कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
नींद की आंखो से देखा तो,
तुम थी,
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिए,
एक उम्र भर के लिए ...
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....
क्या किसी ने तुम्हेण बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते.....
--यूनिकवि विजय कुमार सप्पत्ती
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22 कविताप्रेमियों का कहना है :
आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....
क्या किसी ने तुम्हेण बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते
वाह! दिल खुश हो गया इतनी सुंदर कविता पढ़कर. बहुत -बहुत बधाई.
कविता पढने में इतनी खो गई थी कि अचानक ख़त्म खो जाने पर लगा कि इन विचारो पर आप कुछ और लम्मे जाते तो मुझे ज्यादा अच्छा लगता! अच्छी रचना बधाई!
दिल को छू लेने वाली रचना
कविता के भाव अच्छे हैं सुंदर भी है पर मुझे एसा लगा की शायद कविता थोडी और बड़ी होती तो ज्यादा अच्छा होता .हो सकता है मेरी सोच ग़लत हो
सादर
रचना
क्या किसी ने तुम्हेण बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते.....
क्या बात है.... बहुत सुंदर अंत...
क्या किसी ने तुम्हेण बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते.....
sabse marmik paktiyan.bdha...i
क्या किसी ने तुम्हें बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते..
बहुत खूब.
"praayo ke ghar bhigi aankhoN se nahee jaate..." waaah! mn ki kisi tees ko lafzo ka itna khoobsurat libaas de dala aapne... iss "praayo" lafz mei jo apnapan hai usse aap se behtar koi nahi samajh sakta (shayad..). bhaav mei samarpan aur nishtha khud bol rahe haiN, MUBARAKBAAD.. kaee dino se Harkiratji ko nahi paRha hai... itni lambi gair.haaziri achhi nahi ! -----MUFLIS-----
सप्पति जी ,
बहुत नाइंसाफी है ,आपकी कविता की नायिका के साथ भीगी आँखों से जो आपके पास आई ,उसे पराया बनाने के लिए |
आप सभी का बहुत धन्यवाद्. मेरी ये कविता ने मुझे बहुत झकझोर कर रख दिया था , जब मैंने इसे काम्पोस किया था.. मन इतना भीग गया था की मुझे छुट्टी लेकर कही एकांत में जाना पड़ा.. ये कविता ,हम सभी की है... विरह का दुःख बहुत तडपता है .. कविता के नायक ने एक पूरी उम्र नायिका का लिए इन्तेजार किया है .. नायिका जो पराई है ... प्रेमी को भूल नही पा सकी है... नायक ने जो नज्में ,उस पर लिखी है ,उन्ही को अपने साथ का लिए मांगने गई है ...
मेरी अन्य कविताओं का लिए प्लेस मेरे ब्लॉग में विसित करिये ,और अपने बहुमूल्य कमेंट्स दीजियेगा ..
विजय
M : 09849746500
E : vksappatti@rediffmail.com
my blog : poemsofvijay.blogspot.com
पहली बार पढा तो रचना का मर्म नहीं समझ पाया।......दूसरी बार फिर तीसरी बार पढा तो विजय जी मैं आपकी लेखनी का कायल हो गया। बधाई स्वीकारें।
अच्छी रचना...हिंदयुग्म पर लगातार लिखता रहें..
निखिल
कहने के लिए कोई शब्द नही | बहुत बहुत बधाई ......सीमा सचदेव
वाह बहुत खूब
कविता बहुत ही अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
क्या किसी ने तुम्हें बताया नहीं कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते,
यह पंक्तियाँ विशेषकर अच्छी लगी...
नियंत्रक महोदय, आपसे एक बात जानना चाहता हूँ विजय जी ने अपनी पुरस्कृत कविता 'सिलवटें..' अपने
ब्लाग पर पहले प्रकाशित कर दी थी क्या ये आपके बनाये नियमों के खिलाफ नहीं?
yadi ye baat sach bhi hai to is ko abhi batane ka fayada
mahesh
ये तो सचमुच प्रतियोगिता के लिए बनाये गए नियमों के खिलाफ है । विनय जी को रिजल्ट आने से पहले कविता
अपने ब्लाग पर प्रकाशित नहीं करनी चाहिये थी।
यह बहुत ही मूलभूत प्रश्न है और यदि कविता पहले से प्रकाशित है तो नियमानुसार इसका प्रकाशन नहीं होना चाहिए यदि ग़लती से प्रकाशित हो गयी है तो तुरंत ही इसे हटाया जाना चाहिए.
एक और प्रश्न दिमाग को उदेलित कर रहा है , क्या कवि अपना व्यक्तिगत मोबाइल नम्बर और पता प्रकाशित कर सकते है. इससे सम्बंधित नियम क्या है. व्यक्तिगत संपर्क सूत्र ज्यादा मह्तुपूर्ण है या कविता .
अनाम जी,
हमें यह बिलकुल जानकारी नहीं थी। आपने बिलकुल ठीक कहा, इनकी दोनों ही कविताएँ प्रकाशित हैं। विजय जी को खेदभरा ईमेल-पत्र भेजा गया है। जल्द ही हम अगला और कड़ा कदम उठायेंगे।
हमें यह सूचना देने के लिए आपका पुनः आभार।
बहुत सुंदर सोज़ भरी नज़्म
पड़ कर मज़ा आ गया
pehle to maine bhi ye socha k apne blog pr kuchh likhna waisa hi hai jaise kavita ko kisi kaagaz pr utaar lena, lekin sb maanyavar paathko ki raae se lga k ye ghal`tee hi hai..khair hm sb,(jisme Vijayji bhi shamil haiN)samvedansheel insaan haiN..jazbaat ki rau me beh jana hmari fitrat ka hissa hai..aur Niyantrak Mahodaya ne bhi sbhi paathakgan ka maan rakhte hue apna farz b.khoobi nibhaya hai...to chalo hm sb tmaam shikve bhula kr sirf aur sirf kavita ke bare mei sochein, kavita se jee bhr ke pyaar kareiN.. HindYugm aapsb ka hai, hm sb ek parivaar haiN, niy`mo ka paalan karna hm sb ka farz hai aur aise naazuq halaat se ubarne mei ek.dusre ki madad karna bhi hm sb ka farz hai
"kal ghnere peRh bn kr chhaaoN bhi denge tumhei, aaj raahoN mei zra ankur lga kr dekhna" ---MUFLIS---
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