तसुव्वरात में लाऊँ तेरा सलोना बदन
कहो मै कैसे भुलाऊँ तेरा सलोना बदन
मगन यूँ होके तुझे मैं निहारूँ, मेरे बलम
पलक-झपक मैं छुपाऊँ तेरा सलोना बदन
नयन तेरे हैं ये मस्ती के प्याले मेरी प्रिया
मैं दिल में अपने बसाऊँ तेरा सलोना बदन
ढलकती-सी तेरी पलकें, ये बांकपन तेरा
नजर से जग की बचाऊँ तेरा सलोना बदन
किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन
बड़े कुटिल हैं इरादे जनाब ‘श्याम’ के तो
भला मैं कैसे बचाऊँ तेरा सलोना बदन
मफ़ाइलुन. फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
बा-बहर...अच्छी ग़ज़ल..
अब एक ठिठोली, बस मुझे एनी माउस की तरह न लें .................................. हर कोई मक्ता ग़ज़ल की जान बन जाता नहीं, ये तक्ख्ल्लुस "बे-तक्ख्ल्लुस" को समझ आता नहीं.
laajwab gajal sir ji,maja aa gaya.
ALOK SINGH "SAHIL"
किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन
ये बहुत ही प्यारा लगा अच्छा लिखा है आपने
सादर
रचना
किताब है ये ग़ज़ल की, कि है ये राग यमन
किसी को मै न सुनाऊँ तेरा सलोना बदन..
अच्छा लिखा श्याम जी... ब
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