फटाफट (25 नई पोस्ट):

Monday, December 01, 2008

दो मिनट का मौन रखना सीख ले


हर तरफ़ फैली हुई ये ज़ुल्मतें
रौशनी होंगी तेरी कब रहमतें

शह्र को अब कर रहे हैं सब सलाम
हज़्म कर ली शह्र ने सब ज़िल्लतें

कुछ कंदीलें जल रही मरहूमों पर
गिन नहीं पाते हैं इतनी मैय्यतें

दो मिनट का मौन रखना सीख ले
कारगर होती हैं अच्छी सोहबतें

मौत का साया धुआं बन कर उड़ा
बढ़ गई इक दूसरे से कुर्बतें

ये सियासत है संभल कर के चलो
हो सके तो सीख लो सब तोहमतें

अलविदा पर ख़त्म है ये दास्ताँ
कौन रखेगा किसी से चाहतें

(अर्थ: ज़ुल्मतें = अंधेरे, जिल्लतें = अपमान, कंदीलें = मोमबत्तियां, मरहूम = मृत व्यक्ति, मैय्यतें = अर्थियां, कारगर = उपयोगी, सोहबत = संगत, साथ, कुर्बतें = करीबियां, सियासत = राजनीति, तोहमतें = इल्जाम)

ग़ज़लगो--प्रेमचंद सहजवाला

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -

"सहज जिनके वास्ते लिखते हैं हम,
हैं कहाँ पढने की उनको फुरसतें...?"

दर्द से भरी...अच्छी ग़ज़ल.....

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी रचना बधाई!

neelam का कहना है कि -

अलविदा पर ख़त्म है ये दास्ताँ
कौन रखेगा किसी से चाहतें

दो मिनट का मौन रखना सीख ले
कारगर होती हैं अच्छी सोहबतें

हर तरफ़ फैली हुई ये ज़ुल्मतें
रौशनी होंगी तेरी कब रहमतें
प्रेम जी धन्यवाद


मनु जी ,
एक लाइन याद आ रही है ,
पढ़ना लिखना सीखो ,मनु जी के चाहने वालों |

manu का कहना है कि -

कृपया मुझे ग़लत न लें ..
"बे-तक्ख्ल्लुस" के निशाने पे वो थे,
जिनकी फैलाई हुयी हैं .ज़ुल्मतें

Anonymous का कहना है कि -

दो मिनट का मौन रखना सीख ले
कारगर होती हैं अच्छी सोहबतें
मौत का साया धुआं बन कर उड़ा
बढ़ गई इक दूसरे से कुर्बतें
अच्छे लगे ये शेर
सादर
रचना

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

ये सियासत है संभल कर के चलो
हो सके तो सीख लो सब तोहमतें

अलविदा पर ख़त्म है ये दास्ताँ
कौन रखेगा किसी से चाहतें

वाह वाह क्या कहने
हर शेर लाजवाब है

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)