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Friday, October 03, 2008

मेरी मर्जी


मै स्वतन्त्र हूँ
अपनी मर्जी का मालिक
गीता पढ़ुं या नमाज़
कहाँ का कैसा समाज
जो डाले मुझ पर दबाव
यह मैं और मेरा स्वभाव ।

मुझे है सड़ीगली प्रथाओं से परहेज़
यह बात अलग
कि खुद अपनी इच्छा से
बेटी के लिये दे रहा दहेज
बड़े आये तुम हड्डी में कबाब
कैसा और कौन सा दबाब
अपना घर फूँक कर
पितरों की शांति के लिये
बुलाता पन्डितों की फौज
शान से करवाता मृत्युभोज
भाड़ मे जाय समाज-सुधार
मेरा स्टेटस, मेरा अहम
मैं जो करूं मेरी मर्जी ।

हाँ मर्जी गई भाड़ में
जब जीन्स पहने कोई ग्रामीणबाला
तो करदो उसका मुँह काला
रचाये ब्याह उँचे कुल में
नीचे कुल की छोरी
या विधवा बने फिर से दुल्हन
हमारा करेगी मानमर्दन
तो काट कर रख देगें गर्दन
रहे अपनी मर्जी से अकेली
पति के नाम पर आँसू बहाकर
या अब लो जीवनमरण का प्रश्न
कोई अपनी इच्छा से
होना चाहे सती
तो धर लेगें मौन
दबाव देने वाले हम कौन
उसके प्राण उसकी मर्जी ।

भीतर का आतंकवादी
भावनाओं का करता ब्लैकमेल
और चिल्लाता
मुझे किसी ने बहकाया नहीं
फँसाया नहीं
गुमराह नहीं किया
मजहब के लिये मैं करता आत्मबलिदान
दुनिया, समाज
और यह परिवेश क्या करें ?
जो मै करता वह मेरी मर्जी ।

- हरिहर झा

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

achha likha harihar ji.
ALOK SINGH "SAHIL"

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

समाज की दोहरी सोच को दर्शाता अच्छा व्यंग, प्रत्येक पंक्ति में स्वयम से पूछे जाने वाले प्रश्न |
सादर,
विनय

Anonymous का कहना है कि -

क्या बात है बहुत सही लिखा है आप ने
सादर
रचना

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत सारी कुरीतियाँ एक ही कविता में..
बहुत अच्छा लिखा है हरिहर जी...

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

बहुत सारी कुरीतियाँ एक ही कविता में..
बहुत अच्छा लिखा है हरिहर जी...

Unknown का कहना है कि -

हरिहर जी,

एक बढिया कविता।
पढकर अच्छा लगा।

सुमित भारद्वाज

shailen का कहना है कि -

हरिहर जी अच्छी पंक्तियाँ हैं परन्तु पहले छंद का अर्थ अन्यों से विरोधाभासी जान पड़ता है

Harihar का कहना है कि -

शैलेन जी
हम जिसे "मेरी मर्जी" समझते है वह भी किस कदर परिवेश का हिस्सा होती है ! हम समाज-सुधारक का मुखौटा तो पहन लेते हैं पर भीतर से क्या होते हैं ! यह मुखौटा पहनना भी परिवेश से सीख लेते हैं। प्रथम छन्द केवल मुखौटा है।

दीपाली का कहना है कि -

बहुत-बहुत-बहुत अच्छी कविता.
कितनी अच्छी तरह से सब कुछ एक ही कविता में समेट दिया है अपने.

संत शर्मा का कहना है कि -

खुबसूरत, सामाजिक दोहरेपन को उजागर करती कविता |

Anonymous का कहना है कि -

कुंठित मन से निकली अभिव्यक्ति को हम चिकत्सीय भाषा में केथारासिस कह्ते हैं ,मानसिक सेहत के लिए अच्छी चीज है,श्याम vaise satya vyakt hua hai rachana men ,par is ke liye kuchh karana ,koyee saarthak kadam Uthana bhi jaroori hai

nesh का कहना है कि -

bhaut khoob Harihar Jha.achha laga,samaj ki baato ko jis hunar mai likha

Anonymous का कहना है कि -

bahut khoob likha harihar ji.......sach mein ye sabhya samaj" meri marzi" wala he ho gaya hai dual standards apnane wala....

padh kar achcha laga..

Anonymous का कहना है कि -

umeed hai is sabhya samaj ko aage bhi aap aaina dikhate rahenge apni kavitaon k madhyam se...

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