मै स्वतन्त्र हूँ
अपनी मर्जी का मालिक
गीता पढ़ुं या नमाज़
कहाँ का कैसा समाज
जो डाले मुझ पर दबाव
यह मैं और मेरा स्वभाव ।
मुझे है सड़ीगली प्रथाओं से परहेज़
यह बात अलग
कि खुद अपनी इच्छा से
बेटी के लिये दे रहा दहेज
बड़े आये तुम हड्डी में कबाब
कैसा और कौन सा दबाब
अपना घर फूँक कर
पितरों की शांति के लिये
बुलाता पन्डितों की फौज
शान से करवाता मृत्युभोज
भाड़ मे जाय समाज-सुधार
मेरा स्टेटस, मेरा अहम
मैं जो करूं मेरी मर्जी ।
हाँ मर्जी गई भाड़ में
जब जीन्स पहने कोई ग्रामीणबाला
तो करदो उसका मुँह काला
रचाये ब्याह उँचे कुल में
नीचे कुल की छोरी
या विधवा बने फिर से दुल्हन
हमारा करेगी मानमर्दन
तो काट कर रख देगें गर्दन
रहे अपनी मर्जी से अकेली
पति के नाम पर आँसू बहाकर
या अब लो जीवनमरण का प्रश्न
कोई अपनी इच्छा से
होना चाहे सती
तो धर लेगें मौन
दबाव देने वाले हम कौन
उसके प्राण उसकी मर्जी ।
भीतर का आतंकवादी
भावनाओं का करता ब्लैकमेल
और चिल्लाता
मुझे किसी ने बहकाया नहीं
फँसाया नहीं
गुमराह नहीं किया
मजहब के लिये मैं करता आत्मबलिदान
दुनिया, समाज
और यह परिवेश क्या करें ?
जो मै करता वह मेरी मर्जी ।
- हरिहर झा
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
achha likha harihar ji.
ALOK SINGH "SAHIL"
समाज की दोहरी सोच को दर्शाता अच्छा व्यंग, प्रत्येक पंक्ति में स्वयम से पूछे जाने वाले प्रश्न |
सादर,
विनय
क्या बात है बहुत सही लिखा है आप ने
सादर
रचना
बहुत सारी कुरीतियाँ एक ही कविता में..
बहुत अच्छा लिखा है हरिहर जी...
बहुत सारी कुरीतियाँ एक ही कविता में..
बहुत अच्छा लिखा है हरिहर जी...
हरिहर जी,
एक बढिया कविता।
पढकर अच्छा लगा।
सुमित भारद्वाज
हरिहर जी अच्छी पंक्तियाँ हैं परन्तु पहले छंद का अर्थ अन्यों से विरोधाभासी जान पड़ता है
शैलेन जी
हम जिसे "मेरी मर्जी" समझते है वह भी किस कदर परिवेश का हिस्सा होती है ! हम समाज-सुधारक का मुखौटा तो पहन लेते हैं पर भीतर से क्या होते हैं ! यह मुखौटा पहनना भी परिवेश से सीख लेते हैं। प्रथम छन्द केवल मुखौटा है।
बहुत-बहुत-बहुत अच्छी कविता.
कितनी अच्छी तरह से सब कुछ एक ही कविता में समेट दिया है अपने.
खुबसूरत, सामाजिक दोहरेपन को उजागर करती कविता |
कुंठित मन से निकली अभिव्यक्ति को हम चिकत्सीय भाषा में केथारासिस कह्ते हैं ,मानसिक सेहत के लिए अच्छी चीज है,श्याम vaise satya vyakt hua hai rachana men ,par is ke liye kuchh karana ,koyee saarthak kadam Uthana bhi jaroori hai
bhaut khoob Harihar Jha.achha laga,samaj ki baato ko jis hunar mai likha
bahut khoob likha harihar ji.......sach mein ye sabhya samaj" meri marzi" wala he ho gaya hai dual standards apnane wala....
padh kar achcha laga..
umeed hai is sabhya samaj ko aage bhi aap aaina dikhate rahenge apni kavitaon k madhyam se...
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