लाल बहादुर शास्त्री और गाँधी जयंती के उपलक्ष्य पर हमें तीन कवितायें प्राप्त हुईं हैं, जिन्हें हम आज प्रकाशित कर रहे हैं।
उड़ गए पंछी सो गए हम
अब हमको है लुटने का गम
क्या बतलाएं बापू तुमको दाने कहाँ गए।
जब उजले पंछी आए थे
तब हम उनसे टकराए थे
थे ताकतवर नरभक्षी थे
पर हमने मार भगाए थे
जान लड़ाने वाले वो दीवाने कहाँ गए।
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गए।
हैं गैरों से तो जीते हम
पर अपनों से ही हारे हम
कैसे-कैसे सपने देखे
जब नींद खुली आंखें थीं नम
बजुके पूछ रहे खेतों के दाने कहाँ गए।
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गए।
भुना रहे हैं एक रूपैय्या
जाने कैसे तीन अठन्नी
पैर पकड़कर हाथ मांगते
अब भी अपनी एक चवन्नी।
मुट्ठी वाले हाथ सभी ना जाने कहाँ गए।
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गए।
तुलसी के पौधे बोए थे
दोहे कबीर के गाए थे
सत्य अहिंसा के परचम
जग में हमने फहराए थे
नैतिकता के वो ऊँचे पैमाने कहाँ गए।
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गए।
--देवेन्द्र पाण्डेय
धोती वाले बाबा की
यह ऐसी एक लडा़ई थी
न गोले बरसाये उसने
न बन्दूक चलायी थी
सत्य अहि़सा के बल पर ही
दुश्मन को धूल चटाई थी
मन की ताकत से ही उसने
रोका हर तूफान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को
ली सच की लाठी उसने
तन पर भक्ति का चोला
सबक अहि़सा का सिखलाया
वाणी में अमृत उसने घोला
बापू के इस रंग में रंग कर
देश का बच्चा- बच्चा बोला
कर देगें भारत माँ पर अर्पण
हम अपनी जान को
हम श्रद्घा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को
चरखे के ताने बाने से उसने
भारत का इतिहास रचा
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सबमें इक विश्वास रचा
सहम गया विदेशी फिरंगी
लड़ने का अभ्यास रचा
मान गया अंग्रेजी शासक
बापू की पहचान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को
जिस बापू ने सारे जग में
हिन्दुस्तान का नाम किया
उस पर ही इक घात लगाकर
अनहोनी ने काम किया
बापू ने बस राम कहा और
चिर निद्र में विश्राम किया
यह संसार नमन करता है
आजादी की शान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को.
--हरकीरत कलसी हकी़र
एक थे लाल और एक थे बापू ,
कहाँ हैं अब ऐसे लाल और बापू ,
दोनों ने जीवन ,सर्वस्व किया ,नौछावर ,
अपनी इस जननी की खातिर ,
आओ मिलकर दिया जलाएं ,
जन्मदिन उनका मनाएँ ,
सुख ,समृधि का जो देखा उन्होंने सपना ,
उसको पूरा करने का क्योँ न ले प्रण अपना |
प्यारे बापू प्यारे शास्त्री जी ,
धन्यभाग हमारे ,
जो हम इस धरती पर आए ,
जहां ऐसे कर्णधार हमने हैं पाये |
अपने कर्मठ अमर सपूतों को ,
उनके पसीने की एक एक बूंदों को
क्योँ न याद करे हम दोनों को ,
भावबिह्वलहोकर दोनों को
इस धरा के अमर सपूतों को ,
एक ने बोला जय जवान -जय किसान ,
दूसरे बोले रघुपति राघव राजा राम
दोनों की थी एक ही बोली ,
देश हमारा खेले होली(रंगों की),
क्योँ न बोलें हम ये आज ,
भारत ,बन जाए हम सबकी शान
--नीलम मिश्रा
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई
सबमें इक विश्वास रचा
बापू को सच्ची श्रद्धांजली |
तीनो कवितायें सरल,सहज मगर मनभावन हैं| श्याम सखा
"उड़ गए पंछी सो गए हम
अब हमको है लुटने का गम
क्या बतलाएं बापू तुमको दाने कहाँ गए।"
बहुत बढ़िया.....
ये गीत बन सकता है.....
धोती वाले बाबा की
यह ऐसी एक लडा़ई थी
न गोले बरसाये उसने
न बन्दूक चलायी थी
सत्य अहि़सा के बल पर ही
दुश्मन को धूल चटाई थी
मन की ताकत से ही उसने
रोका हर तूफान को
हम श्रद्धा से याद करेगें
गाँधी के बलिदान को
हमें सिर्फ़ याद ही नही अपितु अमल में भी लाना होगा.
बढ़िया प्रस्तुतीकरण.
जब उजले पंछी आए थे
तब हम उनसे टकराए थे
थे ताकतवर नरभक्षी थे
पर हमने मार भगाए थे
बढ़िया प्रस्तुतीकरण.
देवेंद्र पांडेय, आपकी कविता बहुत अच्छी लगी और निखिल भाई से सहमत हूँ कि ये गीत बन सकता है.. सजीव जी, आप थोड़ा ध्यान दें.. :-)
लाल बहादुर शास्त्री पर कम ही लिखा जाता है, नीलम जी का धन्यवाद जो उन्होंने इन दो महात्माओं को एक ही कविता में शामिल किया...
सत्य अहि़सा के बल पर ही
दुश्मन को धूल चटाई थी
मन की ताकत से ही उसने
रोका हर तूफान को..
बहुत अच्छा..
बापू और शास्त्री जी को नमन
सभी कवितायें बहुत सुंदर है
रचना
नैतिकता के वो ऊँचे पैमाने कहाँ गए।
क्या बतलाएँ बापू तुमको दाने कहाँ गए।
बहुत अच्छे! तीनो कवितायें अच्छी लगी
लालों में वह लाल बहादुर,
भारत माता का वह प्यारा।
कष्ट अनेकों सहकर जिसने,
निज जीवन का रूप संवारा।
तपा तपा श्रम की ज्वाला में,
उस साधक ने अपना जीवन।
बना लिया सच्चे अर्थों में,
निर्मल तथा कांतिमय कुंदन।
सच्चरित्र औ' त्याग-मूर्ति था,
नहीं चाहता था आडम्बर।
निर्धनता उसने देखी थी,
दया दिखाता था निर्धन पर।
नहीं युद्ध से घबराता था,
विश्व-शांति का वह दीवाना।
इसी शांति की बलवेदी पर,
उसे ज्ञात था मर-मिट जाना।
लालों में वह लाल बहादुर,
भारत माता का वह प्यारा।
कष्ट अनेकों सहकर जिसने,
निज जीवन का रूप संवारा।
तपा तपा श्रम की ज्वाला में,
उस साधक ने अपना जीवन।
बना लिया सच्चे अर्थों में,
निर्मल तथा कांतिमय कुंदन।
सच्चरित्र औ' त्याग-मूर्ति था,
नहीं चाहता था आडम्बर।
निर्धनता उसने देखी थी,
दया दिखाता था निर्धन पर।
नहीं युद्ध से घबराता था,
विश्व-शांति का वह दीवाना।
इसी शांति की बलवेदी पर,
उसे ज्ञात था मर-मिट जाना।
--- शीर्षक -बापू गाँधी जी
------ विधा - हाइकु -------
●●●●●◆◆◆◆◆◆◆●●●●●
वह लाल है
माँ पुतली बाई का
अभिमान है।।
है गुजरात
पोरबंदर हुआ
जनम स्थान।।
माता पुतली
पिता करम चंन्द
मोहन गाँधी।।
बचपन खेले
भारत में फिर वो
इंग्लैण्ड गये।।
इंग्लैण्ड में थी
जाकर की पढ़ायी
बैरिस्टर की।।
जब वो आये
अफ्रीक से लौटके
हिंन्दुस्तान में।।
अंग्रेजो तुम
भारत छोड़ो नारा
देकर तुम
देश भर के
बापू गाँधी कहाए
डांडी यात्रा से।।
सत्य अहिंसा
के मार्ग पर चल
मिटाई हिंसा।।
देश भर में
चला के आन्दोलन
चंपारन से।।
प्रथम जीत
लड़े नील की खेती
किसान हित।।
गाँधी जी एक
धर्मपरायण व
थे हिंन्दू नेक।।
पर चाहते
थे सदा समन्वय
एकता रहे।।
उनके शब्द
मैं चाहता हूँ सभी
संभव साथ।।
सभी देशों की
संस्कृतियों की साथ
स्वतंत्रता की।।
बयारें मेरे
घर से हो के साथ
साथ गुज़रें।।
करूँगा ऐसे
मैं काम भारत के
लिए जिसमें।।
छोटे बड़े का
नही हो कोई भेद
देश सभी का।।
स्वरचित।
हेमा श्रीवास्तव हेमाश्री
प्रयाग उ-प्र.
--- शीर्षक -बापू गाँधी जी
------ विधा - हाइकु -------
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वह लाल है
माँ पुतली बाई का
अभिमान है।।
है गुजरात
पोरबंदर हुआ
जनम स्थान।।
माता पुतली
पिता करम चंन्द
मोहन गाँधी।।
बचपन खेले
भारत में फिर वो
इंग्लैण्ड गये।।
इंग्लैण्ड में थी
जाकर की पढ़ायी
बैरिस्टर की।।
जब वो आये
अफ्रीक से लौटके
हिंन्दुस्तान में।।
अंग्रेजो तुम
भारत छोड़ो नारा
देकर तुम
देश भर के
बापू गाँधी कहाए
डांडी यात्रा से।।
सत्य अहिंसा
के मार्ग पर चल
मिटाई हिंसा।।
देश भर में
चला के आन्दोलन
चंपारन से।।
प्रथम जीत
लड़े नील की खेती
किसान हित।।
गाँधी जी एक
धर्मपरायण व
थे हिंन्दू नेक।।
पर चाहते
थे सदा समन्वय
एकता रहे।।
उनके शब्द
मैं चाहता हूँ सभी
संभव साथ।।
सभी देशों की
संस्कृतियों की साथ
स्वतंत्रता की।।
बयारें मेरे
घर से हो के साथ
साथ गुज़रें।।
करूँगा ऐसे
मैं काम भारत के
लिए जिसमें।।
छोटे बड़े का
नही हो कोई भेद
देश सभी का।।
स्वरचित।
हेमा श्रीवास्तव हेमाश्री
प्रयाग उ-प्र.
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