ग़ज़ल-जगदीश रावतानी
कुदरत का ये करिश्मा भी क्या बे-मिसाल है
चेहरे सफ़ेद काले लहू सबका लाल है
हिंदू यहाँ है कोई मुसलमान है कोई
कितना फरेबकार ये मज़हब का जाल है
हिंदू से हो सके न मुसलमां की एकता
दूरी बनी रहे ये सियासत की चाल है
धरती पे आदमी ने बसाई है बस्तियां
इंसानियत का आज भी जग में अकाल है
दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
धरती पे आदमी ने बसाई है बस्तियां
इंसानियत का आज भी जग में अकाल है
baut sunder
हर शे'र बहुत बढिया लगा
सुमित भारद्वाज
जगदीश जी, बेमिसाल ग़ज़ल...
कुदरत का ये करिश्मा भी क्या बे-मिसाल है
चेहरे सफ़ेद काले लहू सबका लाल है...
इसी पोस्ट के माध्यम से ग्राफिक्स डिज़ाइनर का धन्यवाद जो इतना प्यारा हैडर बनाया है। ईद, शास्त्री जयंती और गाँधी जयंती एक ही हैडर में!!!
bahut sundar
बहुत ही सुंदर.
बधाई
जगदीश जी,अत्यन्त सुंदर भाव समेटे यह रचना बहुत पसंद ई.
ईद मुबारक हो जी.
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत ही सुंदर भाव है.
ग़ज़ल की एक-एक पंक्ति दिल को छूती है.
तपन जी का कमेन्ट पढ़कर याद आया....कि वाकई ईद,गाँधी जयंती तथा लाल बहादुर शास्त्री जयंती का ये हेडर बहुत ही सुंदर है..
जिसने बनाया उसकी सृजनशीलता अद्भुत है.
दिन ईद का है आ के गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है
-- बहुत खूब
अवनीश तिवारी
एकता के मूल स्वरूप को समझना जरुरी है . बिना समझे १००० साल से लग रही एकता का राग अब तक तो साफल हुआ नही है . ऐसी गजलो से कितने हज़ार साल और लगेंगे . खून तो गधे , कुत्ते, सूअर तथा आदमी का एक जैसा है . परुन्तु इनकी बराबरी नही है . मनुष्यता सर्वोपरि है ........
डॉ. वेद व्यथित
ऐ-मेल पता - dr.vedvyathit@gmail.com
kya khub!!!!!!!!! kaha hai, aapne
insaniyat ka aaj bhi jagh me akal hai...........
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