दर्द को दिल से लब पे आना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था
उनका रुख से नकाब हटाना था
देखता रह गया जमाना था
प्यार था प्यार का बहाना था
प्यार लेकिन किसे निभाना था
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था
हां वो मेरा रकीब था लेकिन
कातिलों से उसे बचाना था
आज कहते वो खराब हैं मुझको
कल तलक तो मै खानखाना था
राज़ उजागर हुआ अचानक ही
लाख चाहा जिसे छुपाना था
प्यार करना पड़ा था मजबूरन
दोस्त मौसम बड़ा सुहाना था
तुमसे मिलकर झुकी नजर मेरी
चूकता कब तेरा निशाना था
मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था
रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था
राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था
ग़म चुराकर चला गया मेरे
श्याम’सचमुच बहुत सयाना था
या
दिल चुराने में‘श्याम' था माहिर
दिल उसी से हमें बचाना था
फ़ाइलातुन, मफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 ,1212,211 [22]
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28 कविताप्रेमियों का कहना है :
आज कहते वो खराब हैं मुझको
कल तलक तो मै खानखाना था
राज़ उजागर हुआ अचानक ही
लाख चाहा जिसे छुपाना था
वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बहुत अच्छी लगी खासतौर उपरोक्त शेयर | बधाई...........सीमा सचदेव
रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था
प्यार से सच में रूह प्रकाशित होती है
राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था
इस शेर की भी क्या बात है
बहुत सुंदर ग़ज़ल
सादर
रचना
दर्द को दिल से लब पे आना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था
उनका रुख से नकाब हटाना था
देखता रह गया जमाना था
प्यार था प्यार का बहाना था
प्यार लेकिन किसे निभाना था
गजल मे तीन मतले है लेकिन मतलो मे कुछ कम प्रभाव लगा
ये दो शे'र पसंद आये
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था
हां वो मेरा रकीब था लेकिन
कातिलों से उसे बचाना था
सुमित भारद्वाज
ये वाला मकता भी अच्छा लगा
ग़म चुराकर चला गया मेरे
श्याम’सचमुच बहुत सयाना था
बहुत बढिया लिखा है।बधाई।
श्याम जी, बढ़िया सुंदर ग़ज़ल लिखी आपने .....
मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था
सुरिन्दर रत्ती
Yeh Ashaar pasand aaye ...
प्यार करना पड़ा था मजबूरन
दोस्त मौसम बड़ा सुहाना था
मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था
रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था
राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था
यहाँ "था" होना चाहिए या "थी", मैं थोड़ा कन्फ्यूज्ड हूँ। मेरे अनुसार तो बेवफ़ाई स्त्रीलिंग है।
शुरू के तीन शेर छोड़कर बाकी सारे मुझे पसंद आए।
राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था
वाह!वाह!
हाँ "खानखाना" का मतलब मैं समझ नहीं पाया। कहीं अब्दुर्रहमान खानखाना से तो इस शब्द का ताल्लुक नहीं है। कृप्या संदेह का निवारण करें\
अच्छी गज़ल के लिए बधाई स्वीकारें।
अब्दुर्रहमान को अब्दुर रहीम पढें।
मित्रो, एक बार फिर आप सब को धन्यवाद ,बहाना तो पुलिंग होता है अत :था ही आएगा ,यह बेवफाई के लिए प्रयुक्त नहीं हुआ है,खानखाना उपाधि होती थी ,जैसे आपने ठीक पहचाना ,रहीम खानखाना श्याम सखा `श्याम
सुमित जी ,कहते हैं ,कुछ लम्हे अच्छे गुजर जाएँ इश्वर की इनायत है ,सारी जिंदगी बढिया गुजरे ,यह तो लालच होगा ,आपको या किसी भी पाठक श्रोता को अगर एक मिसरा भी पसंद आजाये तो कवि,शाईर ख़ुद को खुशकिस्मत समझता है ,मैं भी -श्याम
आज कहते वो खराब हैं मुझको
कल तलक तो मै खानखाना था
राज़ उजागर हुआ अचानक ही
लाख चाहा जिसे छुपाना था
प्यार करना पड़ा था मजबूरन
दोस्त मौसम बड़ा सुहाना था
वाह! बहुत खूब।
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था
वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल है.
ग़मज़दा ख़ुद ही वो मिला ज़ख्म दिल का जिसे दिखाना था .....बहुत अच्छा,ग़ज़ल के कुछ शेर बहुत अच्छे है,..बधाई!
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था..
क्या बात है....
तुमसे मिलकर झुकी नजर मेरी
चूकता कब तेरा निशाना था
मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था
इसमे निशाना दो बार आ गया, जो मुझे थोड़ा गलत लगा
बाकी गज़ल आप्की सही थी…
आपने आना के काफ़ी सारे काफिये ढूंढ निकाले
बहुत बढिया
"ghamzadaa khud bhi wo mila mujhko,zakhm dil ka jise dikhana tha.." haasil.e.ghazal sher hai, badhaaee.. Aur ek guzarish ye k (aaj kehte wo khraab..)aur(mai to tha teri qafas..)in ash`aar pr dobara nzr daaliye. Huzoor! aapko to `DARVESHJI` ki khaas shafqat haasil hai..aapne kahaa b to hai..(raah samjha di ek baar ussne...), khair ek achhi ghazal pr mubarakbaad......[ MUFLIS ]
रूठना बार -बार उसे था और
फर्ज मेरा उसे मनाना था
योगेश जी अगर कोई काफिया दोबारा प्रयोग होता है और अलग बात कहता है तो ग़लत नहीं ठीक माना जाता है २ कई बार शायर एक काफिये पर दो शेर कहता है ,फ़िर जो ज्यादा अच्छा लगे रख लेता है |काफिये सारे नहीं आए न ऐसी कोशिश करनी चाहिए |जैसे एक और काफिया प्रयोग किया है|मगर यह प्रयोग एक कोशिश भरा है जो ग़ज़ल में वर्जित है |काफिये और भावः [विचार स्वत : आयें तभी कोई शे`र दिल को छूएगा |एक बड़े भाई की तरफ़ से बात समझाने की कोशिश भर माने इसे अन्यथा न लें श्याम सखा,soon i am starting blog gazal k bahane where i will post one gazal daily and try to tell whatever little i know about gazaland also answer queries regarding gazal chhand to my capability
muflish bhai ye sher darvesh ki nazaron se razamandi paakar hi sare-bazar aaye hain shyam firbhi aapke sujhavon ka swagat rahega,har gazal,har sher men behatari ki gunjaish rahati hai,meri email i.d msikagad v yahan hindyugm par vahak men hai .aap seedhe vahan bhi likh sakate hain
ना मिली तिजोरी मुझे गम नही
तेरे दो शे'र ही सेर सा खजाना था
एक घूँट पीकर ही रूह तृप्त हो गयी मेरी
लोटे को मुहँ से लागाने का फिर मजा ना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था
दर्द को दिल से लब पे आना था
यूँ करें तो क्या खूबसूरती बढ़ नहीं जाती ,बहरहाल उम्दा ग़ज़ल है श्यामजी आबिद
रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना थ
अच्छा शब्द चयन और सुंदर कृति...
रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था
.
वाह !
.
विनय
राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था |
ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था
har kisi ne apni apni pasand chun li to hum kuon peeche rahen ,humne bhi do behtareen sher le liye hain isme se ,dhanyavaad shyaam ji
हां वो मेरा रकीब था लेकिन
कातिलों से उसे बचाना था
उम्दा शेर
अच्छी ग़ज़ल
ग़म चुराकर चला गया मेरे
श्याम’सचमुच बहुत सयाना था
बहुत अच्छा लगा ,साहिब -यशदीप
दर्द को दिल से लब पर आना था बेवफाई तो इक बहाना था
राज़ उजागर हुआ अचानक ही लाख चाह जिसे छुपाना था
बहुत सुंदर गजल है श्यामजी
धन्यवाद
तुमसे मिलकर झुकी नजर मेरी
चूकता कब तेरा निशाना था
मुझे यह शे`र बहुत अच्छा लगा -अच्छी ग़ज़ल पर बधाई डाक्टर रामावतार
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