समझ न सके
पराई होती
धड़कनों के संकेत
रिसती रही
मोह मुट्ठी से
संबंधों की रेत
ढाई आखर से लेकर
सप्तपदी मध्य
तलाशते रहे एक कोना
जहाँ हो अनुभूति विराट
अस्तित्व बौना
हम निरक्षर
क्षर शब्दों के अर्थ पर
उंगली टिकाये रहे
और समय ने
एक पल में
पूरा पाठ पढ़ा दिया
निर्वासित स्मृतियों का
सिंचन है बेकार
प्रथम प्रयास में
उखाड़ फैकों
यह खरपतवार
संग रहे काई से
अनछुई परछाई से
जो जुड़े ही नही
उन्हें बिछड़ने का दर्द
कहाँ होता है
स्वार्थ मधु वेष्टित
पलों का
जयघोष यहाँ होता है
अनुपयोगी सम्बन्ध कबाड़
मन महल का
वास्तुदोष होता है
।
विनय के जोशी
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
जो जुड़े ही नही
उन्हें बिछड़ने का दर्द
कहाँ होता है
बहुत सुंदर भाव | कविता बहुत अच्छी लगी लेकिन आप अपनी बात को थोड़ा और स्पष्ट करते तो और अच्छा लगता | बधाई ........सीमा सचदेव
वाह ! वाह ! वाह ! अद्वितीय,अतिसुन्दर.......पढ़कर मन मुग्ध हो गया....बहुत बहुत आभार.
Vinay, a very good composition! Loved it!!
I would suggest to give breaks/make into stanzas so that its more readable. Nothing wrong with your poem .... but the human's attention span has reduced in this age. An extra line for a logical break helps retain the flow of the reader.
(Sorry, its a hassle to type in elsewhere in Hindi and paste here. I found writing in English more meaningful than typing Hindi in Roman here. Comment mattes. Hope you would appreciate.)
RC
मुझको अर्थ ही नही समझा |
-- अवनीश तिवारी
जो जुड़े ही नही
उन्हें बिछड़ने का दर्द
कहाँ होता है
स्वार्थ मधु वेष्टित
पलों का
जयघोष यहाँ होता है
अनुपयोगी सम्बन्ध कबाड़
मन महल का
वास्तुदोष होता है
इन पंक्तियों में सम्पूर्ण कविता का सार आ गया है..
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है विनय जी..
बारम्बार बधाई..
बहुत सुंदर कल्पना एवं शब्द संयोजन -बधाई विनय जी ,श्यामसखा `श्याम'
wah,khoob aabid
एक एक शब्द जबर्दस्त.. सच्चा...
और बहुत अच्छी तरह से पिरोया आपने विनय जी... बहुत ही सुंदर रचना.. शब्द नहीं हैं कहने को..
रूपम जी ठीक कह रही हैं.. शायद बीच बीच में अल्पविराम न लगाने की वजह समझने में दिक्कत आ सकती है...
सप्तपदी मध्य
तलाशते रहे एक कोना
जहाँ हो अनुभूति विराट
अस्तित्व बौना
हम निरक्षर
क्षर शब्दों के अर्थ पर
उंगली टिकाये रहे
और समय ने
एक पल में
पूरा पाठ पढ़ा दिया
जो न भी पढ़ा जो जीवन और समय उस को भी पढ़ा ही देते हैं
बहुत खूब
सादर
रचना
हम निरक्षर
क्षर शब्दों के अर्थ पर
उंगली टिकाए रहे
और समय ने
एक पल में
पूरा पाठ पढ़ा दिया
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---------------
अनुपयोगी संबंध कबाड़
मन महल का
वास्तुदोष होता है।
-----इन पंक्तियों का जवाब नहीं।
-बधाई---अच्छी लगी कविता।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
ढाई आखर से लेकर
सप्तपदी मध्य
तलाशते रहे एक कोना
जहाँ हो अनुभूति विराट
अस्तित्व बौना
स्वार्थ मधु वेष्टित
पलों का
जयघोष यहाँ होता है
अनुपयोगी सम्बन्ध कबाड़
मन महल का
वास्तुदोष होता है
इन पंक्तियों की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है।
बधाई स्वीकारें।
जो जुड़े ही नही
उन्हें बिछड़ने का दर्द
कहाँ होता है
स्वार्थ मधु वेष्टित
पलों का
जयघोष यहाँ होता है
अनुपयोगी सम्बन्ध कबाड़
मन महल का
वास्तुदोष होता है
बहुत सुंदर और सटीक रचना....
कई बार पढ़ चुकी अब तक...
बहुत अच्छी कविता है पर अल्पविराम नही लगाने से समझने मे समय लगा
सुमित भारद्वाज
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