पिछले माह की प्रतियोगिता के परिणाम देखें तो लगातार तीन पायदानों पर कवयित्रियों का कब्जा है। तीसरे स्थान पर रचना श्रीवास्तव और चौथे स्थान पर लक्ष्मी ढौंडियाल अपनी-अपनी कविताओं के साथ विराजमान हैं। आज हम बात करने जा रहे हैं पाँचवें स्थान की रचनाकारा सुधी सिद्धार्थ और उनकी कविता के बारे में। कवयित्री सुधी सिद्धार्थ का जन्म 4 दिसंबर 1983 को लखनऊ में हुआ। सुधी के पिता सिचाई विभाग में कार्यरत हैं वहीं माता गृहणी हैं। अपने माता पिता की इकलौती संतान हैं। इनके पिता का स्थानातरण जन्म के तीन माह के भीतर ही बरेली हो गया। जीवन के 15 साल गुजारने के बाद लखनऊ आ गईं। वहां से स्नातक किया फिर एक मार्केटिंग कम्पनी में काम किया लेकिन पत्रकारिता में भविष्य बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रही थी इस दौरान मैक डॉनल्ड और कई आइसक्रीम पॉर्लस में काम का अनुभव लिया साथ में इलाहबाद विश्वविद्घालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया और एक वर्ष के प्रयास के बाद आज वॉयस ऑफ इंडिया न्यूज चैनल में काम कर रहीं हैं। कविताएं और लेख लिखने के साथ-साथ संगीत सुनने और नृत्य का भी शौक है।
पुरस्कृत कविता- फ़ितरत
एक दिन चलते-चलते मैं रुकी....
पीछे मुड़कर देखा,
फिर वही ग़म खड़ा था...
घबरा के मैंने उससे पूछा...
"कब से चल रहे हो,
थक नहीं गए ?"
ग़म ने मुस्कुराकर मेरे चेहरे को देखा
और बोला-
कैसी फितरत है तुम इंसानों की....
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है..
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ५, ४, ९, ७, ६॰४
औसत अंक- ६॰२३३३
स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ४, ६॰२३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४१११
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- कवि शशिकांत सदैव की ओर से उनकी काव्य-पस्तक 'औरत की कुछ अनकही'
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
20 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही खूब सुधि, आपकी सोच और शब्द बहुत गहरे तक अपनी बात छोड़ गए हैं. नियमित लिखती रहिये
www.merakamra.com
:-)
cute.
bahut hi gehrai liye huve bhav ..
Ati Sunder!!!!
likhti rahe
इस देश के अधिकांश नेता चोर है. पल में टोला पल में माशा वाला हाल सभी का है. इन्हे देखकर अब तो गिरगिट भी शर्माने लगे है तभी तो गिरगिट आजकल कम दिखाई देते है.
बहुत ही छोटी और खुबसूरत कविता...
आपको दुबारा भी पढ़ना चाहूंगी.
:-)
कैसी फितरत है तुम इंसानों की....
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है..
क्या बात है ..बहुत बड़ा सच है ये कविता के माध्यम से आपने समझा दिया बहुत अच्छा लगा लिखते रहें
बहुत ही सुंदर और गहरे भाव समेटे कविता.बधाई जी
आलोक सिंह "साहिल"
कविता बहुत अच्छी लगी
वीनस केसरी
पता कविता पढ़ के अंत में सोचने पे मजबूर हो गई थोडी मुस्कान के साथ
सादर
रचना
वाह गागर में सागर, लाजवाब बेहतरीन
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है..
सुंदर ,सटीक अभिव्यक्ति बधाई श्याम सखा श्याम
कैसी फितरत है तुम इंसानों की....
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है..
very funny. पुरस्कार के लिए बधाई!
बहुत अच्छा लगा पढ़कर कविता में वो बात है जो पाठक को एक झटका देती है और सोचने पर विवश भी करती है आपकी सोच की गहराई आपकी कविता में झलकती है
कैसी फितरत है तुम इंसानों की....
कोई साथ हो फ़िर भी ग़म है,
कोई साथ न हो फिर भी ग़म है..
बहुत ही सुंदर | एक गम ही तो है जो सदा साथ निभाता है | बधाई ....सीमा सचदेव
बहुत अच्छा !
भावना को चरित्र में ढाल के बहुत ही अच्छा संवाद और उसको बखूबी कविता में प्रकट किया है ...........
आपकी इस कविता पर बधाई !
मगर इतना गम है किस बात का.....
वाकई अच्छी रचना है....
निखिल
हौसला बढ़ाने के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया...सुधी सिद्घार्थ
साथ में चलता हो गम और साथ न हो फिर भी गम
आज के इंसान को बोलो तो भाई क्या कहें..
मज़ा आ गया...
कवि बनने की हुनर है आपमें। लिखती रहें।
आपकी छोटी कविता में बहुत दम है।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)