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Wednesday, October 01, 2008

ईद पर विशेष: लहू सब का लाल है


ग़ज़ल-जगदीश रावतानी

कुदरत का ये करिश्मा भी क्या बे-मिसाल है
चेहरे सफ़ेद काले लहू सबका लाल है

हिंदू यहाँ है कोई मुसलमान है कोई
कितना फरेबकार ये मज़हब का जाल है

हिंदू से हो सके न मुसलमां की एकता
दूरी बनी रहे ये सियासत की चाल है

धरती पे आदमी ने बसाई है बस्तियां
इंसानियत का आज भी जग में अकाल है

दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

makrand का कहना है कि -

धरती पे आदमी ने बसाई है बस्तियां
इंसानियत का आज भी जग में अकाल है

baut sunder

Unknown का कहना है कि -

हर शे'र बहुत बढिया लगा

सुमित भारद्वाज

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

जगदीश जी, बेमिसाल ग़ज़ल...

कुदरत का ये करिश्मा भी क्या बे-मिसाल है
चेहरे सफ़ेद काले लहू सबका लाल है...

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

इसी पोस्ट के माध्यम से ग्राफिक्स डिज़ाइनर का धन्यवाद जो इतना प्यारा हैडर बनाया है। ईद, शास्त्री जयंती और गाँधी जयंती एक ही हैडर में!!!

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर.
बधाई

Anonymous का कहना है कि -

जगदीश जी,अत्यन्त सुंदर भाव समेटे यह रचना बहुत पसंद ई.
ईद मुबारक हो जी.
आलोक सिंह "साहिल"

दीपाली का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर भाव है.
ग़ज़ल की एक-एक पंक्ति दिल को छूती है.

दीपाली का कहना है कि -

तपन जी का कमेन्ट पढ़कर याद आया....कि वाकई ईद,गाँधी जयंती तथा लाल बहादुर शास्त्री जयंती का ये हेडर बहुत ही सुंदर है..
जिसने बनाया उसकी सृजनशीलता अद्भुत है.

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है
-- बहुत खूब

अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

एकता के मूल स्वरूप को समझना जरुरी है . बिना समझे १००० साल से लग रही एकता का राग अब तक तो साफल हुआ नही है . ऐसी गजलो से कितने हज़ार साल और लगेंगे . खून तो गधे , कुत्ते, सूअर तथा आदमी का एक जैसा है . परुन्तु इनकी बराबरी नही है . मनुष्यता सर्वोपरि है ........
डॉ. वेद व्यथित
ऐ-मेल पता - dr.vedvyathit@gmail.com

sunil dwivedi का कहना है कि -

kya khub!!!!!!!!! kaha hai, aapne
insaniyat ka aaj bhi jagh me akal hai...........

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