शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
आकाश में उड़ता था मैं परवाज़ थी ऊँची,
पर नोंच मुझे उसने जमीं पर है गिराया ।
गीतों में मेरे जिसने कभी खुद को था देखा,
आवाज मेरी सुन के भी अनजान बताया ।
कांधे पे चढ़ा के उसे मंजिल थी दिखाई,
मंजिल पे पहुँच उसने मुझे मार गिराया ।
शैदाई= चाहने वाला, पर = पंख, परवाज = उड़ान
कवि कुलवंत सिंह
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
कुलवंत जी बड़ी प्यारी ग़ज़ल है ये आप की...हर शेर आज के हालात की तर्जुमानी कर रहा है..बहुत खूब..
नीरज
शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
दुनिया को दिखाने जो चला दर्द मैं अपने,
हर घर में दिखा मुझको तो दुख दर्द का साया ।
किसको मैं सुनाऊँ ये तो मुश्किल है फसाना
दुश्मन था वही मैने जिसे भाई बनाया ।
बहुत खूब लिखा है.
शैदाई समझ कर जिसे था दिल में बसाया ।
कातिल था वही उसने मेरा कत्ल कराया ॥
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
बहुत सुंदर लिखा है
सादर
रचना
अच्छी रचना है....कुलवंत जी, इस बार तो आपने कमाल ही कर दिया....
कुलवंत जी!
गज़ल में बेहद उम्दा प्रयास के लिये बधाई स्वीकारें।
आप ऎसी हीं रचनाओं की हीं उम्मीद रहती है।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
सुंदर अभिव्यक्ति पर बधाई ,श्यामसखा
कवि कुलवंत जी,
काफी समय बाद आपकी गजल पढने को मिली
गजल अच्छी लगी, ये गजल बिना रदीफ की है और काफिया आपने अच्छी तरह निभाया
किस शे'र की तारीफ करूँ, सारे ही एक से बढकर एक है।
सुमित भारद्वाज
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
क्या बात है कुलवंत जी ! बहुत खूब
mahfil me dard apna kiya jo bayan maine..
wa wa ke saath saath mili taaliyan mujhe..
मैं कांप रहा हूँ कि वो किस फन से डसेगा,
फिर आज है उसने मुझसे प्यार जताया ।
लाजवाब कुलवंत जी,गजब लिखा आपने.
आलोक सिंह "साहिल"
सुंदर ग़ज़ल.
कुलवंत जी बहुत अच्छा लिखा है.
कवि जी इतना गहरा दर्द
आपका का दर्द तो सूरज की भाँती है
जो पता नहीं किसके विरह में जलता है
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