इसे भी इसका बाप ले गया
कहते-कहते उसकी आँखें डबडबा गई
जबर्दस्त लिखा है..
सामाजिक समस्यायों का इतना मार्मिक वर्णन सिर्फ़ आप और आप ही कर सकते है ,चिडिया के बाद अब इस कविता ने हमे आपका जबरदस्त प्रशंसक बना दिया है |
मैने महसूस किया
एक वफादारी
दूसरे निर्धनता का दंश
झेल रहे हैं।
बेजुबान की व्यथा को
बखूबी समझा पाने में समर्थ
बहुत खूब !!!
This poem is remarkable for beautiful juxtaposition of two
human instincts- cruelty and fellow
feeling.As there is someone who takes the puppy away, there is also
someone else who feels the deep pangs of seperation at the same level the mute 'kutia' feels. And
that, to me, is the real beauty of
the poem.
Gopal.
kawita bahut hi marmsparsi lagi....
sabhi comments bhi achhe lage.....vivek k joshi ke comment se,"gagar men sagar hai kavita mne"
ye bat spasta hui....
your`s
prem
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